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Sufi Kavya | सूफी काव्य : व्युत्पत्ति एवं विशेषताएं
Sufi Kavya | सूफी काव्य : व्युत्पत्ति एवं विशेषताएं : दोस्तों ! आज के नोट्स में हम आपके लिए लेकर आये है – सूफी काव्य और उसकी प्रमुख विशेषताएं। हिंदी साहित्य में भक्ति काल का सूफी काव्य प्रमुख भाग है जिसे हम आज अच्छे से समझने की कोशिश करेंगे।
हम यहाँ नोट्स में उन्हीं बातों पर चर्चा करते है जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हमने जो पढ़ा वो कितना सटीक और उपयोगी है। आपने कितना पढ़ा , ये मायने नहीं रखता बल्कि क्या पढ़ा, ये आपके लिए महत्वपूर्ण है।
Sufi Kavya | सूफी काव्य :
Sufi Kavya | सूफी काव्य : हिंदी साहित्य के भक्ति काल को चार भागों में बांटा गया है जो इस प्रकार है :-
- संत काव्य
- सूफी काव्य
- राम काव्य
- कृष्ण काव्य
मध्य एशिया में ईरान में सातवीं आठवीं सदी में सूफिज्म का जन्म हुआ। इसका तात्कालिक उद्देश्य शिया और सुन्नी के आपसी मतभेदों को दूर करना था। भारत में 12 वीं सदी के अंत में मोहम्मद गौरी के साथ शेख मोइनुद्दीन चिश्ती का आगमन हुआ। चिश्ती संप्रदाय की नींव दृढ़ हुई।
सूफी श्रेणियां :
सूफियों की दो श्रेणियां थी :-
- शराब / बाशरा : जो शरीअत में विश्वास करते हैं।
- बेशरा : जो शरीअत में विश्वास नहीं करते हैं। भारतीय सूफियों का संबंध बेशरा से है।
सूफी संप्रदाय :
सूफियों के चार संप्रदाय रहे हैं :-
- चिश्ती
- सुहरावर्दी
- कादिरी
- नक्शबंदी
- चिश्ती और सुहरावर्दी सल्तनत काल में थे । कादिरी और नक्शबंदी मुगल काल में थे।
- सबसे उदार और लोकप्रिय संप्रदाय चिश्ती संप्रदाय रहा है और नक्शबंदी कट्टर संप्रदाय रहा है।
सूफी दर्शन की आध्यात्मिक अवस्थाएं :
सूफी दर्शन की चार आध्यात्मिक अवस्थाएं मिलती है :-
शरीयत | कर्मकांड | नासूत अवस्था में |
तरीकत | उपासना कांड | मलकत अवस्था |
हकीकत | ज्ञान कांड | लाहूत अवस्था |
मारीफत | सिद्धावस्था | जबरूत |
सूफी संप्रदाय में मुकाम :
सूफी संप्रदाय में 7 मुकाम होते हैं :-
1. | इश्क | प्रेम |
2. | जहद | संघर्ष |
3. | स्वारिफ | प्रज्ञा प्राप्ति |
4. | वल्द | भावातिरेक |
5. | हकीक | परम सत्य की अनुभूति |
6. | वस्ल | परम सत्ता में स्थिति |
7. | फना | सिद्धावस्था। |
सूफी शब्द की व्युत्पत्ति
सूफी काव्य धारा में सूफी शब्द ‘सूफ’ शब्द से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है “पवित्र”। सूफी लोगों का आचरण शुद्ध व पवित्र होता था।
पहली सूफी रचना मानने वाले विचारक :-
- रामचंद्र शुक्ल ने ‘क़ुतुबन की मृगावती‘ को पहली सूफी रचना माना है।
- डॉ. नगेंद्र ने ‘असाइत की हसांवली’ को पहली सूफी रचना माना है।
- डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘ईश्वर दास की सत्यवती कथा‘ को पहली सूफी रचना माना है।
- डॉ. रामकुमार वर्मा ने ‘मुल्लादाऊद की चंदायन‘ को पहली सूफी रचना बताया है।
– सर्वाधिक मान्य मत रामकुमार वर्मा का है।
Sufi Kavya | सूफी काव्य साहित्य की प्रमुख विशेषताएं
सूफी साहित्य की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार से है :
- दांपत्य भाव की भक्ति भावना (माधुर्य भाव) निर्मित होता है।
- इसमें भावनात्मक रहस्यवाद की प्रधानता मिलती है।
- विशिष्टाद्वैतवादी दर्शन का अधिक प्रभाव मिलता है।
- इसके मजाजी द्वारा ‘इश्के हकीकी’ सिद्ध करने पर बल दिया है।
- लौकिक प्रेम के द्वारा अलौकिक प्रेम की व्यंजना की है।
- सूफी यद्यपि निर्गुण है, उनका साध्य निर्गुण है लेकिन साधन सगुण है। यही कारण है कि सूफी साहित्य में ईश्वर के सगुण और निर्गुण दोनों रूपों को स्वीकार किया गया है।
- गुरु के प्रति आस्था को एवं आचरण की पवित्रता पर बल है।
सूफी साहित्य की महत्वपूर्ण विशेषता है – मानवीय प्रेम की प्रतिष्ठापना।
- सूफियों ने बिना खंडन-मंडन के ही प्रेम की सार्जनीनता व सार्वभौमिकता को स्थापित करके समस्त भेदभावो को स्वीकार कर दिया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार :-
“संतों की वाणी डांट फटकार वाली, अधिक चिढ़ाने वाली ही सिद्ध हुई, जबकि सूफी खंडन-मंडन का प्रयोग किए बिना ही अपने उद्देश्य को पाने में अधिक सफल रहे हैं।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि :-
“संतों ने प्रणय भावना सूफियों से ग्रहण की है लेकिन सूफियों के यहां फिर भी यह प्रेम कामवासना से ग्रस्त हुआ है, लेकिन संतो के यहां नहीं है, संतों के यहां प्रेम का निष्कलुष चित्रण हुआ है। निस्संदेह यह प्रशंसा की बात है।”
- प्रकृति और बारहमासा का विशद चित्रण मिलता है।
- सूफी साहित्य में मुख्यतः दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग हुआ है।
- कड़वकबद्धता सूफी साहित्य की विशेषता है।
निश्चित अर्धालियों पर दोहे का प्रावधान रखना। दोहे रखने की इस पद्धति को धत्ता देना भी कहते हैं। अधिकांश सूफी साहित्य में 7 अर्धालियों पर दोहा मिलता है।
- सूफी साहित्य के प्रणय भावना अभारतीय है।
आत्मा यहां पुरुष और परमात्मा यहां स्त्री है।
- सूफी ज्ञान कांड और कर्मकांड दोनों के समर्थक है। सूफियों के यहां तीर्थ यात्रा, मजार पूजन की मान्यता है।
— मसनबी शैली क्या है ?
1. मसनवी शैली में सर्वप्रथम खुदा की इबादत करना।
2. पैगंबर मोहम्मद साहब की महिमा का गायन करना।
3. तत्कालीन शाहेवक्त का गुणगान करना।
4. इश्के मजाजी द्वारा इश्के हकीकी सिद्ध करने पर बल।
5. गुरु की महिमा द्वारा ईश्वर की प्राप्ति करना आदि मसनवी शैली की विशेषता है।
– मसनबी शैली की भाषा अवधि और लिपि फारसी है।
– मसनबी शैली सर्ग बद्ध नहीं है, शीर्षको को के नाम घटनाओं के आधार पर रखे गए हैं।
- सूफी साहित्य का अंगी रस श्रृंगार है। वियोग श्रृंगार की प्रधानता है।
- सूफी साहित्य में स्वाभाविक अलंकार योजना का प्रयोग हुआ है।
- इसमें मलिक मोहम्मद जायसी ने सादृशमूलक अलंकारों का प्रयोग ज्यादा किया है
- गणपति चंद्रगुप्त ने सूफी साहित्य को रोमांसिक कथा काव्य परंपरा की संज्ञा दी है और इसे लोकाश्रय परंपरा में रखकर विश्लेषित किया है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे प्रेमाश्रयी शाखा का नाम दिया है।
- डॉ. रामकुमार वर्मा ने इसे प्रेम काव्य की संज्ञा दी है।
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एक गुजारिश :
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शानदार