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Wordsworth | वर्ड्सवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत


नमस्कार दोस्तों ! आज के नोट्स में हम आपसे Wordsworth | वर्ड्सवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत: काव्य भाषा : अर्थ और विकास | काव्य भाषा विषयक विचार एवं आलोचना | काव्य भाषा संबंधी मान्यताएं आदि सभी के बारे में चर्चा करने जा रहे है। तो चलिए समझते है :

Wordsworth | वर्डसवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत: महाकवि वर्डसवर्थ का जन्म 1770 ईस्वी में हुआ और इनकी मृत्यु 1850 ईस्वी में हुई। इन की प्रसिद्ध पुस्तक “लिरिकल बैलेड्स | Lyrical Ballads” है।

लिरिकल बैलेड्स” पुस्तक वर्डसवर्थ ने कॉलरिज के साथ मिलकर लिखी है। इसी पुस्तक में वर्ड्सवर्थ के काव्य भाषा विषयक विचार उजागर हुए हैं।



Kavya Bhasha | काव्य भाषा : अर्थ और विकास


Kavya Bhasha | काव्य भाषा : अर्थ और विकास – काव्य भाषा शब्द का प्रयोग अंग्रेजी के ‘पोइटिक डिक्शन | Poetic Diction’ के पर्याय के रूप में किया जा रहा है । यह नवशास्त्रवादी युग में कृत्रिम और आडम्बरपूर्ण भाषा का सूचक है, जो बोधगम्य नहीं थी। इस भाषा का विकास अठारहवीं शताब्दी में हुआ।

नवशास्त्रवादी दौर में ऐसे शब्दों को भी शामिल कर लिया गया जो अपरिचित थे। अपरिचित शब्द हमारे मन पर कोई गहरा असर नहीं छोड़ते और न ही उनमें आनंददायक बिम्ब बनता है। जिन शब्दों से हम परिचित होते हैं, वे शब्द आते ही हमें आकर्षित करते हैं ।

दोस्तों ! आपको हम बता दें कि 18वीं शताब्दी में विज्ञान और सामाजिक विज्ञान का विकास अधिक तेजी से हो रहा था। इस विकास के कारण भाषा में विज्ञान, दर्शन आदि के तकनीकी शब्द भारी मात्रा में आ रहे थे ।

इस प्रकार भाषा के क्षेत्र में स्पष्टता की मांग को देखते हुए इस युग में यह विचार सामने आया कि शब्द का सामान्य रूप से एक ही अर्थ होना चाहिए किंतु इस आदर्श को प्राप्त करना संभव नहीं था।

ये तो आप जानते ही है कि शब्द अलग-अलग संदर्भ में प्रयुक्त होते हैं। जैसे ही संदर्भ बदलेगा, शब्दों के अर्थ बदल जाएंगे। इसलिए नवशास्त्रवादी दौर की कृत्रिम और आडम्बरपूर्ण भाषा का वर्ड्सवर्थ ने विरोध किया।

वर्ड्सवर्थ की धारणा यह थी कि शब्द अपने आप में काव्यात्मक या अकाव्यात्मक नहीं होते, भाषा में प्रयोग के आधार पर वे अपना स्वरूप अर्जित करते हैं । कवि के हृदय में यदि भाव का उन्मेष है और विषय का ठीक चयन किया गया है तो भाषा स्वयं ही अवसर के अनुरूप आकार ग्रहण कर लेगी।


Wordsworth | वर्डसवर्थ के काव्य भाषा विषयक विचार


Wordsworth | वर्डसवर्थ के काव्य भाषा विषयक विचार : वर्डसवर्थ के काव्य भाषा विषयक विचार इस प्रकार से है :

  • नवशास्त्रवादी विचारधारा के विपरीत वर्ड्सवर्थ ने काव्य में ग्रामीणों की प्राकृतिक एवं स्वभाविक बोलचाल की भाषा पर बल दिया है।
  • वर्डसवर्थ की स्पष्ट धारणा है कि काव्य भाषा जनसाधारण की भाषा का चुनाव हुआ रूप होने के कारण कहीं अधिक स्थायी और दर्शन प्रदान होती है।
  • वर्डसवर्थ काव्य में वास्तविक भाषा की बात करते हैं । वास्तविक भाषा से तात्पर्य ग्रामीण मनुष्य की बोलचाल की भाषा से है।
  • यह काव्य की भाषा और गद्य भाषा में कोई तात्विक भेद नहीं मानते है। वे स्पष्ट कहते हैं :

” गद्य की भाषा एवं छन्दोबद्ध रचना की भाषा में ना तो कोई तात्विक अंतर है, ना हो सकता है।”

  • वर्डसवर्थ का विचार है कि प्रबल उन्मेषयुक्त भावों की भाषा अनायास भव्य, सजीव और चित्रात्मक होगी।
  • वर्डसवर्थ के अनुसार कविता में छंदों का प्रयोग होता है लेकिन छंद का प्रयोग मनमाना न होकर उपयुक्त नियमबद्ध और निश्चित होना चाहिए।
  • वे छंद को अनिवार्य न मानकर कविता के एक गुण के रूप में स्वीकारते हैं।
  • वर्डसवर्थ ने कविता की परिभाषा इस प्रकार दी है :

“प्रबल मनोभावों का सहज उच्छलन ही कविता है

  • कॉलरिज ने परिभाषा इस प्रकार दी है:-

” सर्वोत्तम शब्दों का सर्वोत्तम क्रम कविता है”



Wordsworth | वर्डसवर्थ के काव्य भाषा विषयक विचारों की आलोचना


Wordsworth | वर्डसवर्थ के काव्य भाषा विषयक विचारों की आलोचना : वर्डसवर्थ के काव्य भाषा विषयक विचारों की आलोचना कॉलरिज ने की है जो इस प्रकार है :

  • कॉलरिज ने वर्डसवर्थ के ग्रामीण भाषा विषयक विचारों को अनुपयुक्त बतलाया है।
  • इनके अनुसार : काव्य भाषा भावों और अनुभूतियों का संप्रेषण करने में सक्षम होनी चाहिए जबकि ग्रामीण भाषा की शब्दावली अपर्याप्त और कामचलाऊ होती है।
  • कॉलरिज के अनुसार ग्रामीण भाषा में व्यापक सूक्ष्म एवं विविध अनुभूतियों का संप्रेषण संभव नहीं है, ग्रामीण भाषा का वस्तु ज्ञान भी सीमित होता है।
  • कॉलरिज का विचार है कि प्रत्येक मनुष्य की भाषा उसके ज्ञान, क्रिया, और संवेदना के अनुसार भिन्न भिन्न होती है। तब काव्य में ग्रामीण शब्दावली का प्रयोग कैसे किया जा सकता है।
  • इन्होंने गद्य और पद्य की भाषा को भिन्न माना है। वे कहते हैं :–

“”अनिवार्य शब्द के प्रत्येक अर्थ ने गद्य और छंदोबद्ध रचना की भाषा में सचमुच अनिवार्य भेद हो सकता है और होना चाहिए।”

  • स्वयं वर्डसवर्थ ने भी स्वीकार किया है:-

“घनीभूत सवेगों और भाव गाम्भीर्य के क्षणों में चयन की हुई भाषा भव्य, सबल ,रूपक एवं अलंकारों से युक्त जीवंत भाषा होती है।”



Wordsworth | वर्डसवर्थ की काव्य भाषा संबंधी मान्यताएं


Wordsworth | वर्डसवर्थ की काव्य भाषा संबंधी मान्यताएं : वर्डसवर्थ की काव्य भाषा संबंधी मान्यताएं इस प्रकार से है :

  • काव्य में ग्रामीणों की सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
  • काव्य में जीवंत संवेदना की स्थिति होनी चाहिए ।
  • गद्य और पद्य की भाषा में कोई तात्विक भेद नहीं होना चाहिए।
  • काव्य में छंद महत्वपूर्ण है लेकिन अनिवार्य नहीं है।
  • कृत्रिम भाषा निम्न श्रेणी के कवियों की देन है। कवि वास्तविक घटनाओं से उद्भूत भावों को कविता में ढालता है। जिससे भाव प्रबलता के कारण भाषा सहज रूप से प्रभावी और अलंकृत रूप धारण करती है।
  • प्राचीन कवियों की भाषा सहज और सरल थी।
  • कविता की विषय वस्तु सामान्य जीवन की घटनाएं होनी चाहिए।

वर्डसवर्थ ने अपने काव्य भाषा सिद्धांत के द्वारा भाषा में कृत्रिमता, बनावटीपन एवं आडंबरपूर्ण भाषा का बहिष्कार करते हुए अपने सिद्धांत के द्वारा काव्य भाषा को एक नवीन दृष्टि प्रदान ही नहीं की, बल्कि काव्य भाषा में जनसाधारण के भावों को भी अभिव्यक्त किया है।


आखिरी बात

दोस्तों ! अब आप अच्छे से समझ गए होंगे कि Wordsworth | वर्ड्सवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत क्या है ? इसके बारे में वर्ड्सवर्थ ने जो विचार एवं मान्यताएं प्रस्तुत की है तथा फिर कॉलरिज ने वर्ड्सवर्थ के काव्य भाषा सिद्धांत की क्या-क्या आलोचनाएं की है आदि सभी बातों को लेकर हमने आज विस्तृत चर्चा की है जो आपके लिए जानना बहुत जरूरी है। इन्हें बार – बार दोहरा कर समझ लीजिये।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Wordsworth | वर्ड्सवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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