Shabd Shakti | शब्द शक्ति : अर्थ एवं परिभाषा और उसके प्रकार
Shabd Shakti | शब्द शक्ति और उसके प्रकार : दोस्तों ! आज की पोस्ट में हम Shabd Shakti | शब्द शक्ति और उसके प्रकार के बारे में अच्छे से समझेंगे। हम शब्द शक्ति का अर्थ, परिभाषा, उसके प्रकार, उदाहरण तथा अंतर आदि के बारे में महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा कर रहे है।
Shabd | शब्द क्या है ?
शब्द : भाषा में इस्तेमाल होने वाली सबसे छोटी इकाई जो अपने आप में पूर्ण होती है, वह शब्द है ।
उत्पत्ति के आधार पर शब्द के चार प्रकार माने जाते हैं :
- तत्सम
- तद्भव
- देशी
- विदेशी
Shabd Shakti | शब्द शक्ति : अर्थ एवं परिभाषा
Shabd Shakti : अर्थ एवं परिभाषा : शब्द किसी भी प्रकार का हो अपना अर्थ रखता है । बिना अर्थ के शब्द नहीं हो सकता और बिना शब्द के अर्थ नहीं हो सकता । प्रत्येक शब्द में अपना अर्थ बनाने की क्षमता होती है । इसी क्षमता को साहित्य शास्त्र में शब्द शक्ति कहा जाता है।
परिभाषा : शब्द की वह प्रक्रिया जिसके द्वारा शब्द से किसी की अर्थ का ज्ञान होता है, शब्द शक्ति कहलाती है।
Shabd Shakti | शब्द शक्ति के प्रकार :
शब्द शक्ति के प्रकार : जैसा कि आप जानते हैं कि प्रत्येक शब्द में अपना अर्थ बताने की क्षमता होती है लेकिन इस अर्थ का ज्ञान अलग-अलग प्रक्रियाओं से प्राप्त करते हैं । इस प्रक्रिया की दृष्टि से शब्द शक्ति के तीन भेद किए जाते हैं :
- अभिधा
- लक्षणा
- व्यंजना
अभिधा शब्द शक्ति :
अभिधा शब्द शक्ति : लोक व्यवहार में प्रसिद्ध अर्थ को व्यक्त करने वाली शब्द शक्ति अभिधा कहलाती है । साक्षात संकेतिक अर्थ को व्यक्त करने वाली शब्द शक्ति अभिधा है।
- शब्द के पहले, पूर्व विधित अर्थ को बताने वाली शब्द शक्ति अभिधा है।
- यह अभिधा जिस अर्थ को बतलाती है, उसे वाक्य अर्थ, अभिधेय अर्थ, या मुख्यार्थ कहा जाता है।
- अभिधा का प्रसाद गुण से निकट का संबन्ध है। जैसे :-
” वह आता
दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता।”
— यहां कवि के शब्दों से सीधे-सीधे जो अर्थ प्रकट हो रहा है, वही अर्थ कविता का है।
“कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय
या खाए बोराय वा खाए बोराय।”
“वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर”
लक्षणा शब्द शक्ति :
लक्षणा शब्द शक्ति : मुख्य अर्थ में बाधा होने पर व्यक्ति के द्वारा किसी रोटी या प्रयोजन के आधार पर मुख्य अर्थ से संबंधित अन्य अर्थ लिया जाए वह लक्षणा शब्द शक्ति कहलाती है। जैसे:-
“उस भवन की ओर देखा,
छिन्नवार देख कर रोई नहीं
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं”
- दृष्टि मार नहीं खाती । मनुष्य मार नहीं खाता है। इसी तरह दृष्टि नहीं रोती । रोना सचेतन प्राणी का कर्म है । तात्पर्य यह है कि कवि यहां उस स्त्री की बात कर रहा है जो जीवन संघर्ष में बार-बार आघात झेल कर भी रोई नहीं है।
मानवीकरण अलंकार हमेशा लक्षणा में होता है । लक्षणा से व्यक्त अर्थ को लक्ष्यार्थ कहा जाता है।
जब वाच्य अर्थ या अभिधेय अर्थ लागू ना हो तो लक्षणा से अन्य अर्थ लिया जाता है। लक्षणा तीन नियमों पर कार्य करती है :
- इसमें मुख्य अर्थ बाधित हो जाता है तो उसके स्थान पर दूसरा अर्थ लिया जाता है लेकिन यह ध्यान रहे यह अन्य अर्थ भी (दूसरा अर्थ) भी अनिवार्य रूप से मुख्य अर्थ से ही संबंधित होता है।
- इसमें मुख्य अर्थ (अभिधेय अर्थ) लागू नहीं होता है। वह बाधित हो जाता है।
- मुख्य अर्थ को छोड़कर दूसरा या अन्य अर्थ अपनाने के पीछे या तो कोई रूढी होती है अथवा कोई प्रयोजन होता है।
व्यंजना शब्द शक्ति :
इसका अर्थ व्यंग्यार्थ पर टिका रहता है। कविता का ऐसा गूढ़ अर्थ जिसमें एक बात के भीतर कुछ दूसरा अर्थ ध्वनित होता हो वह व्यंजना शब्द शक्ति कहलाती है।
व्यंजना जिस अर्थ को बतलाती है उसे व्यंग्यार्थ या प्रतीयमान अर्थ भी कहते हैं। साहित्य में व्यंजना भाव सौंदर्य की गहनता एवं तीव्र संप्रेषण का हेतु है।
“चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय”
- यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण शब्द शक्ति है ।
- व्यंजना में प्रतीकों का विशेष प्रयोग होता है।
- अन्योक्ति / समासोक्ति अलंकारों से इसका गहरा संबंध है।
- श्लेष अलंकार और वक्रोक्ति अलंकार से भी व्यंजना का सम्बन्ध है।
“काहे री नलिनी तू कुम्हलानी तेरे ही नाल सरोवर पानी।”
व्यंजना और लक्षणा में अंतर :
- लक्षणा में मुख्यार्थ बाधित होता है जबकि व्यंजना में नहीं।
- लक्षणा में जो अन्य अर्थ या दूसरा अर्थ लिया जाता है, वह भी सदैव वाच्य अर्थ / मुख्य अर्थ / अभिधेय अर्थ से ही संबंधित होता है।लेकिन व्यंजना में ऐसा नहीं होता।
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