Meera Muktavali Explanation मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या (91-95)
Meera Muktavali Explanation-Narottam Das (91-95) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम फिर से नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले पदों की व्याख्या लेकर हाजिर है। तो चलिए आज इसके अगले 91-95 पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या समझते है :
नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली“ के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (91-95)
Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Explanation 91-95 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 91 से लेकर 95 तक के पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या निम्नानुसार है :
पद : 91.
Meera Muktavali Explanation 91-95 Pad in Hindi
सतगुरु ! म्हारी प्रीत निभाज्यो जी,
थे छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
लेकिन धीजै, मन न पतीजै, मुखड़ा रा सबद सुणाज्यो जी।।
मैं तो दासी जनम-जनम की, म्हारै आँगणि रमता आज्यो जी।
मीरां के प्रभु हरि अविनासी, बेड़ों पार लगाज्यो जी।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | निभाज्यो जी | निभा जाना जी |
2. | म्हारी | मेरी |
3. | मति | नहीं |
4. | जाज्यो | ध्यान देना |
5. | ओगण | अवगुण |
6. | म्हारुं | मेरा |
7. | पतीजै | विश्वास |
8. | दीजै | आश्वस्त नहीं होता |
9. | आँगणि | आंगन |
10. | बेड़ों पार | काम सिद्ध करना |
11. | रमता | विचरण करते हुये आ जाना |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि हे सतगुरु ! मेरी प्रीत निभा जाना जी। हे गुरु ! आप तो मेरे गुणों के सागर हो, हमारे अवगुण पर ध्यान मत देना जी। यह संसार आश्वस्त नहीं होता, मन विश्वास नहीं कर पाता। आप अपने मुख से ही ज्ञान के शब्द सुना जाओ जी।
हे गुरु ! यह संसार हमें आश्वस्त नहीं कर पाता है और मन में अब विश्वास नहीं बचा है। अब विश्वास का एकमात्र आधार आपके शब्द ही है। मीरा तो आपकी जन्म-जन्म की दासी है। मेरे घर आप विचरण करते हुए पधारिये। आप तो अविनाशी है, हमारे काम को सिद्ध कर दीजिये। हमारी नैया को पार लगा दीजिये।
पद : 92.
Meera Muktavali Explanation-Narottamdas Swami in Hindi
म्हांरा सतगुर ! वेगा आज्यो जी।
म्हारै सुख री सीर बुवाज्यो जी।।
तुम वीछडियो दुख पाऊं जी।
मेरा मन मांही मुरझाऊं जी।।
मैं कोइल ज्यूं कुरलाऊँ जी।
कुछ बाहरि कहि न जणाऊँ जी।।
मोहि बाघण विरह संजावै जी।
कोई कहिया पार न पावै जी।।
ज्यूँ जल त्याग्या मीना जी।
तुम दरसण विन खीना जी।।
ज्सूं चकवी रैण न भावै जी।
वा ऊँगो भाण सुहावै जी।।
ऊँ दिन कबै करोला जी।
म्हारै आँगण पाँव धरोला जी।।
अरज करे मीरां दासी जी।
गुर-पद-रज की मैं प्यासी जी।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | वेगा | शीघ्र |
2. | सीर | हल्की रेखा |
3. | बुवाज्यो | बुवाना |
4. | कुरलाऊँ | करुण स्वरमें बोलना |
5. | जणाऊँ | जताना |
6. | संजावै | सताती है |
7. | रैण | रात्रि |
8. | ऊँगो | उदित |
9. | भाण | सूर्य |
10. | करोला | करेंगे |
11. | अरज | प्रार्थना |
12. | रज | धूल |
13. | प्यासी | अभिलाषा रखने वाली |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि हे सतगुरु ! आप जल्दी आ जाइये जी। हमें सुख के खेत में सुख की हल्की रेखा बुवा जाइये जी । आप बिछड़ गये तो मैं बहुत ही दु:ख पा जाऊँगी और मैं मन ही मन में मुरझा जाऊँगी। मैं कोयल की तरह हूँ, जो करुण स्वर में बोलती हूँ। मैं अपनी वेदना को बाहर जता नहीं सकती हूँ। मुझे विरह रूपी बाघण सता रही है। कोई कहता है कि तुम संसार से पार नहीं हो पाओगी, इस विरह वेदना से मुक्ति नहीं मिल पायेगी।
जैसे मछली जल को त्याग करके कष्ट उठाती है, वैसे ही आपके दर्शन के बिना मैं क्षीण होती जा रही हूँ। जैसे चकवी को रात्रि नहीं सुहाती है और रात्रि में वह अपने चेकवे से बिछुड जाती है एवं सूर्य की किरण के साथ मिल जाती है। चकवी को तो उदित सूर्य ही सुहाता है। रात्रि उसको अच्छी नहीं लगती है। मेरे लिये वह दिन कब लाओगे, जिस दिन आप मेरे आंगन में पैर रखोगे। मीराबाई प्रार्थना कर रही हैं कि हे प्रभु ! मैं तो आपकी दासी हूँ। मैं तो गुरु के पाँव की धूल की प्यासी हूँ।
पद : 93.
Meera Muktavali Explanation Shabdarth Sahit in Hindi
री ! मेरे पार निकस गया,
सतगुर मारया तीर।
विरह भाल लगी उर अन्तरि, व्याकुल भया सरीर।।
इत-उत चित चलै नहिं कबहूँ, डारी प्रेम-जँजीर।
कै जाणै मेरो प्रीतम प्यारो, और न जाणै पीर।।
कहा करूँ, मेरो वस नहिं सजनी ! नैन झरत दोउ नीर।
मीरां कहै, प्रभु तुम मिळियॉँ विन, प्राण धरत नहिं धीर।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | तीर | ज्ञानोपदेश का बाण |
2. | भाल | नोंक |
3. | अन्तरि | भीतर |
4. | चित चलै | चित्त की चंचलता |
5. | डारी | डाल दी |
6. | पीर | दर्द |
7. | वस | वश |
8. | नीर | जल |
9. | धीर | धैर्य |
व्याख्या :
दोस्तों ! मीरा बाई कहती है कि सतगुरु ने मुझ पर तीर अर्थात् ज्ञानोपदेश का बाण चलाया है। मेरे हृदय के अंदर विरह की नोंक लग गई है और उस विरह से मेरा शरीर व्याकुल हो रहा है। अब मेरे चित्त की चंचलता नहीं रही। वह अब इधर-उधर नहीं भागता है, क्योंकि गुरु ने मुझे प्रेम रूपी जंजीर से बांध लिया है। मेरा चित्त अब स्थिर हो गया है।
मीराबाई कहती है कि मेरा प्रियतम ही इस दर्द को जानता है। कोई दूसरा इसको नहीं जानता है। अपनी सखी से मीराबाई कहती है कि अब बस दोनों आंखों से नीर झरता रहता है। हे प्रभु ! अब आप मुझे मिल जाइये, क्योंकि आपके मिले बिना मेरे प्राणों को धैर्य नहीं मिलेगा।
पद : 94.
Meera Muktavali Explanation with Hard Meanings in Hindi
राणाजी ! म्हे तो गोविन्द का गुण गास्यां।
चरणामित को नेम हमारे, नित उठ दरसण जास्याँ।।
हरि मंदिर में निरत करास्याँ, घुँघरियाँ घमकास्याँ।
राम-नाम का झाँझ चलास्याँ, भव सागर तर जास्याँ।।
यो संसार बाड़ का काँटा, ज्याँ संगत नहिं जास्याँ।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, निरख-परख गुण गास्याँ।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | राणा | राणा विक्रमादित्य |
2. | गास्यां | गाऊँगी |
3. | चरणामित | चरणामृत |
4. | नेम | प्रण |
5. | निरत | निरंतर |
6. | घमकास्याँ | घम-घम बजावेंगें |
7. | झाझ | जहाज |
8. | बाड | कटीली झाड़ियाँ |
9. | संगत | संगति |
10. | जास्याँ | जायेंगे |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि “राणा विक्रमादित्य” मैं तो गोविंद के गुण गाऊँगी। हम तो चरणामृत का ही प्रण करेंगे। रोज उठकर दर्शन प्राप्त करने के लिये जाऊँगी और हरी के मंदिर में निरंतर घुँघुरू को घमकायेंगे।
हम तो श्रीराम नाम रूपी जहाज चलायेंगे तो इस संसार रूपी भवसागर को पार कर जायेंगे। यह कटीली झाड़ियों के काँटों के समान है, जिसकी संगति में नहीं जायेंगे। इस संसार की संगति में हम नहीं जायेंगे। संसार तो बाड के काँटे के समान है। मीरा के प्रभु गिरिधर नागर है, हमने निरख-परख लिया है और अब प्रभु के गुण गायेंगे।
पद : 95.
Meera Muktavali Explanation in Hindi
नहिं भावै थांरो देसड़लो रंग-रूड़ो,
थांरा देसां में राणा ! साध नहीं छै, लोग वसै सब कूड़ो।
गहणा-गाँठा हम सब ताग्या, ताग्यो कर रो चूड़ो।।
काजळ-टीकी हम सब ताग्या, ताग्यो बांधन जूड़ो।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, वर पायो छै पूरो।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | भावै | अच्छा लगना |
2. | रंग-रूड़ो | सुंदर रंग वाला |
3. | साध | साधु |
4. | वसै | बसते हैं |
5. | ताग्या | त्याग दिया है |
6. | बांधन | बांधने वाला |
7. | जूड़ो | केशपाश |
8. | पूरो | पूर्ण |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि जो आपका सुंदर रंगों वाला देश है, यह मुझे नहीं भाता। मीरा बाई राणा को संबोधित करती हुई कह रही है कि मुझे आपका यह सुंदर देश अच्छा नहीं लगता है। आपके देश में साधुओं के लिये सत्संगति के लिये कोई स्थान नहीं है। यहाँ सब लोग कूड़े के समान है, जो विषय-वासनाओं में पड़े रहते है। ये जो गहने-गाँठे है, वो हमने त्याग दिये हैं और हमने हाथ के चूड़ा का भी त्याग कर दिया है।
यह काजल, बिंदी, भौतिक प्रसाधन हमने त्याग दिये हैं। हमने बाँधने वाला जोड़ा भी त्याग दिया है। मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हैं, जहाँ कोई कमी नहीं है। यहाँ सब त्रुटिहीन है, सब कुछ पूरा है। मीरा ने अब शाश्वत प्रभु गिरिधर नागर को पा लिया है।
इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 91-95 पदों की व्याख्या शब्दार्थ सहित समझी। अब हम इसके अगले अंक में अंतिम रूप से 95-100 तक के पदों की व्याख्या लेकर फिर से हाज़िर होंगे। तब तक जुड़े रहिये हमारे साथ। धन्यवाद !
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