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  • Meera Muktavali Explanation मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या (91-95)

    Meera Muktavali Explanation मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या (91-95)

    Meera Muktavali Explanation मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या (91-95)


    Meera Muktavali Explanation-Narottam Das (91-95) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम फिर से नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले पदों की व्याख्या लेकर हाजिर है। तो चलिए आज इसके अगले 91-95 पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या समझते है :

    नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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    Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (91-95)


    Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Explanation 91-95 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 91 से लेकर 95 तक के पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या निम्नानुसार है :

    पद : 91.

    Meera Muktavali Explanation 91-95 Pad in Hindi

    सतगुरु ! म्हारी प्रीत निभाज्यो जी,
    थे छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
    लेकिन धीजै, मन न पतीजै, मुखड़ा रा सबद सुणाज्यो जी।।
    मैं तो दासी जनम-जनम की, म्हारै आँगणि रमता आज्यो जी।
    मीरां के प्रभु हरि अविनासी, बेड़ों पार लगाज्यो जी।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1. निभाज्यो जीनिभा जाना जी
    2.म्हारीमेरी
    3.मति नहीं
    4.जाज्योध्यान देना
    5.ओगणअवगुण
    6.म्हारुंमेरा
    7.पतीजै विश्वास
    8.दीजैआश्वस्त नहीं होता
    9.आँगणि आंगन
    10.बेड़ों पारकाम सिद्ध करना
    11.रमताविचरण करते हुये आ जाना

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि हे सतगुरु ! मेरी प्रीत निभा जाना जी। हे गुरु ! आप तो मेरे गुणों के सागर हो, हमारे अवगुण पर ध्यान मत देना जी। यह संसार आश्वस्त नहीं होता, मन विश्वास नहीं कर पाता। आप अपने मुख से ही ज्ञान के शब्द सुना जाओ जी।

    हे गुरु ! यह संसार हमें आश्वस्त नहीं कर पाता है और मन में अब विश्वास नहीं बचा है। अब विश्वास का एकमात्र आधार आपके शब्द ही है। मीरा तो आपकी जन्म-जन्म की दासी है। मेरे घर आप विचरण करते हुए पधारिये। आप तो अविनाशी है, हमारे काम को सिद्ध कर दीजिये। हमारी नैया को पार लगा दीजिये।

    पद : 92.

    Meera Muktavali Explanation-Narottamdas Swami in Hindi

    म्हांरा सतगुर ! वेगा आज्यो जी।
    म्हारै सुख री सीर बुवाज्यो जी।।
    तुम वीछडियो दुख पाऊं जी।
    मेरा मन मांही मुरझाऊं जी।।
    मैं कोइल ज्यूं कुरलाऊँ जी।
    कुछ बाहरि कहि न जणाऊँ जी।।
    मोहि बाघण विरह संजावै जी।
    कोई कहिया पार न पावै जी।।
    ज्यूँ जल त्याग्या मीना जी।
    तुम दरसण विन खीना जी।।
    ज्सूं चकवी रैण न भावै जी।
    वा ऊँगो भाण सुहावै जी।।
    ऊँ दिन कबै करोला जी।
    म्हारै आँगण पाँव धरोला जी।।
    अरज करे मीरां दासी जी।
    गुर-पद-रज की मैं प्यासी जी।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.वेगाशीघ्र
    2.सीर हल्की रेखा
    3.बुवाज्योबुवाना
    4.कुरलाऊँकरुण स्वरमें बोलना
    5.जणाऊँजताना
    6.संजावैसताती है
    7. रैणरात्रि
    8.ऊँगोउदित
    9.भाणसूर्य
    10.करोला करेंगे
    11.अरज प्रार्थना
    12.रजधूल
    13.प्यासीअभिलाषा रखने वाली

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि हे सतगुरु ! आप जल्दी आ जाइये जी। हमें सुख के खेत में सुख की हल्की रेखा बुवा जाइये जी । आप बिछड़ गये तो मैं बहुत ही दु:ख पा जाऊँगी और मैं मन ही मन में मुरझा जाऊँगी। मैं कोयल की तरह हूँ, जो करुण स्वर में बोलती हूँ। मैं अपनी वेदना को बाहर जता नहीं सकती हूँ। मुझे विरह रूपी बाघण सता रही है। कोई कहता है कि तुम संसार से पार नहीं हो पाओगी, इस विरह वेदना से मुक्ति नहीं मिल पायेगी।

    जैसे मछली जल को त्याग करके कष्ट उठाती है, वैसे ही आपके दर्शन के बिना मैं क्षीण होती जा रही हूँ। जैसे चकवी को रात्रि नहीं सुहाती है और रात्रि में वह अपने चेकवे से बिछुड जाती है एवं सूर्य की किरण के साथ मिल जाती है। चकवी को तो उदित सूर्य ही सुहाता है। रात्रि उसको अच्छी नहीं लगती है। मेरे लिये वह दिन कब लाओगे, जिस दिन आप मेरे आंगन में पैर रखोगे। मीराबाई प्रार्थना कर रही हैं कि हे प्रभु ! मैं तो आपकी दासी हूँ। मैं तो गुरु के पाँव की धूल की प्यासी हूँ।

    पद : 93.

    Meera Muktavali Explanation Shabdarth Sahit in Hindi

    री ! मेरे पार निकस गया,
    सतगुर मारया तीर।
    विरह भाल लगी उर अन्तरि, व्याकुल भया सरीर।।
    इत-उत चित चलै नहिं कबहूँ, डारी प्रेम-जँजीर।
    कै जाणै मेरो प्रीतम प्या‍रो, और न जाणै पीर।।
    कहा करूँ, मेरो वस नहिं सजनी ! नैन झरत दोउ नीर।
    मीरां कहै, प्रभु तुम मिळियॉँ विन, प्राण धरत नहिं धीर।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.तीरज्ञानोपदेश का बाण
    2.भाल नोंक
    3.अन्तरिभीतर
    4.चित चलैचित्त की चंचलता
    5.डारीडाल दी
    6.पीरदर्द
    7.वसवश
    8.नीरजल
    9.धीरधैर्य

    व्याख्या :

    दोस्तों ! मीरा बाई कहती है कि सतगुरु ने मुझ पर तीर अर्थात् ज्ञानोपदेश का बाण चलाया है। मेरे हृदय के अंदर विरह की नोंक लग गई है और उस विरह से मेरा शरीर व्याकुल हो रहा है। अब मेरे चित्त की चंचलता नहीं रही। वह अब इधर-उधर नहीं भागता है, क्योंकि गुरु ने मुझे प्रेम रूपी जंजीर से बांध लिया है। मेरा चित्त अब स्थिर हो गया है।

    मीराबाई कहती है कि मेरा प्रियतम ही इस दर्द को जानता है। कोई दूसरा इसको नहीं जानता है। अपनी सखी से मीराबाई कहती है कि अब बस दोनों आंखों से नीर झरता रहता है। हे प्रभु ! अब आप मुझे मिल जाइये, क्योंकि आपके मिले बिना मेरे प्राणों को धैर्य नहीं मिलेगा।

    पद : 94.

    Meera Muktavali Explanation with Hard Meanings in Hindi

    राणाजी ! म्हे तो गोविन्द का गुण गास्यां।
    चरणामित को नेम हमारे, नित उठ दरसण जास्याँ।।
    हरि मंदिर में निरत करास्याँ, घुँघरियाँ घमकास्याँ।
    राम-नाम का झाँझ चलास्याँ, भव सागर तर जास्याँ।।
    यो संसार बाड़ का काँटा, ज्याँ संगत नहिं जास्याँ।
    मीरां के प्रभु गिरधर नागर, निरख-परख गुण गास्याँ।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.राणा राणा विक्रमादित्य
    2.गास्यांगाऊँगी
    3.चरणामितचरणामृत
    4.नेमप्रण
    5.निरतनिरंतर
    6. घमकास्याँघम-घम बजावेंगें
    7.झाझजहाज
    8.बाडकटीली झाड़ियाँ
    9.संगतसंगति
    10.जास्याँजायेंगे

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि “राणा विक्रमादित्य” मैं तो गोविंद के गुण गाऊँगी। हम तो चरणामृत का ही प्रण करेंगे। रोज उठकर दर्शन प्राप्त करने के लिये जाऊँगी और हरी के मंदिर में निरंतर घुँघुरू को घमकायेंगे।

    हम तो श्रीराम नाम रूपी जहाज चलायेंगे तो इस संसार रूपी भवसागर को पार कर जायेंगे। यह कटीली झाड़ियों के काँटों के समान है, जिसकी संगति में नहीं जायेंगे। इस संसार की संगति में हम नहीं जायेंगे। संसार तो बाड के काँटे के समान है। मीरा के प्रभु गिरिधर नागर है, हमने निरख-परख लिया है और अब प्रभु के गुण गायेंगे।

    पद : 95.

    Meera Muktavali Explanation in Hindi

    नहिं भावै थांरो देसड़लो रंग-रूड़ो,
    थांरा देसां में राणा ! साध नहीं छै, लोग वसै सब कूड़ो।
    गहणा-गाँठा हम सब ताग्या, ताग्यो कर रो चूड़ो।।
    काजळ-टीकी हम सब ताग्या, ताग्यो बांधन जूड़ो।
    मीरां के प्रभु गिरधर नागर, वर पायो छै पूरो।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.भावैअच्छा लगना
    2.रंग-रूड़ोसुंदर रंग वाला
    3.साधसाधु
    4.वसैबसते हैं
    5.ताग्यात्याग दिया है
    6. बांधनबांधने वाला
    7.जूड़ोकेशपाश
    8.पूरोपूर्ण

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि जो आपका सुंदर रंगों वाला देश है, यह मुझे नहीं भाता। मीरा बाई राणा को संबोधित करती हुई कह रही है कि मुझे आपका यह सुंदर देश अच्छा नहीं लगता है। आपके देश में साधुओं के लिये सत्संगति के लिये कोई स्थान नहीं है। यहाँ सब लोग कूड़े के समान है, जो विषय-वासनाओं में पड़े रहते है। ये जो गहने-गाँठे है, वो हमने त्याग दिये हैं और हमने हाथ के चूड़ा का भी त्याग कर दिया है।

    यह काजल, बिंदी, भौतिक प्रसाधन हमने त्याग दिये हैं। हमने बाँधने वाला जोड़ा भी त्याग दिया है। मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हैं, जहाँ कोई कमी नहीं है। यहाँ सब त्रुटिहीन है, सब कुछ पूरा है। मीरा ने अब शाश्वत प्रभु गिरिधर नागर को पा लिया है।

    इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 91-95 पदों की व्याख्या शब्दार्थ सहित समझी। अब हम इसके अगले अंक में अंतिम रूप से 95-100 तक के पदों की व्याख्या लेकर फिर से हाज़िर होंगे। तब तक जुड़े रहिये हमारे साथ। धन्यवाद !


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  • मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali (86-90)

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali (86-90)

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali (86-90)


    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali-Narottam Das (86-90) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम फिर से नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले पदों की व्याख्या लेकर हाजिर है। तो चलिए आज इसके अगले 86-90 पदों का शब्दार्थ सहित सार समझते है :

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    Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (86-90)


    Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 86-90 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 86 से लेकर 90 तक के पदों का शब्दार्थ सहित सार निम्नानुसार है :

    पद : 86.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali Ke 86-90 Pad in Hindi

    चालां वाही देस, प्रीतम पावां,
    चालां वाही देस।
    कहो कसुमल साड़ी रंगावाँ, कहो तो भगवां भेस।।
    कहो तो मोतियान माँग भरावाँ, कहो छिटकावाँ केस।
    मीरां के प्रभु गिरधर-नागर, सुणज्यो बिड़द नरेस।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.चालां चलो
    2. पावांपायेंगे
    3.कसुमलपीला रंग
    4.भरावाँभर लूँ
    5.छिटकावाँबिखेर लूँ
    6.सुणज्यो सुन लो
    7.बिड़दविरुदधारी प्रियतम

    व्याख्या :

    दोस्तों ! मीराबाई अपने मन से कहती है कि हे मन ! उसी देश में चलो, जहाँ हम प्रीतम को पा सके अर्थात् जहाँ मेरे प्रियतम रहते हैं, वहाँ हम प्रियतम को पायेंगे।

    मीरा बाई अपने अनन्य समर्पण शीलता को प्रदर्शित करती हुई कहती है कि हे मेरे प्रभु ! यदि आप कहो तो अपनी साड़ी को कुसुमी रंग में रंगा लूँगी और आप कहो तो मैं भगवा वेश धारण कर लूँगी। आप जिस रूप में मिलना चाहो, मैं वैसा भेष धारण कर लूँगी।

    आप कहो तो मैं मोतियों से अपनी मांग भर लूँ और कहो तो मैं अपने बालों को बिखेर लूँगी। मीराबाई कहती है कि हे विरुदधारी प्रियतम राजा ! आप मेरी सुन लो और दर्शन देकर मुझे अपनी शरण में ले लो।

    पद : 87.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali Bhav – Narottamdas Swami in Hindi

    गळी तो चारों बंद हुई,
    मैं हरि से मिलूं कैसे जाइ?
    ऊंची-नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराइ।
    सोच-सोच पग धरूं जतन से, बार-बार डिग जाइ।।
    ऊंचा-नीचा महल पिया का, म्हांसूं चढ़्‌या न जाइ।
    पिया दूर, पंथ म्हारा झीणा, सुरत झकोळा खाइ।।
    कोस-कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़-पैंड़ वटमार।
    हे विधना, कैसी रच दीनी, दूर वस्यो म्हांरो गाम।।
    मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सतगुरु दयी वताइ।
    जुगन-जुगन से विछड़ी मीरां, घर में लीनी आइ।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.गळीरास्ता/मार्ग
    2.लपटीलीरपटने वाली
    3.ठहराइटिकता है
    4.जतनप्रयत्न
    5.डिग जाइविचलित हो जाता है
    6.झीणासंकरा
    7. सुरतध्यान
    8.पैंड-पैंडपग-पग
    9.गाम गाँव
    10.जुगन-जुगन युग-युग
    11.लीनी आइ घर में ही लक्ष्य को पा लिया

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि चारों तरफ से रास्ता बंद है और मैं मेरे हरी से मिलूँ तो कैसे मिलूँ ? मार्ग बहुत ऊँचा-नीचा और रपटने वाला है और जैसे ही पाँव रखती हूँ तो पाँव भी उस स्थान पर नहीं ठहरता है। मैं सोच-सोचकर के प्रयत्न करके पाँव रखती हूँ और ये बार-बार विचलित हो जाता है।

    मेरे प्रिय का महल ऊँचा-नीचा है, जिस पर हमसे चढ़ा ही नहीं जाता है। मेरे प्रिय बहुत दूर है मुझसे और रास्ता बहुत संकरा है, जिस पर मैं झकोर खाती हूँ अर्थात् मेरा ध्यान स्थिर नहीं हो पाता है। कोस-कोस पर पहरेदार बैठे हैं और पग-पग पर लुटेरे/ठग बैठे हुये हैं। हे विधाता ! तूने यह कैसा रचा है, मेरा गाँव मेरे प्रियतम से बहुत दूर बसा हुआ है।

    मीराबाई कहती है कि मीरा के प्रभु तो गिरिधर नागर है। मेरे सतगुरु ने मुझे यह बात अच्छे से बता दी कि प्रभु से मिलन जुगत कैसे होगी ? युगो-युगो से बिछड़ी हुई मीरा ने अपने प्रियतम से घर में ही मिलन कर लिया। घर में ही आकर लक्ष्य को पा लिया अर्थात् अपनी ही आत्मा में परमात्मा का आभास कर लिया।

    पद : 88.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali Saar Shabdarth Sahit in Hindi

    चालो अगम के देस।
    काळ देखत डरै।।
    वहां भरा प्रेम का हौज, हंस केळा केसै।
    ओढ़ण लज्जा चीर, धीरज को घाघरो।।
    छिमता कांकण हाथ, सुमत को मूंदसो।
    दिल दुलड़ी दरियाव, साँच को दोवड़ो।।
    उबटन गुरु को ग्यान, ध्यान को धोवणो।
    कान अखोटा ग्यान, जुगत को झूटणो।।
    बेसरि हरि को नाम, चूड़ो चित को घूंघरो।
    बिंदली गज और हार, तिलक गुरु-ग्यान को।।
    सजि सोळह सिणगार, पहरि सोनै राखड़ी।
    साँवळिया सूं प्रीत, औरां सूं आखड़ी।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.अगम अगम्य
    2.हौजपानी का तालाब
    3.केळा क्रीडा
    4.चीरवस्त्र
    5.छिमता क्षमता
    6.सुमतसुबुद्धि
    7.मूंदसोअंगूठी
    8.दरियावसमुन्द्र
    9.धोवणो धुलाई
    10.अखोटाकान का भूषण
    11.जुगत युक्ति
    12.झूटणोझुमका
    13.बेसरिनाक का आभूषण
    14.राखड़ीसिर का गहना
    15.आखडीविरक्ति

    व्याख्या :

    दोस्तों ! मीराबाई कहती है कि चलो, उस अगम्य प्रभु के देश। यह वह देश है, जहाँ काल भी उसको देखते हुये डरता है। वहाँ प्रेम रूपी पानी का तालाब है, वहाँ हँस क्रीड़ा करते हैं। जीव आत्मा रूपी हँस प्रभु के प्रेम रूपी तालाब में क्रीड़ा करते है। मैं लज्जा रूपी वस्त्र की ओढ़नी बना लूँगी और धीरज रूपी घाघरा पहन लूँगी तथा क्षमता रूपी कंगन हाथ में धारण कर लूँगी।

    सुबुद्धि रुपी अँगूठी को धारण करुँगी और मेरा विस्तृत उदार हृदय दो लड़ी माला के समान है। सत्य रूपी (दोवडो) आभूषण को धारण करुँगी। ज्ञान रूपी उबटन को लगाऊँगी और ध्यान रुपी धुलाई करुँगी। ज्ञान रूपी कान का अखोटा आभूषण पहनूँगी और ईश्वर प्राप्ति की युक्ति रूपी झुमका पहनूँगी।

    अपने नाक में बेसरि को हरी का नाम बना लूँगी और चित्त रूपी चूड़ा धारण करुँगी। बिंदी और हार को ज्ञान का प्रतीक मानूँगी। गुरु-ज्ञान रूपी माथे का तिलक मैं धारण करुँगी। मैं सोलह श्रृंगार की सजावट लूँगी और सिर का गहना (राखड़ी) को पहनूँगी। यह सब श्रृंगार पहनकर मैं साँवरियाँ से प्रेम करुँगी और सब से विरक्ति कर लूँगी।

    पद : 89.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali Saar with Hard Meanings in Hindi

    वडै घर ताळी लागी रे।
    म्हारा मन री उणारथ भागी रे।।
    छीलरियै म्हारो चित नहीं रे, डाबरियै कुण जाव।
    गंगा-जमना सूं काम नहीं रे, मैं तो जाइ मिलूँ दरियाव।।
    हळयां-मोळयां सूं काम नहीं रे, सीख नहीं सिरदार।
    कामदारां सूं काम नहीं रे, लोहा चढ़ै सिर भार।।
    काथ-कथीर सूं काम नहीं रे, लोहा चढ़ै सिर भार।
    सोना-रूपा सूं काम नहीं रे, म्हारे हीरां रो वौपार।।
    भाग हमारे जागियो रे, भयो समँद सूँ सीर।
    इमरत-प्याला छाँड़ि कै, कुण पीवै कड़वो नीर।।
    पीपा कूँ प्रभु परचो दीन्हौ, दिया रे खजीना पूर।
    मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, धणी मिल्या छै हजूर।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1. ताळीसंबंध हो गया
    2.छीलरियै छिछली तलैया
    3.सिरदारसामंत
    4.रूपा चाँदी
    5.वौपारव्यापार
    6.भागभाग्य
    7.सीर संबंध
    8.इमरतअमृत
    9.कुणकौन
    10.परचोचमत्कार
    11.पूरपूरा भर दिया
    12.हजूर स्वयं भगवान

    व्याख्या :

    मीराबाई कह रही है कि बड़े घर से संबंध हो गया है। बड़े घराने वाले व्यक्ति से संबंध हो गया है। मेरे मन की लालसा भाग गयी है। मेरा मन बहुत गहरा है। वह छिछली तलैया नहीं है। डाबरिया अर्थात् पानी से भरा हुये छोटे गड्ढे में कौन जायेगा?

    ईश्वरीय प्रेम बहुत गहरा है। गंगा-जमुना से मेरा काम नहीं चलेगा रे। मैं तो जाकर समंदर से मिलूँगी। हाली-मुहाली (खेत पर काम करने वाले किसान) से कोई काम नहीं है। सामंतो से भी संबंध नहीं है। जागीरो का बंदोबस्त करने वाले प्रधानों से मेरा कोई काम नहीं है। यह अतिरिक्त भार अब मैं धारण नहीं करूँगी।

    कम मूल्य की हल्की धातु से मेरा काम नहीं है। यह सिर पर भार के समान लगती है। अनावश्यक सिर पर भार मैं नहीं रखूँगी। सोना-चांदी से भी कोई काम नहीं है, क्योंकि हमारा व्यापार तो हीरों से है अर्थात् श्रीकृष्ण रूपी हीरों से व्यापार करती हूँ। हमारा भाग्य तो जाग गया है, क्योंकि समुद्र से संबंध हो गया है।

    मीराबाई कहती है कि प्रभु की भक्ति का अमृत प्याला छोड़कर ये कौन कड़वा जल पियेगा। हे प्रभु ! आपने संत पीपा को चमत्कार दिखाया और खजाना पूरा भर दिया। ईश्वरीय प्रेम रूपी खजाने से परिपूर्ण कर दिया है। मीरा के प्रभु गिरिधर नागर ! आप तो मुझे स्वयं मिल गये हैं। मेरे स्वामी मुझे मिल गये हैं।

    पद : 90.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ सार Meera Muktavali Saar in Hindi

    मोहि लागी लगन गुरु-चरणन की।
    चरन विना कछुवै नहि भावै, जग-माया सब सपनन की।।
    भव-सागर सब देख लियो है, फिकर नहीं मोहे तरनन की।
    मीरां के प्रभु गिरिधर नागर, आस वही गुरु-सरनन की।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.मोहिमुझे
    2.लागीलग गई है
    3.कछुवै कुछ भी
    4.भावैभाता है
    5.सपनन कीसपनों की
    6.फिकरचिंता करना
    7.तरननसंसार सागर को पार करने की
    8.आसआशा

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि मुझे गुरुजी के चरणों से प्रेम की लगन लग गई है। गुरुजी के चरणों के बिना कुछ भी मुझे नहीं भाता है। संसार की ये जो माया है, सपनों की है। स्वपन जितनी झूठी, ये माया है। संसार रूपी सागर को देख लिया है। अब मुझे संसार सागर को पार करने की चिंता नहीं है। गुरु के शरण की ही आशा शेष है।

    इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 86-90 पदों का सार शब्दार्थ सहित समझा। फिर मिलते है कुछ नये महत्वपूर्ण पदों के साथ।


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  • मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali (81-85)

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali (81-85)

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali (81-85)


    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali-Narottam Das (81-85) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! हमेशा की तरह आज भी हम नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले पदों की व्याख्या लेकर हाजिर है। तो चलिए आज इसके अगले 81-85 पदों का शब्दार्थ सहित भाव समझते है :

    नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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    Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (81-85)


    Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 81-85 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 81 से लेकर 85 तक के पदों का शब्दार्थ सहित भाव निम्नानुसार है :

    पद : 81.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali Ke 81-85 Pad in Hindi

    मैंने राम रतन धन पायो।
    वसत अमोलक दी मेरे सतगुर, करि किरपा अपणायो।।
    जनम-जनम की पूँजी पायी, जग मैं सबै खोवायो।
    चरचै नहिं कोई चोर न लेवे, दिन-दिन वधत सवायो।।
    सत की नींव खेवठिया सतगुर, भवसागर तरि आयो।
    मीरां के प्रभु गिरधर नागर, हरखि-हरखि जस गयो।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.वसतवस्तु
    2.अमोलकअमूल्य
    3.सबैसभी
    4.खोवायो खो दिया है
    5.नींवनाव
    6.खेवठियाखेने वाला कर्णधार

    व्याख्या :

    दोस्तों ! मीरा कह रही है कि मैंने तो राम-रत्न रूपी धन पा लिया है। यह अमूल्य वस्तु मुझे मेरे सतगुरु ने दी है और मैंने इसे अपने पर कृपा समझ करके अपना लिया है। मैंने तो जनम-जनम की पूँजी को पा लिया और मैंने इस जगत के सभी सांसारिक सुखों को खोकर ही राम-रत्न रूपी धन को पाया है।

    ये ऐसी पूँजी है, जो कभी खर्च नहीं होगी। कोई चोर इसको चुरा नहीं सकता है और ये दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है। इस सत की नाव को खेने वाले सतगुरु हैं। अब मैं इस संसार रूपी भवसागर को पार कर जाऊँगी।

    मीराबाई कहती है कि हे मीरा के प्रभु गिरिधर नागर ! यह मीरा अपने प्रभु के यश का गायन प्रसन्न-प्रसन्न होकर के करती है।

    पद : 82.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali Bhav – Narottamdas Swami in Hindi

    मेरो मन राम-हि-राम रटै,
    राम-नाम जप लीजै प्राणी ! कोटिक पाप कटै।
    जनम-जनम के खत जु पुराने, नामहि लेत फटै।।
    कनक-कटोरे इमरत भरियो, पीवत कूण नटै।
    मीरां के प्रभु हरि अविनासी तन मन ताहि पटै।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.रटैरटता है
    2.कोटिककरोड़ों
    3.इमरतअमृत
    4.कूणकौन
    5.पटैअधीन
    6.ताहिउसके

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि मेरा मन तो केवल श्रीकृष्ण-श्रीकृष्ण (श्रीराम) ही रटता रहता है। अरे प्राणी अपने प्रभु का नाम जप लो, तुम्हारे करोड़ों पाप मिट जायेंगे। जो तुम्हारे जन्म-जन्म के पुराने कर्मों के चिट्ठे हैं, वे सब फट करके नष्ट हो जायेंगे।

    मीरा कहती है कि आपके सोने के कटोरे जैसे शरीर में प्रेम रूपी अमृत भरा हुआ है। इसको पीने से कौन मना करेगा ? हे मीरा के प्रभु ! आप हरि अविनाशी है। अब मैं तन-मन को आप के अधीन करती हूँ।

    पद : 83.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali Bhav Shabdarth Sahit in Hindi

    नहिं अैसो जनम वारंवार।
    का जानूं, कछू पुण्य प्रगटे मानुसा अवतार।।
    बधत छिन-छिन, घटत पल-पल, जात न लागै वार।
    बिरछ के ज्यों पात टूटे, बहुरि न लागै डार।।
    भौसागर अति जोर कहियै, अनंत ऊंडी धार।
    राम-नाम का बांध बेड़ा, उतर परले पार।।
    ग्यान-चौसर मंडी चोहटे, सुरत पासा पार।
    या दुनिया में रची बाजी, जीत भावैं हार।।
    साधु संत महंत ग्यानी चलत करत पुकार।
    दासि मीरां लाल गिरधर, जीवणो दिन च्यार।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.मानुसामनुष्य
    2.बधतआयु बढ़ना
    3.वारदेर
    4.बिरछवृक्ष
    5.भौसागरभव रूपी सागर
    6.ऊंडीगहरी
    7.बेड़ानाव
    8.परलेउस पार
    9.मंडीबिछी है
    10.चोहटेबाजार

    व्याख्या :

    कवयित्री मीराबाई कहती है कि ऐसा जन्म बार-बार नहीं मिलता है। यह जो मनुष्य रूपी देह मिली है, यह बार-बार नहीं मिलती है। तुम्हें क्या पता, कुछ बड़े पुण्य पुराने जन्म में किये थे, जो यह मानव जीवन तुमको मिला है।

    तुम्हें क्या, पता क्षण-क्षण में यह आयु बढ़ती जा रही है और जीवन पल-पल घटता जा रहा है, ऐसे कम होते हुये इसे देर भी नहीं लग रही है। जैसे वृक्ष के पत्ते टूट जाते हैं और फिर दोबारा वे डाली पर नहीं लगते हैं। वैभव रूपी सागर अत्यंत प्रबल है। इसकी धार बहुत गहरी है और डूबने की पूरी पूरी संभावना है।

    मीरा बाई आगे कहती हैं कि राम-नाम रूपी नाव बना ले, यदि तुझे संसार रूपी भवसागर से पार जाना है और उस पार उतरना है। ज्ञान रूपी चौसर का खेल बाजार में बिछा हुआ है। तू उस खेल को खेल तथा श्रीराम के ध्यान रूपी पाशे फेंक और उस पार हो जा। इस दुनिया में यह खेल बना हुआ है, अब कोई जीते या चाहे हारे।

    मीराबाई कह रही है कि साधु-संत लोग और महन्त लोग चलते हुये पुकार कर रहे हैं कि ईश्वर के चरणों में ध्यान लगाओ और अपने इस मानव देह के जीवन को ऐसे ही नष्ट मत करो।

    मीरा कहती है कि मैं तो दासी हूँ, अपने प्रभु की और यहाँ तो केवल 4 दिन का यह जीवन है। यह संसार नश्वर है, इसलिए अपने श्रीकृष्ण जी से भक्ति कर लो और अपने जीवन को हमेशा-हमेशा के लिए सफल बना लो।

    पद : 84.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali Bhav with Hard Meanings in Hindi

    लागि मोहि राम-खुमारी हो !
    रिमझिम वरसै मेहड़ा, भीजै तन सारी हो।
    चहुँदिस चमकै दामणी, गरजै घन भारी हो।।
    सतगुर भेद बताइया, खोली भरम-किंवारी हो।
    सब घट दीसै आतमा, सबही सूँ न्यारी हो।।
    दीपग जोऊँ ग्यान का, चढूँ अगम-अटारी हो।
    मीरां दासी राम की, इमरत बलिहारी हो।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.मोहिमुझे
    2.खुमारीनशे की मस्ती
    3.मेहड़ावर्षा
    4.सारीसंपूर्ण
    5.दामणीबिजली
    6.भेदरहस्य
    7.भरम भ्रम
    8.किंवारीभ्रम रूपी द्वार
    9.घटतन
    10.दीसैदिखलाई देती है
    11.न्यारीनिराली
    12. जोऊँजलाना
    13.अगम-अटारीअगम्य रूपी अटारी (ईश्वरीय लोक)
    14.इमरतअमृत

    व्याख्या :

    मीरा बाई कह रही है कि मुझे श्रीराम या श्रीकृष्ण नाम की खुमारी लग गई है और ईश्वर के प्रेम जल की वर्षा में मेरा संपूर्ण अंतर्मन भीग रहा है। चारों दिशाओं में बिजली चमक रही है और बादल भारी गर्जना कर रहे हैं। सतगुरु इस रहस्य को बता रहे हैं कि भ्रम के द्वार को खोल दो।

    मीराबाई कहती है कि सभी शरीर में आत्मा दिखलाई देती है। जो आत्मा, परमात्मा के रंग में रंग गई है, वह तो सबसे निराली दिखलाई देगी। मैं ज्ञान रूपी दीपक जलाऊँगी और अगम्य रुपी अटारी पर चढ़ जाऊँगी, जो ईश्वरीय लोक है, उस पर मैं चढ जाऊँगी। मीरा अपने श्रीकृष्ण जी की दासी है और प्रभु श्रीकृष्ण जी के प्रेम रुपी अमृत पर बलिहारी जाती हूँ।

    पद : 85.

    मीरा मुक्तावली का शब्दार्थ भाव Meera Muktavali Bhav in Hindi

    वाला ! मैं वैरागण हूंगी।
    जिहि-जिहि भेख मेरो साहब रीझै, सोइ-सोइ भेख करूंगी।।
    सील संतोस धरूं घर भीतर, समता पकड़ रहूंगी।
    प्रेम-प्रीती सूं हरि-गुण गाऊं, चरणन लिपट रहूंगी।।
    या तन की मैं करूं किंगरी, रसना राम कहूंगी।
    मीरां के प्रभु गिरधर नागर, साधां संग रहूंगी।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.वैरागणवैराग्य
    2.भेख वेश
    3.रीझैप्रसन्न
    4.सीलचरित्र
    5.घर हृदय
    6.किंगरी एक तांत का बाजा
    7.रसनाजीभ
    8.सांधासाधुओं

    व्याख्या :

    मीराबाई कह रही है कि हे वल्लभ (श्री कृष्ण) ! मैं आपके प्रेम में वैराग्य ले लूँगी। जिस-जिस वेशभूषा में मेरे श्रीकृष्ण जी प्रसन्न होंगे, मैं वैसा-वैसा ही वेश धारण करुँगी। चरित्र, संतोष को मैं अपने हृदय के भीतर धारण करुँगी और समता के भाव को पकड़ूँगी।

    सुख व दु:ख में समान भाव रहूँगी। इस तन को मैं किंगरी (ताँत का बाजा) बना दूँगी और जीभ से श्रीराम जी का नाम कहती रहूँगी। जो ईश्वर जी के भक्त हैं, उनके संग रहूँगी। मीरा कहती है कि मेरे प्रभु तो गिरधर नागर ही हैं, मैं तो उन्हीं के गुण गाऊँगी।

    इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 81-85 पदों का भाव शब्दार्थ सहित समझा। फिर मिलते है कुछ नये महत्वपूर्ण पदों के साथ।


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  • मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali (76-80)

    मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali (76-80)

    मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali (76-80)


    मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali-Narottam Das (76-80) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले 76-80 पदों की शब्दार्थ-व्याख्या करने जा रहे है। तो चलिये शुरु करते है :

    नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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    Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (76-80)


    Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 76-80 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 76 से लेकर 80 तक के पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या निम्नानुसार है :

    पद : 76.

    मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali Ke 76-80 Pad in Hindi

    मेहा ! वरसबो कर दे,
    आज तो रमइयो म्हारै घर रै।
    नान्ही-नान्ही बूँदन मेहा वरसै, सूखे सरवर भर रे।।
    बहुत दिनन पै प्रीतम पायो, बिछुड़न को माहि डर रे।
    मीरां कह अति नेह जुडायो, मैं लियो पुरबलो बर रे।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.मेहा वर्षा
    2.सरवरसरोवर
    3.पैके बाद
    4.माहिमुझे
    5.नेहप्रेम
    6.जुड़ायोजोड़ लिया है
    7.पुरबलोपूर्व जन्म
    8.बरवरदान

    व्याख्या :

    दोस्तों ! मीराबाई कह रही है कि अरे वर्षा ! अब बरसना शुरू कर दो। आज तो मेरे रमइया मेरे घर में है। नन्हीं-नन्हीं बूंदों में वर्षा बरस रही है और जो सूखे सरोवर हैं, उन्हें भर दो। बहुत दिनों के बाद मैंने प्रियतम को पाया है। अब मुझे डर लग रहा है कि प्रियतम मेरे से बिछड़ ना जाये।

    मीराबाई कहती है कि मैंने अत्यधिक प्रेम जोड़ लिया है। ये मेरा पूर्व जन्म का वरदान था, जो मैंने प्राप्त कर लिया है।

    पद : 77.

    मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali Vyakhya – Narottamdas Swami in Hindi

    आवो सहेल्यां ! रळी करां हे।
    पर-घर-गवण निवारि।।
    झूठा माणिक-मोतिया हे, झूठी जगमग जोति।
    झूठा सब आभूखणा हे, सांचि पियाजी री पोति।।
    झूठा पाट-पटंबरा हे, झूठा दिखणी चीर।
    सांची पियाजी री गूदड़ी हे, निरमळ करे सरीर।।
    छप्पन भोग बहाइ दे हे, इन भोगण में दाग।
    लूण-अलूणो ही भलो हे, अपणै पियाजी रो साग।।
    देखि विराणै निवाण कूँ हे, क्यूँ उपजावै खीज।
    कालर अपणो ही भलो हे, जामें निपजै चीज।।
    छैल बिराणो लाख को हे, अपणै काज न होइ।
    वा कै संग सिधारतां हे, भलो न कहसी कोइ।।
    अविनासी सू वालभा हे, जिणसूं सांची प्रीति।
    मीरां कूं प्रभु मिल्या हे, अेहि भगति की रीत।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.रळी आनंद
    2.निवारिरोक दो / छोड़ दो
    3.जातिज्योति
    4.आभूखणाआभूषण
    5.सांचिसच्ची
    6.पोतिपोत की माला
    7.चीरवस्त्र
    8.पाट-पटंबरारेशमी वस्त्रादि
    9.बहाइ देछोड़ दो
    10.सागसब्जी
    11.बिराणैपराये
    12.निवाण नीची उपजाऊ भूमि
    13.कहसीकहेगा
    14.वालभावल्लभ
    15.जिणसूंउनसे
    16.अेहियही

    व्याख्या :

    मीराबाई कह रही है कि आओ मेरी सहेलियों ! मिल करके आनंद करें। अब दूसरों के घर नहीं जाना, अपने घर पर ही आनंद करना है। यह सब माणक-मोती झूठे हैं। यह जो जगमगाती ज्योति है, ये भी झूठी है। सब आभूषण झूठे है और सच्ची तो केवल पिया जी की पोत की माला है।

    ये जो कीमती रेशमी वस्त्र आदि हैं, ये सब झूठ है। पिया जी की तो गूदडी भी सच्ची है। जो प्रियतम की प्रेम-भक्ति है, वह तो शरीर को भी निर्मल कर देती है। आप इन छप्पन भोग को भी हटा दो, बहा दो। इनकी कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इन भोगों में तो दाग है। अपने पिया जी का तो नमक का या बिना नमक का साग भी अच्छा है।

    मीराबाई कहती है कि दूसरों की सुख-सुविधा को देखकर अपने मन में खींज क्यों करता है ? पराई, नीची उपजाऊ भूमि को देखकर क्यों खींजता है ? अपनी भूमि खरी ऊसर भी अच्छी है, जिसमें कोई भी वस्तु उत्पन्न होती हो। दूसरा, पराया चाहे लाख का हो, पर वह अपने किसी काम का नहीं है। पराये के साथ जाते हुये को कोई अच्छा नहीं कहेगा। यह तो गलत बात है।

    मीराबाई कहती है कि मेरी तो सच्ची प्रीत उनसे ही है, जो मेरे वल्लभ हैं अर्थात् श्रीकृष्ण जी है। यही भक्ति की पद्धति है, यही रीती है। अपने प्रियतम से एक निष्ठ प्रेम किया जाये और उससे कीमती कोई चीज नहीं होती, चाहे पराया लाख का हो।

    पद : 78.

    मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali Vyakhya Shabdarth Sahit in Hindi

    भज मन ! चरण कँवल अविनासी।
    जताइ दीसै धरणि-गगन विच, तेताइ सव उठ जासी।।
    इस देही का गरब न करणा, माटी में मिल जासी।
    यो संसार चहर की बाजी, साँझ पड्या उड़ जासी।।
    कहा भयो है भगवा पहरयाँ, घर तज भये संन्यासी।
    जोगी हुई जुगति नहिं जाणी, उलटि जन्म फिर आसी।।
    अरज करूँ अबळा कर जोरे, स्याम ! तुम्हारी दासी।
    मीरां के प्रभु गिरधर नागर ! काटी जम की फाँसी।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.जताइजितना भी
    2.दीसैदिखना
    3.धरणिधरती
    4.विचबीच
    5.उठ जासीनष्ट हो जायेगा
    6. चहरचौसर का खेल
    7.अरजप्रार्थना
    8.जमयमराज

    व्याख्या :

    मीराबाई अपने मन को संबोधित करते हुई कह रही है कि रे मन ! तू चरण-कमलों पर ध्यान लगा, जो अविनाशी है। धरती और आकाश के बीच में जितना भी दिख रहा है, वह सब नष्ट हो जायेगा। इस शरीर का कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। यह एक दिन माटी में मिल जायेगा।

    यह संसार चौसर का खेल है। सांझ होते ही यह उठ जायेगा। यह संसार नश्वरता प्रदर्शित कर रहा है। मीराबाई ऐसे लोगों को पर व्यंग्य कर रही है, जो सच्चे ईश्वर भक्त नहीं होते है और केवल वस्त्र-वेशभूषा धारण करके आडंबर करते हैं।

    इसलिए मीराबाई कहती है कि भगवा-वस्त्र धारण कर लेने से कोई ईश्वर का भक्त नहीं हो जाता है। घर को त्याग कर, जो सन्यासी बन जाता है, वह भी असली सन्यासी नहीं है। जोगी बनकर परमात्मा से मिलन की युक्ति जिसने नहीं जानी, वह फिर इसी जन्म-मरण के चक्कर में पड़ा रहेगा।

    मीराबाई कहती है कि हे प्रभु ! मैं अबला आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ। हे प्रभु ! मैं आपकी दासी हूँ। हे मेरे गिरधर नागर ! आप मेरे जन्म-मरण के फंदों से मुझे आजाद कर दीजिये। इस यम की फाँसी को भी काट दीजिये।

    पद : 79.

    मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali Arth with Hard Meanings in Hindi

    मन रे परसि हरि के चरण।
    सुभग सीतल कंवर-कोमल, त्रिविध ज्वाला हरण।।
    जिण चरण प्रहळाद परसे, इंद्र पदवी धरण।।
    जिण चरण ध्रुव अटल कीने, राखि अपनी सरण।
    जिण चरण ब्रह्मांड भेट्यो, नख-सिखा सिरि धरण।।
    जिण चरण प्रभु परसि लीने तरी गौतम धरण।
    जिण चरण काली नाग नाथ्यों, गोप-लीला करण।।
    जिण चरण गोवरधन धरयो, इंद्र को ग्रब हरण।
    दासि मीरां लाल गिरधर, अगम तारण-तरण।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.परसिस्पर्श
    2.त्रिविधीतीन ताप
    3.सुभगसुंदर
    4.सिरिश्री / शोभा
    5.तरीउद्धार
    6. नाथ्योंमथ दिया
    7.ग्रबगर्व
    8.अगमअगम्य

    व्याख्या :

    मीराबाई कह रही है कि हे मन ! हरि के चरणों का स्पर्श कर, ये बहुत ही सुंदर है और शीतलता प्रदान करने वाले हैं। ये कमल के समान कोमल है और तीनों तापों (दैहिक, दैविक एवं भौतिक) की ज्वालाओं का हरण करने वाले हैं। इन चरणों की भक्ति-भावना की तो इंद्र के समान पदवी प्रह्लाद को धारण करवा दी। जिन चरणों ने भक्त ध्रुव को अटल कर दिया और अपनी शरण में बनाये रखा, ये चरण तो शरणागत वत्सल हैं।

    इन चरणों ने संपूर्ण ब्रह्मांड से ही भेंट कर ली वामन अवतार में। इनके चरणों की नख-शिख पर श्री शोभायमान है। इन चरणों से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार हो गया। ये वही चरण है, जिन्होंने कालिया नाग को यमुना में मथ दिया एवं जिन्होंने गोप के संग ग्वाला बनकर के विचरण किया। ये वही चरण है, जिन्होंने गोवर्धन को धारण किया और इंद्र के गर्व का नाश किया। हे मेरे गिरधर नागर ! आप तो अगम्य उद्धारक है और मीरा आपकी दासी है।

    पद : 80.

    मीरा मुक्तावली शब्दार्थ व्याख्या Meera Muktavali Bhav in Hindi

    राम-नाम-रस पीजै,
    मनवा ! राम-नाम रस पीजै।
    तजि कुसंग सतसंग बैठि नित हरि चरचा सुणि लीजै।।
    काम क्रोध मद मोह लोभ कूँ चित से बहाय भीजै।
    मीरां के प्रभु गिरधर नागर, ता के रंग में भीजै।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.मनवामन
    2.तजित्याग दें
    3.चित् मन
    4.बहाय बाहर निकाल
    5.मदअहंकार

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि हे मन ! तू श्रीकृष्ण जी के नाम का रस पी लें । हे मन ! तू कुसंगति को त्याग दें और सत्संग में बैठ। हमेशा हरि की चर्चा सुनने में मन लगा। काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को अपने मन से निकाल दे और मेरे प्रभु श्री गिरिधर नागर के भक्ति-प्रेम रंग में भीग जा।

    इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 76-80 पदों की व्याख्या को शब्दार्थ सहित समझा। फिर मिलते है कुछ नये महत्वपूर्ण पदों के साथ।


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  • मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali (71-75)

    मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali (71-75)

    मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali (71-75)


    मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali-Narottam Das (71-75) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! जैसाकि हम पिछले कुछ दिनों से नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के पदों का विस्तार से अध्ययन कर रहे है। अब तक हम इसके करीब 70 पदों को अच्छे से समझ चुके है। इसी श्रृंखला में आज हम इसके अगले 71-75 पदों की व्याख्या करने जा रहे है। तो चलिये शुरु करते है :

    नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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    Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (71-75)


    Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 71-75 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 71 से लेकर 75 तक के पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या निम्नानुसार है :

    पद : 71.

    मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali Ke 71-75 Pad in Hindi

    सुणी मैं हरी आवण की आवाज।
    महल चढ़े-चढ़ी जोऊँ सजनी ! कब आवै महाराज।।
    दादुर मोर पपीहा बोलै कोयल मधुरे साज।
    उमग्यो इन्द्र चहुँ दिसी वरसै, दामण छंडी लाज।।
    धरती रूप नवा-नवा धरिया इन्द्र मिलण कै काज।
    मीराँ के प्रभु गिरधर नागर ! वेग मिलो महाराज।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.सुणीसुनी है
    2. आवणआने की
    3. जोऊँदेखना
    4.आवैआयेंगे
    5.दामणदामन
    6.छंडी त्याग दी
    7.लाजलज्जा
    8.वेगशीघ्र

    व्याख्या :

    मीराबाई कह रही है कि मैंने साजन के आने की आवाज सुनी है। हे सहेली ! मैं महल के ऊपर चढ़-चढ़कर के देख रही हूँ कि महाराज कब आ रहे है ? कोयल अपनी मधुरवाणी को सजाकर के बोल रही है और मेंढक एवं पपीहा बोल रहे है। इंद्रदेव अपनी उमंग में भरकर चारों दिशाओं में वर्षा कर रहे है।

    मीराबाई कहती है कि मैंने आपका दामन पकड़ लिया है, समस्त लज्जा को छोड़कर। धरती ने नये-नये रूप धारण कर लिये है, इंद्रदेव से मिलने के लिये। ऐसे मनमोहक समय में हे प्रभु ! आप आते है तो मेरे मन को अत्यधिक प्रसन्नता प्राप्त होगी। हे मीरा के प्रभु ! शीघ्र मिलिये।

    पद : 72.

    मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali Vyakhya – Narottamdas Swami in Hindi

    वदळा रे ! तूं जळ भरि आयो,
    छोटी-छोटी बूँदन वरसण लाग्यो कोयल सबद सुणायो।
    गाजै, वाजै पवन मधुरिया, अम्बर बदरा छायो।।
    सेज सवारी, पिय घर आये हिलि-मिलि मंगळ गायो।
    मीरां के प्रभु गिरधर नागर, भाग भलो जिन पायो।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.वरसण बरस रही है
    2.गाजैगर्जना
    3.वाजैचलना
    4.सेजशैय्या
    5.सवारीसंवारना
    6.हिलि-मिलि मिल-जुलकर
    7.भागभाग्य
    8. भलो अच्छा
    9.जिनजिन्होंने

    व्याख्या :

    मीराबाई कह रही है कि अरे बादल ! तू जल भर के ले आया। छोटी-छोटी बूँदे बरस रही है। आकाश में बादल छाये हुये है। अब मैं अपनी शैय्या को सवारूँगी। प्रियतम मेरे घर आये है। अब सखियों के साथ मिल-जुल कर मंगलगान गाऊँगी। मीरा कहती है कि मेरे तो प्रभु गिरधर नागर है। जिन्होंने आपको पाया है, उनका भाग्य बहुत अच्छा है।

    पद : 73.

    मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali Vyakhya Shabdarth Sahit in Hindi

    सहेलिया ! साजन घर आया हो।
    बहोत दिनों की जोवती विरहणि पिव पाया हो।।
    रतन करूँ नेवछावरी, ले आरति साजूं हो।
    पिया का दिया सनेसड़ा, ताहि बहोत निवाजूं हो।।
    पांच सखी इकठी भयी, मिळि मंगळ गावै हो।
    पिय का रळी बधावणा आणंद अंगि न मावै हो।।
    हरि सागर सूं नेहरो, नैणां वध्या सनेह हो।
    मीरां सखी कै आंगणै दूधां बूठा मेह हो।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.जोवती प्रतीक्षा
    2.पिवप्रियतम
    3.नेवछावरीन्योछावर
    4.साजूं सजा लूँ
    5.सनेसड़ासन्देश
    6. निवाजूंअनुग्रह
    7.इकठीएकत्रित
    8.बधावणाबधाई
    9.मावैसमाना

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि हे सहेलियों ! प्रियतम श्रीकृष्ण जी घर आये है। बहुत दिनों की प्रतीक्षा थी इस विरहिणी को, लेकिन अब प्रियतम को पा लिया है। अब मैं इन पर रत्नों को न्योछावर कर दूँ। मैं अपने प्रियतम की आरती की थाली सजा लूँ।

    प्रियतम का दिया सन्देश बहुत अनुग्रह करके स्वीकारती हूँ। पाँचों इन्द्रियाँ इकट्ठी हो गयी है। अब सब मिलकर मंगल गान गा रही है और अब प्रिय का आनन्द और बधाई अंगों में नहीं समा पा रहे है। हरि तो प्रेम के सागर है। नैनों में उनके प्रति प्रेम बढ़ गया है। मीरा के आँगन में तो जैसे दूध की वर्षा हो रही है।

    पद : 74.

    मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali Arth with Hard Meanings in Hindi

    म्हारा ओळगिया घर आया।
    तन की ताप मिटी, सुख पाया, हिल-मिल मंगळ गाया।।
    धन की धुनि सुनि मोर मगन भया, यूं मेरे आनंद आया।
    मगन भयी मिली प्रभु अपणा सूं भी का दरद मिटाया।।
    चंद कूँ देखि कमोदणि फूलै ! हरख भया मेरी काया।
    रग-रग सीतल भयी मेरी सजनी ! हरि मेरे महल सिधाया।।
    सब भगतन का कारज कीना, सोई प्रभु मैं पाया।
    मीरां विरहणी सीतल होयी, दुख-दुंद दूरि न्हसाया।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.ओळगिया प्रवासी प्रियतम
    2.धुनि ध्वनि
    3.हरखप्रसन्न
    4.कारजकार्य
    5.कीनाकर दिया
    6.न्हसायानष्ट हो गयी है

    व्याख्या :

    मीराबाई कहती है कि मेरा प्रवासी प्रियतम घर आ गया है। अब तन की पूरी तपन मिट गयी है और सुख मिल गया है। सखियों के साथ हिल-मिलकर मंगलगान गा रही हूँ। बादल की ध्वनि सुनकर के मोर मगन हो गया है। मेरे प्रियतम को देखकर के मैं प्रसन्न हो जाती हूँ। इसप्रकार मुझे आनंद की प्राप्ति हो गयी है।

    मीरा कहती है कि मैं मगन हो गयी हूँ। अब तक का जो दर्द था, वो अब मिट गया है। चंद्रमा को देखकर जैसे कुमोदिनी प्रसन्न हो जाती है, वैसे अपने श्रीकृष्ण जी को देखकर मैं प्रसन्न हो गयी हूँ। मेरा शरीर भी उसीप्रकार प्रसन्न हो गया है। मेरी रग-रग में शीतलता हो गयी है।

    हरि मेरे घर आये है। सभी भक्तों का कार्य कर दिया है। सभी भक्त प्रसन्न है। उन्हीं प्रभु जी को आज मैंने पा लिया है। विरहिणी मीरा अपनी विरह वेदना से दग्ध थी, वो अब शीतल हो गयी है। मेरे पूरे दुःख, दर्द नष्ट हो गये है।

    पद : 75.

    मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali Bhav in Hindi

    सांवळिया ! म्हारै आज रंगीली गणगौर छै।
    काळी-पीळी बादलों में बिजली चमकै, मेघ-घटा घणघोर छै।।
    दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल कर रही सोर छै।
    मीरां के प्रभु गिरधर नागर, चरणां में म्हारो जोर छै।।

    शब्दार्थ :

    क्र.सं.शब्दअर्थ
    1.सोर शोर
    2.घणघोर छैछायी हुयी है
    3.जोरअधिकार

    व्याख्या :

    मीराबाई अपने श्रीकृष्ण जी से कह रही है कि हे मेरे प्रियतम ! आज हमारे घर रंगीली गणगौर का त्योहार है। बादलों में काली-पीली बिजली चमक रही है। बादलों की घनघोर घटायें छायी हुई है। मेंढक, मोर और पपीहा बोल रहे है। कोयल शोर मचा रही है।

    हे मीरा के प्रभु गिरधर नागर ! आपके चरणों में मेरा पूरा अधिकार है। मीराबाई अपने प्रेमजनित अधिकार भाव को स्थापित करती है।

    इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 71-75 पदों की व्याख्या को समझा। उम्मीद है कि इन्हें समझने में कोई कठिनाई तो नहीं हुई होगी। फिर मिलेंगे।


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    एक गुजारिश :

    दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali (71-75)” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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