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Vinay Patrika Pad 143-144 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या


Vinay Patrika Pad 143-144 Vyakhya by Tulsidas in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम श्री गोस्वामी तुलसीदास रचित “विनय-पत्रिका” के 143-144वें पदों की व्याख्या लेकर आये है। तो चलिए समझते है :

श्रीगोस्वामी तुलसीदास कृत “विनय-पत्रिका” के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Vinay Patrika Ki Vyakhya विनय पत्रिका के पद संख्या 143 की व्याख्या


Tulsidas Krit Vinay Patrika Ke Pad 143 Ki Vyakhya in Hindi : दोस्तों ! विनय पत्रिका के 143वें पद की भावार्थ सहित व्याख्या इसप्रकार है :

#पद :

Vinay Patrika Pad Sankhya 143 Ki Vyakhya in Hindi

सुनहु राम रघुबीर गोसाँई, मन अनीति रत मेरो।
चरन-सरोज बिसारि तिहारे, निसि दिन फिरत अनेरो ।। 1. ।।

मानत नाहिं निगम-अनुसासन, त्रास न काहू केरो।
भूल्यो सूल करम-कोलुन्ह तिल ज्यों बहु बारनि पेरो ।। 2. ।।

जहँ सतसंग कथा माधवकी, सपनेहुँ करत न फेरो।
लोभ-मोह-मद-काम-कोह–रत, तिन्हसों प्रेम घनेरो ।। 3. ।।

पर-गुन सुनत दाह, पर-दूषन सुनत हरख बहुतेरो।
आप पाप को नगर बसावत, सहि न सकत पर खेरो ।। 4. ।।

व्याख्या :

दोस्तों ! तुलसीदास जी कहते हैं कि हे रघुनाथ ! हे राम जी ! आप मेरी विनती सुनिये, मेरा मन सदा अन्याय एवं अनीति में लगा हुआ रहता है। मेरा मन आपके चरणों को छोड़कर दिन-रात इधर-उधर भटकता फिरता है।

मेरा मन ना तो वेदों के नियम मानता है और ना ही उसे किसी का डर है। वह कई बार तो कर्म रूपी कोल्हू में तिल के भांति पेरा जा चुका है। परंतु वह अभी सारा कष्ट भूल गया है। उसे कोई खबर ही नहीं है कि वही दुष्कर्म करने से उसकी वैसी ही हालत फिर से हो जायेगी।

तुलसीदास जी आगे कह रहे हैं कि जहाँ भगवत कथा होती है, सत्संग होता है, वहाँ मेरा मन स्वप्न में भी चक्कर नहीं लगाता है अर्थात् भूलकर भी नहीं जाता है। वह लोभ, मोह, अहंकार, काम, क्रोध आदि में ही पड़ा रहता है। इन्हीं से अधिक प्रेम करता है।

आगे कहते हैं कि मेरा मन दूसरों के गुण सुनकर जला जाता है और जब दूसरों की बुराई सुनता है तो बड़ा हर्षित होता है। वह खुद तो पाप का नगर बसा के रखता है, लेकिन दूसरों के पापों का खेड़ा भी नहीं देखता है अर्थात् अपने बड़े-बड़े पापों पर तो ध्यान ही नहीं देता है और दूसरों के थोड़े से पापों की ओर बड़ा ध्यान लगाता है।

#पद :

Vinay Patrika Ke Pad 143 Ki Bhavarth Sahit Vyakhya in Hindi

साधन-फल, श्रुति-सार नाम तव, भाव-सरिता कहँ बेरो।
सो पर-कर कांकिनी लागि सठ, बेंचि होत हठि चेरो ।। 5. ।।

कबहुँक हौं संगति-प्रभावतें, जाऊँ सुमारग नेरो।
तब करि क्रोध संग कुमनोरथ देत कठिन भटभेरो ।। 6. ।।

इक हौं दीन, मलीन, हीनमति, विपतिजाल अति घेरो।
तापर सहि न जाय करूणानिधि, मनको दुसह दरेरो ।। 7. ।।

हारि परयो करि जतन बहुत बिधि, तातें कहत सबेरो।
तुलसीदास यह त्रास मिटै जब ह्रदय करहुं तुम डेरो ।। 8. ।।

व्याख्या :

आगे तुलसीदास जी कह रहे हैं कि आपका जो नाम सभी साधनों का फलस्वरुप है, वेदों का सार है तथा इस संसार रूपी नदी को पार करने के लिये नाव के समान है। ऐसे आपके नाम को वह दुष्ट कौड़ी-कौड़ी के लिये बेचता हुआ, उनका गुलाम बनता रहता है।

यदि कभी सत्संग से सुमार्ग के करीब जाऊं भी तो भी इंद्रियों की आसक्ति उस मन को कुमनोरथ रूपी धक्का दे देती है अर्थात् इंद्रियाँ मेरे मन को धर्माचरण से हटाकर सांसारिक वासनाओं में फंसा देती है।

तुलसीदास जी कहते हैं कि मैं पहले से ही दीन, पापी, दुर्बुद्धि हूं और उस पर से विपत्तियों के जाल में भी फंसा पड़ा हूँ। हे करुणानिधि ! इस मन पर एक असहनीय धक्का लग रहा है। मैं निर्बल जीव इस प्रबल मन के धक्के को कैसे सह सकता हूं ?

तुलसीदास जी कह रहे हैं कि मैं अनेक प्रकार के प्रयत्न करके हार गया, इसलिए मैं पहले ही कह देता हूं कि यह जो जन्म-मरण का भय है, ये तभी दूर होगा, जब आप मेरे हृदय में निवास करेंगे अर्थात् आपके ध्यान से ही मेरे मन की वृतियों का नाश हो पायेगा अन्यथा इनका नाश नहीं हो पायेगा।

Vinay Patrika Ki Vyakhya विनय पत्रिका के पद संख्या 144 की व्याख्या


Tulsidas Krit Vinay Patrika Ke Pad 144 Ki Vyakhya in Hindi : दोस्तों ! विनय पत्रिका के 144वें पद की भावार्थ सहित व्याख्या इसप्रकार है :

#पद :

Tulsidas Ji Rachit Vinay Patrika Ke Pad 144 Ki Arth Sahit Vyakhya in Hindi

सो धौं को जो नाम-लाज तें, नहिं राख्यो रघुबीर।
कारुनीक बिनु कारन ही हरि हरी सकल भव-भीर।।1.।।

बेद-बिदित, जग-बिदित अजामिल बिप्रवंधु अघ-धाम।
घोर जमालय जात निवारयो सुत-हित सुमिरत नाम।।2.।।

पसु पामर अभिमान-सिंधु गज ग्रस्यो आइ जब ग्राह।
सुमिरत सकृत सपदि आय प्रभु, हरयो दुसह उर दाह।।3.।।

व्याख्या :

दोस्तों ! तुलसीदास जी कहते हैं कि ऐसा कौन है, जिसको श्रीराम जी, श्रीरघुनाथ जी ने अपने नाम की लाज से अपनी शरण में नहीं रखा है। करुणा करने वाले श्रीराम जी बिना कारण के ही समस्त भय दूर कर देते हैं अर्थात् नाम स्मरण करने वाले लोगों को श्रीराम जी संसार रूपी सागर से मुक्त कर देते हैं।

यह वेद में भी प्रकट है और संसार में भी प्रसिद्ध है कि अजामिल, जो ब्राह्मण जाति का था, पर पापों का धाम था अर्थात् घोर पापी था। लेकिन जब वह बेचारा यमलोक जाने लगा, तब उसने अपने पुत्र का नाम लिया। किंतु भगवान ने सोचा कि यह मेरा नाम स्मरण कर रहा है, इसलिए उसे यमलोक जाने से रोक लिया।

उसके पुत्र का नाम नारायण था और धोखे से ही सही नारायण नाम स्मरण करने से वह मुक्त हो गया। फिर भला जो जानबूझकर भगवान का नाम स्मरण करते हैं, उनकी सद्गति क्यों नहीं होगी ?

आगे तुलसीदास जी कह रहे हैं कि जब मगरमच्छ ने पापी और अभिमानी हाथी को पकड़ लिया, तब उसके एक ही बार स्मरण करने पर आप उसी समय वहाँ आ गये और उसकी असहनीय पीड़ा को शांत कर दिये। मगरमच्छ से छुड़ाकर उसे दिव्य शरीर प्रदान कर दिया।

#पद :

Vinay Patrika Pad Sankhya 144 Bhavarth Sahit Vyakhya in Hindi

ब्याध, निषाद, गीध, गनिकादिक, अगनित औगुन-मूल।
नाम-ओटतें राम सबनिकी दूरि करी सब सूल।।4.।।

केहि आचरन घाटि हौं तिनतें, रघुकुल-भूषन भूप।
सीदत तुलसीदास निसिबार परयो भीम तम-कूप।।5.।।

व्याख्या :

इसी प्रकार वाल्मीकि, गुह, जटायु, पिंगला आदि सभी अनगिनत दोषों की जड़ थे, परंतु हे श्रीराम जी ! आपने अपने नाम की ओट लेने से ही इन सभी के सारे दुखों का नाश कर दिया।

आगे तुलसीदास जी कह रहे हैं कि हे वंश श्रेष्ठ ! हे रघुकुल भूषण ! आप मुझे बताइए कि मैं इन सब से किस आचरण में कम हूँ और फिर भी यह तुलसीदास दिन-रात भीषण अज्ञान के कुएं में पड़ा हुआ दु:ख भोग रहा है। फिर आप मेरी ओर दृष्टि नहीं डाल रहे हो।

मुझे आपने क्यों भूला दिया है। जब आपने बड़े-बड़े दुराचारियों का ही उद्धार कर दिया तो अब मुझ जैसे पापी को क्यों भुलाये बैठे हो ? मुझे भी तो इस संसार रूपी सागर से पार कीजिये।

दोस्तों ! आज हमने विनय पत्रिका की पद श्रृंखला में 143-144 पदों की व्याख्या को विस्तारपूर्वक जाना और समझा। फिर मिलते है आगे के कुछ महत्वपूर्ण पदों के साथ।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Vinay Patrika Pad 143-144 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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