Uttar Kand Vyakhya रामचरितमानस उत्तरकांड दोहे – भाग 6


Uttar Kand Dohe Sampuran Vyakhya Sahit in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज के अध्याय में हम तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के अगले दोहों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत कर रहे है। ध्यान से समझने की कोशिश कीजियेगा :

आप गोस्वामी तुलसीदास कृत “श्री रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड” का विस्तृत अध्ययन करने के लिए नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये :


Uttar Kand Vyakhya रामचरितमानस उत्तरकांड दोहे व्याख्या


Ramcharitmanas Uttar Kand Vyakhya Part 6 in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों की विस्तारपूर्वक व्याख्या इसप्रकार है :

श्री रामजी का स्वागत, भरत मिलाप, सबका मिलनानन्द

दोहा :

Uttar Kand Vyakhya Saar in Hindi

पुनि प्रभु हरषि सत्रुहन भेंटे हृदयँ लगाइ।
लछिमन भरत मिले तब परम प्रेम दोउ भाइ।।5।।

व्याख्या :

तब फिर प्रभु जी हर्षित होकर शत्रुघ्न को हृदय से लगाकर मिले और तब लक्ष्मण जी एवं भरत जी दोनों भाई अत्यंत प्रेम पूर्वक मिले।

चौपाई :

Uttar Kand Chopai Vyakhya with Meaning in Hindi

भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे। दुसह बिरह संभव दुख मेटे।।
सीता चरन भरत सिरु नावा। अनुज समेत परम सुख पावा।।1।।

प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी। जनित बियोग बिपति सब नासी।।
प्रेमातुर सब लोग निहारी। कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी।।2।।

अमित रूप प्रगटे तेहि काला। जथाजोग मिले सबहि कृपाला।।
कृपादृष्टि रघुबीर बिलोकी। किए सकल नर नारि बिसोकी।।3।।

छन महिं सबहि मिले भगवाना। उमा मरम यह काहुँ न जाना।।
एहि बिधि सबहि सुखी करि रामा। आगें चले सील गुन धामा।।4।।

कौसल्यादि मातु सब धाई। निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई।।5।।

व्याख्या :

भरत जी के छोटे भाई शत्रुघ्न जी और लक्ष्मण जी गले लगकर मिले और इस प्रकार विरह से उत्पन्न असहनीय दु:ख को दूर किया। भाई सहित भरत जी ने सीता के चरणों में सिर नवाया और अत्यंत सुख प्राप्त किया।

प्रभु जी को देखकर नगरवासी हर्षित हुये। वियोग से उत्पन्न उनके सब दु:ख नष्ट हो गये। सब लोगों को प्रेम विह्ल देखकर प्रभु श्रीराम जी ने एक चमत्कार किया।

दोस्तों ! उसी समय कृपालु श्री राम जी असंख्य रूपों में प्रकट हो गये और सबसे यथा योग्य मिले। श्रीराम ने सब स्त्री पुरुषों को कृपा की दृष्टि से देखकर शोक से रहित कर दिया।

भगवान एक क्षणभर में सबसे मिल लिये। हे उमा ! यह रहस्य किसी ने भी नहीं जाना। इस प्रकार शील और गुणों के धाम श्रीराम जी सबको सुखी करके आगे बढ़े।

कौशल्या आदि सब माताएं दौड़ी, जैसे नई ब्याई हुई गायें, बछड़ों को देखकर दौड़ती है।

छंद :

Uttar Kand Chhand Bhavarth Vyakhya Sahit in Hindi

जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ चरन बन परबस गईं।
दिन अंत पुर रुख स्रवत थन हुंकार करि धावत भईं।।

अति प्रेम प्रभु सब मातु भेटीं बचन मृदु बहुबिधि कहे।
गइ बिषम बिपति बियोगभव तिन्ह हरष सुख अगनित लहे।।

व्याख्या :

तुलसीदास जी कहते हैं कि जैसे नयी ब्याई हुई गायें छोटे बच्चों को घर पर छोड़कर, परवश होकर चरने के लिये वन में चली गई हो और दिन का अंत होने पर गांव की ओर हुंकार करके, थन से दूध गिराती हुई दौड़ कर आई हो।

प्रभु जी ने अत्यंत प्रेम से सब माताओं से भेंट की। बहुत प्रकार के मधुर वचन कहे। वियोग से उत्पन्न विषम विपत्ति जाती रही और उन सबने अगणित सुख और हर्ष प्राप्त किया।

दोहा :

Ramcharitmanas Uttar Kand Dohe Vyakhya Arth in Hindi

भेंटेउ तनय सुमित्राँ राम चरन रति जानि।
रामहि मिलत कैकई हृदयँ बहुत सकुचानि।।6 क।।

लछिमन सब मातन्ह मिलि हरषे आसिष पाइ।
कैकइ कहँ पुनि पुनि मिले मन कर छोभु न जाइ।।6 ख।।

व्याख्या :

दोस्तों ! सुमित्रा अपने पुत्र लक्ष्मण की श्रीराम जी के चरणों में प्रीति जानकर उनसे मिली। श्रीराम जी से मिलते समय कैकेयी हृदय में बहुत सकुचाई ।

लक्ष्मण जी भी सभी माताओं से मिलकर और आशीर्वाद पाकर हर्षित हुये। कैकयी से वे फिर-फिर मिले, परंतु उनके मन का विक्षोभ मिटता ही नहीं।

चौपाई :

Uttar Kand Dohe Chopai Vyakhya Bhaav Sahit in Hindi

सासुन्ह सबनि मिली बैदेही । चरनन्हि लाग हरषु अति तेही।।
देहिं असीस बूझि कुसलाता। होइ अचल तुम्हार अहिवाता।।1।।

सब रघुपति मुख कमल बिलोकहिं। मंगल जानि नयन जल रोकहिं।।
कनक थार आरती उतारहिं। बार बार प्रभु गात निहारहिं।।2।।

नाना भाँति निछावरि करहीं। परमानंद हरष उर भरहीं।।
कौसल्या पुनि पुनि रघुबीरहि। चितवति कृपासिंधु रनधीरहि।।3।।

हृदयँ बिचारति बारहिं बारा। कवन भाँति लंकापति मारा।।
अति सुकुमार जुगल मेरे बारे। निसिचर सुभट महाबल भारे।।4।।

व्याख्या :

इस पद में कवि कह रहे हैं कि सीता सब माताओं अर्थात् सासुओं से मिली। उनके चरणों में लगकर, उन्हें अत्यंत हर्ष हुआ। सासुएं कुशल पूछकर आशीर्वाद देती हैं कि तुम्हारा सुहाग अचल हो।

सब माताएं श्रीराम जी का कमल जैसा मुख देख रही है और मंगल का समय जानकर नेत्रों का जल रोककर रखती हैं। सोने के थाल से आरती उतारती है और हर बार प्रभु के अंगों की तरफ देखती है।

अनेक प्रकार से निछावरें करती है, बलैयां लेती है और हृदय में परम आनंद और हर्ष भरती हैं। माताएं बार-बार हृदय में विचार कर रही हैं कि इन्होंने लंकापति रावण को कैसे मारा होगा ? मेरे दोनों बच्चे बड़े ही सुकुमार है और राक्षस बड़े भारी योद्धा और बलवान थे।

तो दोस्तों ! ये थी रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों की विस्तृत व्याख्या। फिर मिलते है अगले दोहों की व्याख्या के साथ।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Uttar Kand Vyakhya रामचरितमानस उत्तरकांड दोहे – भाग 6 के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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