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Uttar Kand in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड दोहे – भाग 3
Uttar Kand Dohe Vyakhya in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! जैसाकि हम तुलसीदास गोस्वामी रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” का अध्ययन कर रहे है। आज हम उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों एवं चौपाइयों को समझाने का प्रयास कर रहे है तो चलिये शुरू करते है :
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Uttar Kand in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या
Ramcharitmanas Uttar Kand in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों की विस्तृत व्याख्या एवं भावार्थ निम्नप्रकार से है :
छंद :
Uttar Kand Dohe Arth in Hindi
निज दास ज्यों रघुबंसभूषन कबहुँ मम सुमिरन कर्यो।
सुनि भरत बचन बिनीत अति कपि पुलकि तन चरनन्हि पर्यो।।रघुबीर निज मुख जासु गुन गन कहत अग जग नाथ जो।
काहे न होइ बिनीत परम पुनीत सदगुन सिंधु सो।।
व्याख्या :
भरत जी हनुमान जी से पूछते हैं कि रघुकुल के भूषण श्री राम जी क्या कभी अपने दास की भांति मेरा स्मरण करते रहे हैं ? दोस्तों ! भरत जी के अत्यंत नम्र वचन सुनकर हनुमान जी पुलकित शरीर होकर उनके चरणों पर गिर पड़े।
हनुमान जी ने सोचा कि जो चर और अचर जगत के स्वामी हैं, वे रामचंद्र जी अपने मुख से, जिनके गुणों का वर्णन करते हैं, वे भरत ऐसे विनम्र, परम पवित्र और सद्गुणों के समुद्र क्यों ना हो।
दोहा :
Uttar Kand Dohe Vyakhya Meaning in Hindi
राम प्रान प्रिय नाथ तुम्ह सत्य बचन मम तात।
पुनि पुनि मिलत भरत सुनि हरष न हृदयँ समात।।2 क।।
व्याख्या :
हनुमान जी ने कहा कि तात ! सुनिये, मैं सत्य कहता हूं कि आप श्रीराम जी को प्राणों के समान प्रिय हैं। यह सुनकर भरत जी बार-बार मिलते हैं। हर्ष उनके हृदय में समाता नहीं है।
सोरठा :
Uttar Kand Dohe Arth Sahit in Hindi
भरत चरन सिरु नाइ तुरित गयउ कपि राम पहिं।
कही कुसल सब जाइ हरषि चलेउ प्रभु जान चढ़ि।।2 ख।।
व्याख्या :
भरत जी के चरणों में सिर नवां कर हनुमान जी तुरंत ही श्रीराम जी के पास लौट गये और जाकर उन्होंने सकुशल समाचार कहे। और प्रभु हर्षित होकर विमान पर चढ़कर चले।
चौपाई :
Uttar Kand Dohe Chaupai Bhavarth Sahit in Hindi
हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए।।
पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई।।1।।सुनत सकल जननीं उठि धाईं। कहि प्रभु कुसल भरत समुझाईं।।
समाचार पुरबासिन्ह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए।।2।।दधि दुर्बा रोचन फल फूला। नव तुलसी दल मंगल मूला।।
भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलिं सिंधुरगामिनी।।3।।
व्याख्या :
भरत जी हर्षित होकर अयोध्यापुरी में आये और उन्होंने गुरु जी को सब समाचार सुनाया। महलों में खबर भेजी कि श्री रामचंद्र जी सकुशल नगर को आ रहे हैं।
यह खबर सुनते ही सब माताएं उठ दौड़ी। भरत जी ने कुशल समाचार सबको सुनाकर समझाया। नगरवासियों ने यह समाचार पाया तो स्त्री और पुरुष भी हर्षित होकर दौड़े।
तुलसीदास जी कहते हैं कि दही, दूब और गोरोचन, फल ,फूल और मंगल के मूल, नवीन तुलसी के दल, सोने के थालों से भर-भर कर, हाथी की सी चाल वाली सौभाग्यवती स्त्रियां लेकर गाती हुई चली।
चौपाई :
Uttar Kand Dohe ChaupaiVistrit Vyakhya in Hindi
जे जैसेहिं तैसेहिं उठि धावहिं। बाल बृद्ध कहँ संग न लावहिं।।
एक एकन्ह कहँ बूझहिं भाई। तुम्ह देखे दयाल रघुराई।।4।।अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी।।
बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा।।5।।
व्याख्या :
दोस्तों ! अयोध्यावासी, जो जिस दशा में है, वैसे ही उठ दौड़ता है। बालको और वृद्धों को कोई भी साथ नहीं लेता है। सब एक-दूसरे से पूछते हैं कि भाई तुमने दयालु श्री राम जी को देखा।
तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु को आते जानकर अयोध्यापुरी सब शोभाओं की खान हो गई। सरयू अत्यंत निर्मल जल वाली हो गई और तीनों प्रकार की सुहावनी वायु बहने लगी।
इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों एवं चौपाइयों को विस्तार से जाना और समझा। उम्मीद है कि आपको समझने में कोई परेशानी नहीं हुई होगी।
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एक गुजारिश :
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