Uttar Kand Bhavarth in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड – भाग 5
Uttar Kand Dohe Bhavarth in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के आगामी दोहों एवं छंदों का भावार्थ समझने जा रहे है :
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Uttar Kand Bhavarth in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या
Ramcharitmanas Uttar Kand Bhavarth Part 5 in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों का विस्तृत भावार्थ निम्नप्रकार से है :
श्री रामजी का स्वागत, भरत मिलाप, सबका मिलनानन्द
दोहा :
Uttar Kand Dohe Bhavarth Saar in Hindi
आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान।।4 क।।
व्याख्या :
कृपा के समुंदर भगवान श्री रामचंद्र जी ने सब लोगों को आते देखा तो उन्होंने नगर के समीप उतरने की प्रेरणा की और तब विमान भूमि पर उतरा।
दोहा :
Uttar Kand Bhavarth Vyakhya Saar Meaning in Hindi
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु।।4 ख।।
व्याख्या :
पुष्पक विमान से उतरकर के प्रभु जी ने उससे कहा कि तुम कुबेर के पास चले जाओ। श्रीराम जी की आज्ञा से वह चला। उसे हर्ष भी है और अत्यंत दु:ख भी।
चौपाई :
Uttar Kand Chopai Bhavarth Vyakhya Sahit in Hindi
आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा।।
बामदेव बसिष्ट मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक।।1।।धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह।।
भेंटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया।।2।।सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा। धर्म धुरंधर रघुकुलनाथा।।
गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज।।3।।परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए।।
स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े।।4।।
व्याख्या :
दोस्तों ! आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि भरत के साथ सब लोग आये और श्रीरामचंद्र जी के वियोग से सबके शरीर दुर्बल हो रहे हैं। उन्होंने बामदेव, वशिष्ठ आदि मुनिवरों को देखा तो अपने धनुष बाण पृथ्वी पर रख दिये और
भाई समेत दौड़कर गुरुजी के चरण कमल पकड़ लिये। उनके शरीर के रोम-रोम अत्यंत पुलकित हो रहे थे। गुरुराज वशिष्ठ ने उन्हें गले लगाकर कुशल पूछी। उन्होंने कहा- आप ही की दया में हमारी कुशल है।
तुलसीदास जी कहते हैं कि अब धर्म के धुरंधर रघुकुल के स्वामी श्रीराम जी ने सब ब्राह्मणों से मिलकर, उन्हें मस्तक नवाया। फिर भरत जी ने प्रभु जी के चरण कमल पकड़े, जिन्हें सुर, मुनि और ब्रह्मा भी नमस्कार करते हैं।
तुलसीदास जी कहते हैं कि भरत जी पृथ्वी पर पड़े हुये हैं। उठाये से भी नहीं उठते हैं। तब कृपा के समुंद्र श्रीराम जी ने बल करके उन्हें उठाया और छाती से लगा लिया। श्रीराम जी के श्याम शरीर पर रोयें खड़े हो गये। नवीन कमल के समान नेत्रों में जल की बाढ़ आ गई।
छंद :
Uttar Kand Dohe Chhand Bhavarth Sahit in Hindi
राजीव लोचन स्रवत जल तन ललित पुलकावलि बनी।
अति प्रेम हृदयँ लगाइ अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी।।
प्रभु मिलत अनुजहि सोह मो पहिं जाति नहिं उपमा कही।
जनु प्रेम अरु सिंगार तनु धरि मिले बर सुषमा लही।।1।।बूझत कृपानिधि कुसल भरतहि बचन बेगि न आवई।।
सुनु सिवा सो सुख बचन मन ते भिन्न जान जो पावई।।
अब कुसल कौसलनाथ आरत जानि जन दरसन दियो।
बूड़त बिरह बारीस कृपानिधान मोहि कर गहि लियो।।2।।
व्याख्या :
कमल जैसे नेत्रों से जल बह रहा है। सुंदर शरीर में पुलकावली शोभा दे रही है। तीनों भवनों के स्वामी श्रीराम जी छोटे भाई भरत को अत्यंत प्रेम से, हृदय से लगाकर मिले। छोटे भाई से मिलते समय प्रभु जी ऐसे शोभायमान लगते हैं कि उनकी उपमा मुझसे कहीं नहीं जा रही है। मानो प्रेम और श्रृंगार शरीर धारण करके मिले और उत्तम शोभा को प्राप्त हुये।
दोस्तों ! कृपा के भंडार श्रीराम जी भरत से कुशल पूछते हैं, पर भरत जी के मुख से वचन शीघ्र नहीं निकलते। भगवान शंकर जी पार्वती से कहते हैं कि हे पार्वती ! सुनो, वह सुख, मन और वचन से परे है। उसे वही जान पाता है, जो उसे पा लेता है।
भरत जी कहते हैं कि हे कौशलनाथ ! आपने जो इस दास को दुखी जानकर दर्शन दिया, इससे अब सब कुशल है। मुझ विरह के समुद्र में डूबते हुये को, कृपानिधान आपने हाथ पकड़कर बचा लिया।
इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों एवं छंदों का विस्तृत भावार्थ समझा। उम्मीद है कि आपको पढ़कर अच्छा लगा होगा।
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एक गुजारिश :
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