Uttar Kand Arth रामचरितमानस उत्तरकांड – भाग 9


Ramcharitmanas Uttar Kand Arth Meaning in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के अगले दोहों की विस्तृत व्याख्या करने जा रहे है। उम्मीद है कि आपको समझने में कोई कठिनाई नहीं हो रही होगी। तो आइए समझ लेते है :

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Ramcharitmanas Uttar Kand Arth रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या


Ramcharitmanas Uttar Kand Arth Part 9 in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों की विस्तृत व्याख्या को इस तरह से समझे :

राम राज्याभिषेक, वेदस्तुति, शिवस्तुति

दोहा :

Uttar Kand Dohe Arth in Hindi

सासुन्ह सादर जानकिहि मज्जन तुरत कराइ।
दिब्य बसन बर भूषन अँग अँग सजे बनाइ।।11 क।।

राम बाम दिसि सोभति रमा रूप गुन खानि।
देखि मातु सब हरषीं जन्म सुफल निज जानि।।11 ख।।

व्याख्या :

सासुओं ने जानकी को तुरंत ही आदर सहित स्नान करवा करके और उनके अंग-अंग में दिव्य वस्त्र एवं उत्तम गहने अच्छी तरह से सजा दिये।

श्रीराम जी के बायीं तरफ रूप और गुणों की खान लक्ष्मी रूपिणी सीता जी सुशोभित हो रही है। यह देखकर सब माताएं अपना जन्म सफल समझकर हर्षित हुई।

हे गरुड़ ! सुनिये, उस समय ब्रह्मा, शिव और मुनियों के समूह तथा विमानों पर चढ़कर सब देवता आनंदकंद प्रभु श्रीरामचंद्र जी के दर्शन को आये।

चौपाई :

Uttar Kand Chopai Arth Meaning in Hindi

प्रभु बिलोकि मुनि मन अनुरागा। तुरत दिब्य सिंघासन मागा।।
रबि सम तेज सो बरनि न जाई। बैठे राम द्विजन्ह सिरु नाई।।1।।

जनकसुता समेत रघुराई। पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई।।
बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे। नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे।।2।।

प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा।।
सुत बिलोकि हरषीं महतारी। बार बार आरती उतारी।।3।।

बिप्रन्ह दान बिबिधि बिधि दीन्हे। जाचक सकल अजाचक कीन्हे।।
सिंघासन पर त्रिभुअन साईं। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाईं।।4।।

व्याख्या :

प्रभु को देखकर वशिष्ठ जी के मन में प्रेम भर आया। उन्होंने तुरंत ही दिव्य सिहाँसन मंगवाया । सिंहासन का तेज सूर्य के समान था। उसका वर्णन नहीं हो सकता। ब्राह्मणों को मस्तक नवाकर श्रीराम जी उस पर विराज गये।

सीता जी सहित श्रीराम जी को देखकर मुनियों का समूह अत्यंत हर्षित हुआ। तब ब्राह्मणों ने वेद मंत्रों का उच्चारण किया। आकाश में देवता और मुनि जय हो, जय हो की पुकार करने लगे।

सबसे पहले वशिष्ठ मुनि ने तिलक किया। फिर उन्होंने सब ब्राह्मणों को तिलक करने की आज्ञा दी। पुत्र को राज सिंहासन पर देखकर सब माताएं हर्षित हुई और उन्होंने बार-बार आरती उतारी।

ब्राह्मणों को अनेक प्रकार के दान दिये और समस्त याचकों को अयाचक बना दिया। त्रिभुवन के स्वामी को सिंहासन पर देखकर देवताओं ने नगाड़े बजाये।

छंद :

Ramcharitmanas Uttar Kand Chhand Arth in Hindi

नभ दुंदुभीं बाजहिं बिपुल गंधर्ब किंनर गावहीं।
नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं।।
भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते।
गहें छत्र चामर ब्यजन धनु असिचर्म सक्ति बिराजते।।1।।

व्याख्या :

दोस्तों ! तुलसीदास जी कहते हैं कि आकाश में बहुत से नगाड़े बज रहे हैं। गंधर्ब और किन्नर गा रहे हैं। झुंड के झुंड अप्सरायें नाच रही हैं। देवता और मुनि परमानंद पा रहे हैं।

भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न, विभीषण, अंगद, हनुमान और सुग्रीव आदि क्रमशः चँवर, पंखा, धनुष, तलवार ,ढाल और शक्ति धारण किये हुये सुशोभित हो रहे हैं।

छंद :

Ramcharitmanas Uttar Kand Chhand Bhavarth in Hindi

श्री सहित दिनकर बंस भूषन काम बहु छबि सोहई।
नव अंबुधर बर गात अंबर पीत सुर मन मोहई।।
मुकुटांगदादि बिचित्र भूषन अंग अंगन्हि प्रति सजे।
अंभोज नयन बिसाल उर भुज धन्य नर निरखंति जे।।2।।

व्याख्या :

तुलसीदास जी कहते हैं कि सीता सहित सूर्यकुल के भूषण श्रीराम जी के शरीर में अनेकों कामदेवों की छवि शोभा दे रही है। नवीन मेघ के समान सुंदर शरीर पर पीताम्बर देवगणों को भी मोह रहा है।

मुकुट, बाजूबंद आदि अद्भुत आभूषण अंग-अंग में सजे हुये हैं। श्रीराम जी के कमल जैसे नेत्र, विशाल छाती और भुजाओं के, जो मनुष्य दर्शन करते हैं, वह धन्य है।

इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों को विस्तार से समझा। अगले लेख में कुछ नये दोहों के साथ फिर मिलते है।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Uttar Kand Arth रामचरितमानस उत्तरकांड – भाग 9 के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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