Contents
Uttar Kand Arth in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड दोहे – भाग 4
Uttar Kand Dohe Chopai Arth in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के आगामी दोहों की व्याख्या करने जा रहे है :
आप गोस्वामी तुलसीदास कृत “श्री रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड” का विस्तृत अध्ययन करने के लिए नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये :
Uttar Kand Arth in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या
Ramcharitmanas Uttar Kand Arth in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों का विस्तृत अर्थ इसप्रकार से है :
दोहा :
Ramcharitmanas Uttar Kand Arth Saar in Hindi
हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर बृंद समेत।
चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत।।3 क।।
व्याख्या :
गुरु वशिष्ठ जी, कुटुम्बी, छोटे भाई शत्रुघ्न तथा ब्राह्मणों के समूह के साथ हर्षित होकर भरत जी अत्यंत प्रेमयुक्त मन से कृपा के धाम श्री राम जी के सामने चले।
दोहा :
Uttar Kand Arth Vyakhya Meaning in Hindi
बहुतक चढ़ीं अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान।
देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान।।3 ख।।
व्याख्या :
बहुत सी स्त्रियां अटारियों पर चढ़कर आकाश में विमान को देख रही हैं। विमान को देखकर हर्षित होकर, वे मीठे स्वर से सुंदर मंगल गा रही हैं।
दोहा :
Ramcharit Manas Uttar Kand Arth Sahit in Hindi
राका ससि रघुपति पुर सिंधु देखि हरषान।
बढ़्यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान।।3 ग।।
व्याख्या :
दोस्तों ! श्री राम जी पूर्णिमा के समान है और अवधपुरी एक समुद्र है। वे उस पूर्णचंद्र को देखकर हर्षित हो रही है और वह शोर करता हुआ बढ़ रहा है। स्त्रियां उसकी तरंगों के समान लगती है।
दोस्तों ! प्रस्तुत दोहे में अभेदरूपक अलंकार प्रयुक्त हुआ है।
चौपाई :
Uttar Kand Chaupai Arth Vyakhya in Hindi
इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर।।
सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा।।1।।जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना।।
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।2।।जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा।।3।।अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी।।
हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी।।4।।
व्याख्या :
इधर सुरकुलरूपी, कमल के सूर्य श्रीरामजी वानरों को मनोहर नगर दिखा रहे हैं। श्रीराम जी कहते हैं कि हे सुग्रीव, अंगद और विभीषण ! सुनो, यह पुरी पवित्र है और देश सुंदर है।
श्रीराम जी कहते हैं कि यद्यपि सबने बैकुंठ की प्रशंसा की है। ये वेदों और पुराणों से भी प्रकट है और जगत भी जानता है, परंतु वे भी मुझे अवधपुरी के समान प्रिय नहीं लगता। ये भेद कोई-कोई ही जानता है अर्थात् विरले ही इसे जानते हैं।
श्रीराम जी कहते हैं कि यह सुहावनी पुरी मेरी जन्मभूमि है। इसके उत्तर की ओर पवित्र सरयू बहती है, जिसमें स्नान करने से मनुष्य बिना प्रयत्न करे ही मेरे समीप निवास पा जाते हैं।
राम जी कहते हैं कि यहां के निवासी मुझे अत्यंत प्यारे हैं। यह पुरी सुख की राशि और मेरे परमधाम अर्थात् मुक्ति को देने वाली है। प्रभु की वाणी सुनकर सब वानर हर्षित हुये कि जिस अवध का बखान स्वयं श्रीराम जी ने किया, वह अवश्य ही धन्य है।
इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड के अगले दोहों का विस्तारपूर्वक अर्थ समझा। उम्मीद है कि आपको समझ में आया होगा।
यह भी जरूर पढ़े :
एक गुजारिश :
दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Uttar Kand Arth in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड दोहे – भाग 4 “ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I
नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और HindiShri पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..!