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श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां Uttarkand Vyakhya – भाग 16


श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां Shri Ramcharitmanas UttarKand Vyakhya in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के दोहों और चौपाईयों की श्रृंखला में आज हम आगे के कुछ दोहों और चौपाईयों का अर्थ विस्तार पूर्वक समझने जा रहे है। तो चलिए बिना देरी किये शुरू करते है :

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UttarKand श्रीरामचरितमानस उत्तरकांड दोहे एवं चौपाईयां


Tulsidas Krit ShriRamcharitmanas UttarKand Part 16 in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों एवं चौपाइयों का अर्थ इसप्रकार है :

रामराज्य का वर्णन

दोहा :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां Ram Rajya Varnan in Hindi

दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज।
जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज।।22।।

व्याख्या :

दोस्तों ! राजनीति में साम, दाम, दंड और भेद ये चार प्रकार की नीतियाँ कही गई है। जहां दंड से तात्पर्य दंड नीति से है और भेद शब्द से अर्थ भेद नीति से है। संगीत में सुर और ताल का भेद।

काकभुशुण्डि जी कहते हैं कि श्रीरामचंद्र जी के राज्य में दंड केवल सन्यासियों के हाथ में है। पर भेद अर्थात् तालसुर का भेद नाचने वालों के नृत्य समाज में है। और मन को जीतने के लिये केवल ‘जीतो’ शब्द सुनाई पड़ता है।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां UttarKand Chaupai Path in Hindi

फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहिं एक सँग गज पंचानन।।
खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई।।1।।

व्याख्या :

हे गरुड़ ! वन में सदा वृक्ष फलते-फूलते हैं। हाथी सिंह भी एक साथ रहते हैं। पशु और पक्षी सभी ने स्वाभाविक बैर भूलकर आपस में प्रीति बढ़ा ली है।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां RamRajya Vyakhya in Hindi

कूजहिं खग मृग नाना बृंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनंदा।।
सीतल सुरभि पवन बह मंदा। गुंजत अलि लै चलि मकरंदा।।2।।

व्याख्या :

काकभुशुण्डि जी कहते हैं कि हे गरुड़ ! पक्षी कलरव करते हैं। भांति-भांति के पशुओं के समूह वन में निर्भय चरते हैं और आनंद करते हैं। शीतल सुगंधित और मंद पवन बहता रहता है। भँवरे फूलों का रस लेकर गुँजार करते रहते हैं अर्थात् फूलों के रस में सने हुये भंवरे गुँजार करते रहते हैं।

चौपाई :

UttarKand – श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां in Hindi

लता बिटप मागें मधु चवहीं। मनभावतो धेनु पय स्रवहीं।।
ससि संपन्न सदा रह धरनी। त्रेताँ भइ कृतजुग कै करनी।।3।।

व्याख्या :

तुलसीदास जी कहते हैं कि लताएं और वृक्ष मांगने से ही मकरंद टपका देते हैं। गाय मनचाहा दूध देती है और पृथ्वी सदैव खेती से भरी रहती है। त्रेतायुग में सतयुग की स्थिति हो गई है।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां RamRajya Path Arth Sahit in Hindi

प्रगटीं गिरिन्ह बिबिधि मनि खानी। जगदातमा भूप जग जानी।।
सरिता सकल बहहिं बर बारी। सीतल अमल स्वाद सुखकारी।।4।।

व्याख्या :

समस्त जगत की आत्मा भगवान को राजा जानकर, पर्वतों ने अनेक प्रकार की मणियों की खाने प्रकट कर दी हैं। सब नदियाँ उत्तम, शीतल, निर्मल, स्वादिष्ट और सुखप्रद जल बहाने लगी हैं।

चौपाई :

UttarKand Chopai श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां in Hindi

सागर निज मरजादाँ रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं।।
सरसिज संकुल सकल तड़ागा। अति प्रसन्न दस दिसा बिभागा।।5।।

व्याख्या :

समुद्र अपनी मर्यादा में रहते हैं। वे लहरों के माध्यम से किनारों पर रत्न फेंक देते हैं, जिन्हें मनुष्य ले लेते है। सब तालाब कमलों से पूर्ण है। दसों दिशाएं और भूमि के देश अत्यंत प्रसन्न है।

रामराज्य का वर्णन

दोहा :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां RamRajya Chopai Vyakhya in Hindi

बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज।
मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र कें राज।।23।।

व्याख्या :

श्रीरामचंद्र जी के राज्य में चंद्रमा अपनी किरणों से पृथ्वी को पूर्ण कर देता है। सूर्य उतना ही तपता है, जितने की जरूरत होती है और मेघ मांगने से जहाँ जितनी जरूरत होती है, उतना ही जल देते हैं।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां Path Arth in Hindi

कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे।।
श्रुति पथ पालक धर्म धुरंधर। गुनातीत अरु भोग पुरंदर।।1।।

व्याख्या :

काकभुशुण्डि जी कहते हैं की हे गरुड़ ! प्रभु श्रीराम जी ने करोड़ों अश्वमेघ यज्ञ किये। ब्राह्मणों को अनेकों दान दिये। श्रीरामचंद्र जी वेदमार्ग के पालने वाले, धर्म की धूरी को धारण करने वाले, सत, रज और तम आदि तीनों गुणों से परे तथा भागों में अर्थात् ऐश्वर्य में इंद्र जी के समान है।

चौपाई :

UttarKand श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां अर्थ in Hindi

पति अनुकूल सदा रह सीता। सोभा खानि सुसील बिनीता।।
जानति कृपासिंधु प्रभुताई। सेवति चरन कमल मन लाई।।2।।

व्याख्या :

शोभा की खान, सुंदर स्वभाव वाली और विनम्र सीता जी सदा पति के अनुकूल रहती है। वे कृपा के समुंदर श्रीराम जी की प्रभुता अर्थात् उनकी महिमा को जानती है तथा मन लगाकर उनके चरणकमलों की सेवा करती है।

चौपाई :

Tulsidas Krit UttarKand श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां in Hindi

जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी। बिपुल सदा सेवा बिधि गुनी।।
निज कर गृह परिचरजा करई। रामचंद्र आयसु अनुसरई।।3।।

व्याख्या :

यद्यपि घर में बहुत से दास और दासियां हैं और वे सभी प्रकार की विधियों में निपुण है। फिर भी सीता जी अपने ही हाथों से घर के सब काम करती है और श्रीरामचंद्र जी की आज्ञा का अनुसरण करती है।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां with Meaning in Hindi

जेहि बिधि कृपासिंधु सुख मानइ। सोइ कर श्री सेवा बिधि जानइ।।
कौसल्यादि सासु गृह माहीं। सेवइ सबन्हि मान मद नाहीं।।4।।

व्याख्या :

कृपा के समुंदर श्रीराम जी जिस प्रकार सुख मानते हैं, लक्ष्मीरूपिणी सीता जी वही करती है, क्योंकि वे सेवा की विधि को जानती हैं। घर में कौशल्या आदि जितनी भी सासुएँ हैं, सीता जी उन सब की सेवा करती है। उन्हें रूप आदि का अभिमान और राजमहिषी होने का मद नहीं है।

चौपाई :

UttarKand RamRajya Chopai श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां in Hindi

उमा रमा ब्रह्मादि बंदिता। जगदंबा संततमनिंदिता।।5।।

व्याख्या :

शंकर भगवान जी कहते हैं कि हे पार्वती ! लक्ष्मी अर्थात् सीता ब्रह्मा आदि देवताओं से वंदित, जगत की माता और सदा अनिंदित है।

अच्छा तो दोस्तों ! आज हमने रामराज्य के 22-23 वें दोहों और चौपाईयों को विस्तार से जाना और समझा। उम्मीद है कि आपको उत्तरकाण्ड को समझने में कोई परेशानी तो नहीं आ रही होगी। आप इसे अच्छे से तैयार अवश्य करते चले।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां Uttarkand Vyakhya – भाग 16 के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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