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श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Uttarkand – भाग 17


श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Shri Ramcharitmanas UttarKand Arth Vyakhya in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के दोहों और चौपाईयों की श्रृंखला में आज हम इसके 24-25वें दोहों और चौपाईयों की व्याख्या समझने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :

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UttarKand श्रीरामचरितमानस उत्तरकांड के दोहों और चौपाईयों की व्याख्या


Tulsidas Krit ShriRamcharitmanas UttarKand Part 17 in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों एवं चौपाइयों की अर्थ सहित व्याख्या इसप्रकार है :

रामराज्य का वर्णन

दोहा :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Ram Rajya Varnan in Hindi

जासु कृपा कटाच्छु सुर चाहत चितव न सोइ।
राम पदारबिंद रति करति सुभावहि खोइ।।24।।

व्याख्या :

देवता जिस लक्ष्मी के कृपा कटाक्ष की चाहना करते हैं, पर वह उनकी ओर देखती भी नहीं, वही लक्ष्मी अपने स्वभाव अर्थात् अपनी चंचलता को छोड़कर श्रीराम जी के चरणों से प्रीति करती है।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या UttarKand Chaupai Path in Hindi

सेवहिं सानकूल सब भाई। राम चरन रति अति अधिकाई।।
प्रभु मुख कमल बिलोकत रहहीं। कबहुँ कृपाल हमहि कछु कहहीं।।1।।

व्याख्या :

सब भाई श्रीराम जी के अनुकूल रहकर उनकी सेवा करते हैं। श्रीराम जी के चरणों में उनकी अत्यंत प्रीति है। वे श्रीराम जी के मुखारविंद को देखते ही रहते हैं कि कृपालु श्रीराम जी कभी हमें कुछ सेवा करने को कहें।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या RamRajya Vyakhya in Hindi

राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती। नाना भाँति सिखावहिं नीती।।
हरषित रहहिं नगर के लोगा। करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा।।2।।

व्याख्या :

श्रीराम जी भाइयों पर प्रीति करते हैं और अनेकों प्रकार की नीतियां उन्हें सिखाते रहते हैं। नगर के लोग आनंदित रहते हैं और सब प्रकार के देव दुर्लभ भोग भोगते हैं।

चौपाई :

UttarKand – श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या in Hindi

अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं। श्री रघुबीर चरन रति चहहीं।।
दुइ सुत सुंदर सीताँ जाए। लव कुस बेद पुरानन्ह गाए।।3।।

व्याख्या :

वे दिन-रात ब्रह्मा जी को मनाते रहते हैं और उनसे श्रीरामचंद्र जी के चरणों में प्रीति चाहते हैं। सीता जी ने लव और कुश दो पुत्र उत्पन्न किये, जिनकी कथा वेदों और पुराणों ने गायी है।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या RamRajya Path Arth Sahit in Hindi

दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर। हरि प्रतिबिंब मनहुँ अति सुंदर।।
दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे। भए रूप गुन सील घनेरे।।4।।

व्याख्या :

वे दोनों ही विजयी, सुशील, गुणों के धाम है और अत्यंत सुंदर, मानो भगवान जी के प्रतिबिंब ही हो। दो-दो पुत्र सभी भाइयों के हुये, जो बड़े ही सुंदर, गुणी और सुशील हैं।

पुत्रोत्पति, अयोध्याजी की रमणीयता, सनकादिका आगमन और संवाद

दोहा :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Putrotpati Ayodhyaji Ramniyata Chopai Vyakhya in Hindi

ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार।
सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार।।25।।

व्याख्या :

जो ज्ञान, वाणी और इंद्रियों की पहुंच से परे है, अजन्मा है तथा माया, मन और गुणों के परे है, वही सच्चिदानंद घन भगवान मनुष्य का सा चरित्र करते हैं।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Path Arth in Hindi

प्रातकाल सरऊ करि मज्जन। बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन।।
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं।।1।।

व्याख्या :

प्रात:काल सरयू में स्नान करके श्रीरामचंद्र जी ब्राह्मणों और अन्य सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं। वशिष्ठ जी वेद और पुराण कहते हैं। श्रीराम जी सब सुनते हैं। यद्यपि वे सब जानते हैं।

चौपाई :

UttarKand श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां व्याख्या in Hindi

अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं। देखि सकल जननीं सुख भरहीं।।
भरत सत्रुहन दोनउ भाई। सहित पवनसुत उपबन जाई।।2।।

व्याख्या :

वे अपने भाइयों को साथ लेकर भोजन करते हैं। उन्हें देखकर सब माताएँ आनंद से भर जाती हैं। भरत जी और शत्रुघ्न जी दोनों भाई हनुमान जी को साथ लेकर उपवन में जाते हैं।

चौपाई :

Tulsidas Krit UttarKand श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां व्याख्या in Hindi

बूझहिं बैठि राम गुन गाहा। कह हनुमान सुमति अवगाहा।।
सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं। बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं।।3।।

व्याख्या :

दोनों भाई हनुमान जी को साथ ले जाकर और वहां उपवन में बैठकर श्रीराम जी के गुणों की कथाएँ सुनते हैं। हनुमान जी अपनी सुंदर बुद्धि से, उन गुणों में डुबकी लगाकर उनका वर्णन करते हैं। श्रीराम जी के विमल गुणों को सुनकर, वे बड़ा ही सुख पाते हैं और विनय करके बार-बार कहलवाते हैं।

चौपाई :

श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड चौपाईयां व्याख्या with Meaning in Hindi

सब कें गृह गृह होहिं पुराना। राम चरित पावन बिधि नाना।।
नर अरु नारि राम गुन गानहिं। करहिं दिवस निसि जात न जानहिं।।4।।

व्याख्या :

सबके यहाँ घर-घर में पुराणों और अनेक प्रकार के पवित्र राम-चरित्रों की कथाएँ होती है। पुरुष और स्त्री सभी श्रीराम जी के गुणों का गान करते हैं। वे दिन और रात का बीतना जान ही नहीं पाते।

अच्छा तो दोस्तों ! अब तक हमने उत्तरकाण्ड के 25वें दोहों और चौपाईयों तक विस्तारपूर्वक व्याख्या समझ ली है। उम्मीद है कि अब तक आपको समझने में कोई कठिनाई नहीं हुई होगी। उत्तरकाण्ड को हम अभी यही तक समझेंगे और अब एक नये अध्याय के साथ फिर से मिलेंगे। धन्यवाद !


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड व्याख्या Uttarkand – भाग 17 के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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