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Ramchandra Shukla Ka Bhramar Geet Saar भ्रमरगीत सार अर्थ
भ्रमरगीत सार अर्थ Ramchandra Shukla Ka Bhramar Geet Saar in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज के अध्याय में हम रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित “भ्रमरगीत सार” की पद संख्या 48 से 50 तक की व्याख्या को समझने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :
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रामचंद्र शुक्ल का भ्रमरगीत सार Bhramar Geet Saar [पद #48-50]
Ramchandra Shukla Ka Bhramar Geet Saar Arth in Hindi : दोस्तों ! “भ्रमरगीत सार” के 48-50 तक के पदों की विस्तृत व्याख्या इस तरह से समझिये :
#पद : 48
भ्रमरगीत सार अर्थ Ramchandra Shukla Ka Bhramar Geet Saar Raag Sarang in Hindi
राग सारंग
फिरि फिरि कहा सिखावत बात ?
प्रातकाल उठि देखत, ऊधो, घर घर माखन खात।।
जाकी बात कहत हौ हमसों सो है हमसों दूरि।
ह्याँ है निकट जसोदानँदन प्रान-सजीवनमूरि।।
बालक संग लये दधि चोरत खात खवावत ड़ोलत।
सूर सीस सुनि चौंकत नवावहि अब काहे न मुख बोलत ?
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | प्रान-सजीवनमूरि | संजीवनी बूटी के समान प्राण एवं जीवन का संचार करने वाली |
02. | लये | लिए हुए |
03. | दधि | दही |
04. | खवावत | खिलाता |
05. | सीस नवावहि | सिर को झुका लेते हो |
व्याख्या :
दोस्तों ! गोपियाँ कहती है कि हे उद्धव ! तुम हमें बार-बार निर्गुण ब्रह्म की साधना का उपदेश क्यों दे रहे हो ? यह तुम्हारा व्यर्थ का प्रयास है, क्योंकि हमारे जीवन में श्री कृष्ण इतनी अधिक गहराई तक बैठ गये हैं कि उन्हें भुला पाना अत्यंत कठिन है। यहां प्रतिदिन हम उन्हें प्रात:काल घर-घर मक्खन खाते हुये देखती हैं। आप जिस निर्गुण ब्रह्म की बात हमसे कर रहे हैं, उसकी आराधना करने को कह रहे हैं, वह हमसे बहुत दूर है।
यहां ब्रज में तो हमारे निकट श्री कृष्ण निवास करते हैं और यशोदानन्दन श्री कृष्ण संजीवनी बूटी के समान जीवन संचार करने वाले हैं। आज भी वे ग्वाल-बालों को साथ लेकर दही चुराकर खाते हुये और कुछ अन्य लोगों को खिलाते हुये घूमते-फिरते दिखाई देते हैं। जब चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़े जाते हैं तो चौंककर, लज्जित होकर सिर झुकाकर खड़े हो जाते हैं। हमारे डांटने-फटकारने पर भी कोई उत्तर नहीं देते हैं।
दोस्तों ! श्री कृष्ण के प्रति गोपियों के अनन्य प्रेम की व्यंजना करते हुये सूरदास जी कहते हैं कि गोपियों को श्री कृष्ण की उपस्थिति का आभास होता रहता है। वे उनकी लीलाओं का स्मृति के द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव करती है।
#पद : 49.
भ्रमरगीत सार अर्थ Ramchandra Shukla Ka Bhramar Geet Saar Raag DhanaShri with Hard Meaning
राग धनाश्री
अपने सगुन गोपालै, माई ! यहि बिधि काहे देत ?
ऊधो की ये निरगुन बातैं मीठी कैसे लेत।
धर्म, अधर्म कामना सुनावत सुख औ मुक्ति समेत।।
काकी भूख गई मनलाडू सो देखहु चित चेत।
सूर स्याम तजि को भुस फटकै मधुप तिहारे हेत ?
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | मीठी कैसे लेत | स्वीकार कर ग्रहण करें |
02. | तजि | छोड़कर |
03. | भुस फटकै | व्यर्थ परिश्रम करें |
04. | तिहारे हेत | तुम्हारे लिए |
व्याख्या :
दोस्तों ! गोपियाँ आपस में बात कर रही है। एक गोपी दूसरी गोपी से कह रही है कि हे सखी ! हम अपने सगुण गोपाल श्री कृष्ण को उद्धव को कैसे दे दे और उद्धव के निर्गुण विषयक विष के समान प्राणघातक वचनों को मधुर, प्रिय और व्यंग्य करने योग्य मानकर किस प्रकार स्वीकार कर ले ?
आगे गोपियाँ कहती है कि इस उद्धव ने हमारे सामने अनेक बार धर्म-अधर्म की व्याख्या की है और यह प्रलोभन दिया है कि यदि हम इसके द्वारा बताये गये निर्गुण ब्रह्म की उपासना करें तो हमें सुख प्राप्त होगा, किंतु उद्धव की यह बातें असंभव सी प्रतीत होती हैं। इसलिए हम इन्हें समझ नहीं पा रही हैं।
जरा यह सोचो कि आज तक मन में लड्डू खाने से किसकी भूख शांत हुई है। उद्धव लड्डू के समान श्री कृष्ण के प्रेम के समक्ष निर्गुण ब्रह्म की उपासना करने का संदेश दे रहे हैं। उनकी उपासना से मुक्ति प्राप्त होती है, परंतु हमें उनके शब्दों से लगता है कि जैसे हाथ में आई हुई वस्तु को छोड़कर अप्राप्य और काल्पनिक वस्तु के पीछे भागना। ये किस तरह से उचित हो सकता है ?
हे मधुप ! हम यहां खाली नहीं बैठी हैं जो श्री कृष्ण को छोड़कर, निर्गुण की उपासना जैसे भूस को फटकने का व्यर्थ कार्य करें। यह ब्रह्म की आराधना करना बेकार की माथापच्ची करना है। ऐसे कामों का कोई परिणाम नहीं निकलता है।
#पद : 50.
भ्रमरगीत सार अर्थ Ramchandra Shukla Ka Bhramar Geet Saar Shabdarth Sahit
राग सारंग
हमको हरि की कथा सुनाव।
अपनी ज्ञानकथा हो, ऊधो ! मथुरा ही लै गाव।।
नागरि नारि भले बूझैंगी अपने वचन सुभाव।
पा लागों, इन बातनि, रे अलि ! उनहीं जाय रिझाव।।
सुनि, प्रियसखा स्यामसन्दर के जो पै जिय सति भाव।
हरिमुख अति आरत इन नयननि बारक बहुरि दिखाव।।
जो कोउ कोटि जतन करै, मधुकर, बिरहिनि और सुहाव ?
सूरदास मीन को जल बिनु नाहिंन और उपाव।।
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | नागरि नारि | मथुरा नगर की चतुर स्त्रियाँ |
02. | बूझैंगी | पूछेगी |
03. | रिझाव | प्रसन्न करो |
04. | जिय | हृदय |
05. | सतीभाव | एक बार |
06. | बहुरि | पुन: फिर |
07. | कोटि | करोड़ |
08. | जतन | यत्न, प्रयत्न |
09. | मीन | मछली |
10. | उपाव | उपाय |
व्याख्या :
दोस्तों ! उद्धव की निर्गुण ब्रह्म की चर्चा गोपियों को अच्छी नहीं लगती। वे ऊबकर उद्धव से कहती है कि हे उद्धव ! हमको हरि की कथा सुनाओ। तुम हमें केवल श्री कृष्ण की कथा सुनाओ। हमारे सामने केवल उन्हीं की चर्चा करो। यह जो तुम्हारी निर्गुण ब्रह्म की कथा है। इसे मथुरा वापस ले जाओ और वही जाकर के वहां के लोगों के सामने इसे गा-गाकर सुनाते रहो।
मथुरा नगर की नारियाँ चतुर है, इसलिए वे तुम्हारे इस निर्गुण ब्रह्म को समझ जायेंगी और इसे सुनने की जिज्ञासा भी करेगी। हे उद्धव ! हम आपके पाँव पड़ती हैं। आप इस निर्गुण संबंधी चर्चा को ले जाकर उन्हीं चतुर स्त्रियों को सुनाकर के रिझाओ। हे उद्धव ! यदि तुम श्यामसुंदर के प्रिय सखा हो और यदि तुम्हारे मन में हम विरहणियों के प्रति सहानुभूति का भाव है तो फिर श्री कृष्ण के मुख के दर्शन के लिये तड़प रहे इन व्याकुल नेत्रों को एक बार उस मोहिनी मूर्त के दर्शन करा दो।
गोपियाँ कहती है कि हे उद्धव ! आप हमें यह बताओ कि करोड़ों प्रयत्न करने पर भी विरहिणी नारियों को अपने प्रियतम की चर्चा के अतिरिक्त, और कोई चर्चा सुहा सकती है भला। जिस प्रकार तड़पती हुई मछली के लिये जीवन प्राप्त करने का और कोई उपाय नहीं होता, उसी प्रकार विरह में व्याकुल हम गोपियों के लिये श्री कृष्ण की चर्चा ही एकमात्र उपाय है, जिससे हम जीवन धारण किये रह सकती हैं और इसलिए अपने इस ज्ञान कथा को बंद करो, अन्यथा हमारा जीवित रहना कठिन हो जायेगा।
तो दोस्तों ! आज के इन्हीं पदों के साथ आपके पास भ्रमरगीत सार के कुल 50 पदों की विस्तृत व्याख्या के नोट्स तैयार हो गये है। हम चाहते है कि जितनी मेहनत और लगन से हमने आपको समझाया है, उतनी ही लगन से आप भी इन पदों को अच्छे से तैयार करे। शुक्रिया !
ये भी अच्छे से समझे :
एक गुजारिश :
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