Ram Ki Shakti Pooja Pad | राम की शक्ति पूजा के पद (13-15)


दोस्तों ! हम RPSC द्वारा आयोजित परीक्षा कॉलेज लेक्चरर के सीरीज पाठ्यक्रम का अध्ययन कर रहे हैं। आज हम इसके पाठ्यक्रम में लगी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित कविता Ram Ki Shakti Pooja Pad | राम की शक्ति पूजा के 13-15 पदों की व्याख्या करने जा रहे है।

अब तक हम इसके 12 पदों का विस्तार से अध्ययन कर चुके है। निराला ने “राम की शक्ति पूजा” में पौराणिक कथानक लिया है। जिसके माध्यम से निराला जी समकालीन संघर्ष की कहानी कहना चाह रहे है। हमें अपनी परीक्षा की दृष्टि से राम की शक्ति पूजा का अध्ययन करना है। इसी क्रम में हम आगे के पदों का अध्ययन करने जा रहे है :

आप सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कृत “राम की शक्ति पूजा कविता” का विस्तृत अध्ययन करने के लिए नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये :


Ram Ki Shakti Pooja Pad | राम की शक्ति पूजा के पदों की व्याख्या


सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कृत कविता “राम की शक्ति पूजा” के अगले 13 से 15 तक के पदों की विस्तृत व्याख्या इस प्रकार से है :

पद : 13.

Ram Ki Shakti Pooja Kavita Ke 13 to 15 Pado Ki Vyakhya :

सब सभा रही निस्तब्ध
राम के स्तिमित नयन
छोड़ते हुए शीतल प्रकाश देखते विमन,
जैसे ओजस्वी शब्दों का जो था प्रभाव
उससे न इन्हें कुछ चाव, न कोई दुराव,
ज्यों हों वे शब्दमात्र मैत्री की समनुरक्ति,
पर जहाँ गहन भाव के ग्रहण की नहीं शक्ति।

अर्थ :

  • इस पद में निराला बताते है कि श्री राम, जो पौरुष के धनी थे और मानवता के रक्षक थे, वे रावण से युद्ध करते रहने पर भी किसी निर्णायक स्थिति में नहीं पहुंच पाये। अर्थात् विजय प्राप्त नहीं कर पाये और इसलिए वे दु:खी हो जाते हैं, उनका दु:ख बढ़ता ही जा रहा था। जिससे उनके सभी मित्रगण और आत्मीय-बंधु उन्हें प्रबोधित करने लगे एवं निराशा के अंधकार से मुक्त होने की प्रेरणा देने लगे।
  • विभीषण ने श्री राम को एक सच्चे मित्र के नाते पर्याप्त संबोधित किया, परंतु श्री राम चुपचाप बैठे रहे। विभीषण के प्रबोधन का श्री राम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। पर ऐसा अवश्य लग रहा था कि विभीषण की बातों का प्रभाव उपस्थित सैनिकों और सेनानायकों पर अवश्य पडा।
  • इस स्थिति का वर्णन निराला जी ने इस पद में किया है कि विभीषण की कही गयी बातों और उपदेशों को सुनकर सारी सभा ही मौन रही और कोई कुछ नहीं बोला। फिर श्री राम तरल नेत्रों के प्रकाश विकीर्ण से, उद्दीपन भाव से सब कुछ देखते रहे। जैसे विभीषण के ओजमय शब्दों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा हो।

कुछ क्षण तक रहकर मौन सहज निज कोमल स्वर,
बोले रघुमणि-“मित्रवर, विजय होगी न समर,
यह नहीं रहा नर-वानर का राक्षस से रण,
उतरीं पा महाशक्ति रावण से आमन्त्रण,

अर्थ :

  • विभीषण का लंबा-चौड़ा वक्तव्य सुनकर भी श्री राम अप्रभावित रहे। कुछ समय श्री राम शांत रहने के बाद बड़े कोमल और मीठे स्वर में विभीषण से बोले कि हे मित्र ! युद्ध में हमें अब सफलता नहीं मिलेगी। इसका कारण यह है कि यह जो युद्ध हो रहा है, यह मनुष्य या वानरों का राक्षसों से होने वाला युद्ध नहीं है, यह इससे भी कुछ अधिक है।
  • अर्थात् श्री राम समझाना चाह रहे हैं कि यदि यह हमारा केवल राक्षसों से युद्ध होता तो हम निश्चित रूप से विजयी होते और युद्ध का निर्णय हो गया होता। श्री राम कह रहे हैं कि रावण द्वारा उपासना के लिए आमंत्रित महाशक्ति रावण की सहायता कर रही है। वह युद्ध क्षेत्र में उतर आई हैं। जब अलौकिक शक्ति ही रावण की पक्षधर बनी हुई है तो फिर इस युद्ध को हम कैसे जीत सकते हैं ?


पद : 14.

Ram Ki Shakti Pooja kavita ke 13-15pado ka bhaav Saar in Hindi :

अन्याय जिधर, हैं उधर शक्ति।” कहते छल छल
हो गये नयन, कुछ बूँद पुनः ढलके दृगजल,
रुक गया कण्ठ, चमका लक्ष्मण तेजः प्रचण्ड
धँस गया धरा में कपि गह युगपद, मसक दण्ड
स्थिर जाम्बवान, समझते हुए ज्यों सकल भाव,
व्याकुल सुग्रीव, हुआ उर में ज्यों विषम घाव,
निश्चित सा करते हुए विभीषण कार्यक्रम
मौन में रहा यों स्पन्दित वातावरण विषम।

अर्थ :

  • यहां पूर्व प्रसंग अनुसार ही श्री राम का ही कथन चल रहा है। श्री राम विभीषण से अपने मन की दशा बता रहे हैं। वे विभीषण से युद्ध में हार के कारणों के बारे में बता रहे हैं । वे विभीषण से कहते हैं कि हे विभीषण ! जहां अन्याय है, अधर्म है, वहीं पर शक्ति भी है। ऐसी स्थिति देखकर मुझे आश्चर्य हो रहा है अर्थात् श्री राम यह कहना चाहते हैं कि शक्ति को न्याय और धर्म के पक्ष में होना चाहिए, जबकि वह अन्याय और अधर्मी रावण के पक्ष में है।
  • यह ऐसी स्थिति मुझे परेशान कर रही है। ऐसा कहते-कहते श्री राम की आंखों से आंसू निकलने लगे। उनकी आंखों से लुढ़ककर दो बूंद नीचे भी गिर पड़ी और उनका गला रूंध गया। उनकी ऐसी स्थिति देखकर लक्ष्मण प्रचंड शौर्य से उद्दीप्त हो उठे ।
  • और इतना ही हनुमान जी भी संकोच के मारे नीचे गिर गए कि मेरे होते हुए श्री राम की यह स्थिति हो रही है। उनके प्रभु दु:खी हो रहे हैं, यह उनके लिए बहुत शर्म की बात है। इसलिए वह कुछ कह नहीं सके। संकोच के कारण हनुमान जी का शरीर भी संकुचित हो गया। हनुमान जी श्री राम के चरणों पर हाथ रखे बैठे थे और वे मच्छर के समान छोटे दिखाई दे रहे थे।

निज सहज रूप में संयत हो जानकी-प्राण
बोले-“आया न समझ में यह दैवी विधान।
रावण, अधर्मरत भी, अपना, मैं हुआ अपर,
यह रहा, शक्ति का खेल समर, शंकर, शंकर!

अर्थ :

  • कुछ देर यही स्थिति बनी रही, फिर श्री राम अपने संयमित स्वर में बोले कि विधाता की विचित्र लीला है। कुछ भी समझ नहीं आता है कि रावण अन्यायी, अधर्मी व अत्याचारी है, फिर भी शक्ति का परम आत्मीय बना हुआ है और मैं धर्मनिष्ठ होकर भी पराया बन गया हूं।
  • यह क्या है ? और इसमें विधाता की क्या इच्छा है ? यह मुझे समझ में नहीं आ रहा है। अंत में श्री राम कहते हैं कि शिव-शिव यह क्या हो रहा है ? इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।

विशेष :

  • भाषा में सामासिक शब्दों का प्रयोग हुआ है।
  • यहाँ उपमा, अनुप्रास जैसे अलंकारों का प्रयोग हुआ है।


पद : 15.

Suryakant Tripathi Nirala Krit Ram Ki Shakti Pooja Kavita 13-15 Pad Bhavarth in Hindi :

करता मैं योजित बार-बार शर-निकर निशित,
हो सकती जिनसे यह संसृति सम्पूर्ण विजित,
जो तेजः पुंज, सृष्टि की रक्षा का विचार,
हैं जिसमें निहित पतन घातक संस्कृति अपार।

शत-शुद्धि-बोध, सूक्ष्मातिसूक्ष्म मन का विवेक,
जिनमें है क्षात्रधर्म का धृत पूर्णाभिषेक,
जो हुए प्रजापतियों से संयम से रक्षित,
वे शर हो गये आज रण में, श्रीहत खण्डित!

अर्थ :

  • श्री राम उपस्थित समुदाय से अपने मन की बातों को स्पष्ट कर रहे हैं। विशेषकर विभीषण से श्री राम कह रहे हैं कि मैं बार-बार मेरे ऐसे बाणों का प्रयोग कर रहा हूं, जिससे पूरे संसार को भी जीता जा सकता है। इन बाणों में विध्वंसकारी शक्ति है, किंतु मुझे आश्चर्य हो रहा है कि यह बाण युद्ध में प्रभाव रहित होकर टुकड़े-टुकड़े हो रहे हैं।

देखा हैं महाशक्ति रावण को लिये अंक,
लांछन को ले जैसे शशांक नभ में अशंक,
हत मन्त्रपूत शर सम्वृत करतीं बार-बार,
निष्फल होते लक्ष्य पर क्षिप्र वार पर वार।

अर्थ :

  • श्री राम कहते हैं कि जैसे चंद्रमा कलंक कालिमा को अपने हृदय में धारण करके रखता है। इसी प्रकार महाशक्ति रावण को अपने सत्संग में शरण दिये हुये हैं अर्थात् रावण को स्वयं महाशक्ति रक्षित कर रही है। मंत्रों से पवित्र करके मैं जब बाणों को प्रक्षेपित करता था तो महाशक्ति उन्हें बार-बार व्यर्थ कर देती थी। बिजली की गति से किये गये प्रहार रावण को भेदने में असफल हो रहे थे ।

विशेष :

  • यहाँ उपमा, रूपक, अनुप्रास जैसे अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
  • पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का भी प्रयोग हुआ है।


इसप्रकार आज हमने Ram Ki Shakti Pooja Pad | राम की शक्ति पूजा के 13 से 15 तक के पदों का अध्ययन किया । उम्मीद है कि आपको इसका भाव अच्छे से समझ आ ही गया होगा। Ram Ravan Yudh Vyakhya in Ram Shakti Puja के अंतर्गत हम अगले पदों को लेकर फिर से आएंगे। तब तक बने रहिये हमारे साथ !

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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Ram Ki Shakti Pooja Pad | राम की शक्ति पूजा के पद (13-15) के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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