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Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य


नमस्कार दोस्तों ! आज हम हिंदी साहित्य के एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य के बारे में चर्चा करने जा रहे है। जिसके पांचो सम्प्रदायों क्रमशः निम्बार्क संप्रदाय | राधा वल्ल्भ सम्प्रदाय | सखी संप्रदाय | गौड़ीय संप्रदाय | वल्लभ सम्प्रदाय आदि के बारे में विस्तार से समझाने जा रहे है।



Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य : सगुण भक्ति धारा के कृष्ण भक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि सूरदास जी माने जाते हैं। फिर भी कृष्ण भक्ति साहित्य में विभिन्न संप्रदायों में बहुत से कवि हुए हैं, जिन्होंने बहुत सी रचनाएं लिखी और कृष्ण भक्ति साहित्य को विपुल किया।

जैसा कि आप जानते हैं कि कृष्ण भक्ति साहित्य में विभिन्न संप्रदाय चले जैसे निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ संप्रदाय, गौड़ीय संप्रदाय आदि। अलग-अलग संप्रदायों में श्रीकृष्ण की भक्ति भी भिन्न -भिन्न प्रकार से होती थी। इन्हीं संप्रदायों के बारे में हम आज अध्ययन करेंगे।


Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य में संप्रदाय


Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य में संप्रदाय : कृष्ण भक्ति साहित्य में विभिन्न संप्रदाय इस प्रकार से है :

निम्बार्क संप्रदाय (सनक या हंस संप्रदाय)निम्बार्कद्वैताद्वैतवाद / प्राचीन भेदाभेदवाद
सखी संप्रदायस्वामी हरिदास
राधा वल्लभ संप्रदायहित हरिवंश
वल्लभ संप्रदायवल्लभाचार्यविशुद्धा दैतवाद
गौड़ीय संप्रदायचैतन्य महाप्रभुअचिन्त्य भेदाभेदवाद


इन्होंने अपने आराध्य श्री कृष्ण की विभिन्न स्वरूपों में आराधना की है। उनके आराध्य देव इस प्रकार है :

निम्बार्क संप्रदाय (सनक या हंस संप्रदाय)राधा कृष्ण की युगल उपासना
सखी संप्रदायनिकुंज बिहारी
राधा वल्लभ संप्रदायनित्य बिहारी
वल्लभ संप्रदायसच्चिदानंद पूर्णानंद परमब्रह्म पुरुषोत्तम
गौड़ीय संप्रदायबृजेंद्र कुमार कृष्ण

चलिए अब इन संप्रदायों के बारे में विस्तार पूर्वक जानते है :

1. निम्बार्क संप्रदाय | Nimbarka Sampradaya :

Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य में सबसे पहले निम्बार्क संप्रदाय का नाम आता है। निम्बार्क संप्रदाय के प्रवर्तक निम्बार्क है। इनका जन्म 1162 ई. में मैसूर के वेल्लारी के निम्बापुर गांव में हुआ। इनके बचपन का नाम “आरुणि” था जो आगे चलकर नियमानंद और निम्बार्क हो गया।

निम्बार्क के शिष्य “श्रीनिवासाचार्य” ने वेदांत कौस्तुभ की रचना की है। इस पुस्तक से निम्बार्क संप्रदाय पर प्रकाश पड़ता है।

निम्बार्क की प्रमुख रचनाएं :

  1. प्रपन्न कल्पवल्ली
  2. मंत्र रहस्य षोडसी
  3. वेदांत पारिजात सौरभ
  • कृष्ण भक्ति से संबंधित संप्रदायों में यह सबसे प्राचीन संप्रदाय है। निम्बार्क संप्रदाय से ही सखी संप्रदाय विकसित हुआ है ।
  • इसमें राधा का स्वकीया स्वरूप है तथा राधा कृष्ण की युगल उपासना का प्रावधान है।
  • वृंदावन में श्री जी की बड़ी कुंज मंदिर है जो निम्बार्क संप्रदाय से संबंधित है। राजस्थान के सलेमाबाद में इसकी प्रधान पीठ है।
  • निम्बार्क को श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता है।

निम्बार्क संप्रदाय के अन्य कवि :

श्री भट्ट :

  • इनकी रचना “युगल शतक” में 100 पद हैं जो बृज भाषा में रचित है।
  • निम्बार्क संप्रदाय की परंपरा में श्री भट्ट को हितुसखी का अवतार कहा जाता है।


हरिव्यास देव :

  • इन्होंने महावाणी (ब्रजभाषा), सिद्धांत रत्नावली (संस्कृत) की रचना की है।
  • महावाणी 5 सुखों में विभाजित है। हरिव्यास देव के 12 शिष्यो ने अखाड़ों की स्थापना की है। कुछ विद्वान महावाणी को उनके शिष्य “रूपरसिक” की रचना मानते हैं।

परशुराम देव व्यास :

  • यह हरिव्यास देव के शिष्य थे। इन्होंने परशुराम सागर की रचना की।
  • ये ही ब्रजमंडल से निम्बार्क संप्रदाय की पीठ को राजस्थान के सलेमाबाद में लाए थे। इन्होंने राम भक्ति परंपरा में रसिक शाखा का प्रवर्तन किया।


2. राधा वल्ल्भ सम्प्रदाय | Radha Vallabha Sampradaya :

Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य में दूसरा संप्रदाय राधा वल्ल्भ सम्प्रदाय है। इस संप्रदाय के प्रवर्तक हित हरिवंश है। इनका जन्म 1502 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के देवबंद (सहारनपुर) कस्बे में हुआ। इन्होंने वृन्दावन में राधा वल्लभ संप्रदाय की स्थापना 1534 ईस्वी में की थी।

इस संप्रदाय की उपासना का आधार रस है। इसकी उपासना को रसोपासना कहा जाता है। इसमें राधा को कृष्ण से भी उच्च स्थान दिया गया है।

इसके मंदिरो में कृष्णजी के साथ राधा का विग्रह नहीं होता। श्री कृष्ण के वाम भाग में वस्त्र निर्मित गद्दी होती है। जिस पर स्वर्णिम अक्षरों में ताम्र पत्र पर “श्रीराधाः” शब्द अंकित रहता है। इसे ही “गद्दी सेवा” कहते है।

इस संप्रदाय का तिलक भाल प्रदेश नासिका भाग से उर्ध्व भाग अर्थात त्रिकुटी तक रहता है। बीच में काली बिन्दी रहती है। तिलक की सीधी रेखाओं को कृष्ण और काली बिन्दी को राधा माना जाता है।

राधा वल्लभ संप्रदाय के आराध्य नित्य विहार है। इसमें चार तत्व होते है :

  • राधा
  • कृष्ण
  • वृन्दावन
  • सहचरी(जीवात्मा)

हित हरिवंश को कृष्ण की वंशी का अवतार कहा जाता है। प्रेम में त्वसुखी भाव को स्थान देने की जितनी सफल चेष्टा इस संप्रदाय में मिलती है वैसी अन्यत्र कही नहीं।

हित हरिवंश की रचनाये :

  1. राधा सुधा निधि (संस्कृत)
  2. यमुनाष्टक (संस्कृत)
  3. हित चौरासी (ब्रिज भाषा)

“हित चौरासी” इस संप्रदाय का आधारभूत ग्रन्थ है। हित हरिवंश के देहांत पर उनके शिष्य “हरिराम व्यास” ने मार्मिक पद लिखा।

“बड़ो अभाग्य अनन्य सभा को, उठि गयो ठाठ श्रृंगार।
हुतो सब रस रसिकन को आधार।।”

इस संप्रदाय के अन्य कवि :

1..दामोदर दास (सेवकजी)

2. हरिराम व्यास : ये ओरछा नरेश मधुकर शाह के राजगुरु माने जाते है।

3. चतुर्भुज दास :

इनकी रचनाएं हैं :

  1. हित जू को मंगल
  2. द्वादशयश
  3. भक्ति प्रताप

(मिश्र बंधु, रामचंद्र शुक्ल और रामकुमार वर्मा ने इतिहास ग्रंथों में यह तीन रचनाएं अष्टछाप के कवि चतुर्भुज दास की बतलाई है। इस भ्रम का निवारण दीनदयाल गुप्त ने किया है।)

4. दीनदयाल गुप्त :

  • वल्लभ संप्रदाय
  • अष्टछाप

5. ध्रुव दास :

इनका जन्म 1573 ई. के लगभग हुआ था। इनके 42 ग्रंथ माने जाते हैं। मिश्र बंधुओं ने 42 ग्रंथों के अलावा वाणी को भी इनका ग्रंथ माना है। कृष्ण भक्ति साहित्य में सर्वाधिक ग्रंथों की रचना करने वाले ध्रुव दास कवि हैं।

ध्रुव दास की रचनाएं :

  1. हित श्रंगार लीला
  2. भक्त नामावली


6. वियोगी हरि : ब्रज माधुरी सार (जीवनी)

इनके 40 ग्रंथ है । परंतु आचार्य शुक्ल ने 37 ग्रंथ माने है। वियोगी हरि की वीर सतसई भी प्रसिद्ध रचना रही है।

7. नेही नागरी दास : राधाष्टक


3. सखी संप्रदाय | Sakhi Sampradaya :

Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य में सखी संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामी हरिदास हैं। स्वामी हरिदास तानसेन के गुरु माने जाते हैं । वृंदावन के निकट राजापुर गांव में 1478 ईस्वी में स्वामी हरिदास का जन्म हुआ।

ये कृष्ण की सखी के रूप में भक्ति किया करते थे। इन्होंने सखी भावना की उपासना को युग का धर्म बना दिया। ऐसा उल्लेख मिलता है कि हरिदास जी की उपासना के फलस्वरुप वृंदावन में श्री बांकेबिहारी जी की मूर्ति प्रकट हुई।

स्वामी हरिदास की रचनाएं :

  1. सिद्धांत के पद
  2. केलिमाल (110 पद )

ये निकुंज विहार की आराधना करते थे। किशोर दास की चर्चित रचना निजमत सिद्धांत से सखी संप्रदाय की मान्यताओं पर प्रकाश पड़ता है।

स्वामी हरिदास के लगभग 200 वर्षों बाद ललित मोहिनी जी नामक भक्त कवि वृंदावन में बांस की टांटियों का घर बना कर रहा करते थे। इसी आधार पर सखी संप्रदाय को टांटी या टटियां संप्रदाय भी कहते हैं। सर्वप्रथम यह नाम करण मिश्र बंधुओं ने किया है।

सखी संप्रदाय के अन्य कवि :

1..बीठल विपुल :

यह स्वामी हरिदास से 5 साल बड़े ममेरे भाई हैं। नाभादास ने भक्तमाल में इन्हें रससागर की उपाधि दी है। इनकी वाणी में केवल 40 पद ही प्राप्त होते हैं।

2. नागरी दास : किशनगढ़ के राजा सावंत सिंह

3. जगन्नाथ गोस्वामी

4. बिहारी दास | बिहारिन दास :

इस संप्रदाय के ये सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं । इसमें यह गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध है।


4. गौड़ीय संप्रदाय | Gaudiya Sampradaya

Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य में गौड़ीय संप्रदाय के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु है। इनका दर्शन अचिंत्य भेदाभेदवाद है। इनका जन्म 1486 में बंगाल के नवदीप में हुआ। इनकी पत्नी का नाम विष्णु प्रिया था। इन्होंने मात्र 24 वर्ष की उम्र में सन्यास लिया था। इनके अन्य नाम है : गौरांग, निमाई, विश्वंभर।

इनके गुरु केशव भारती ने इन्हें कृष्ण चैतन्य का नाम लिया। चैतन्य महाप्रभु कीर्तन पद्धति के जन्मदाता माने जाते हैं।

इस संप्रदाय में राधा का परकीया स्वरूप मान्य है। गौड़ीय संप्रदाय पर सूफियाना प्रेम का प्रभाव दिखलाई देता है। गोस्वामी बंधू स्वयं को चैतन्य महाप्रभु का शिष्य मानते हैं। गोस्वामी बंधुओं ने ही सर्वप्रथम कृष्ण भक्ति साहित्य को शास्त्रीय धरातल पर स्थापित किया।

गौड़ीय संप्रदाय के अन्य कवि :

1..बलदेव विद्या भूषण : गोविंद भाष्य

गोविंद भाष्य से गौड़ीय संप्रदाय की दार्शनिक मान्यताएं उजागर होती है। इस संप्रदाय में भक्ति के पांच भेद किए गए हैं :

  1. शांत
  2. दास्य
  3. सख्य
  4. माधुर्य
  5. वात्सल्य

सबसे ज्यादा महत्व माधुर्य भक्ति को दिया गया है । गौड़ीय संप्रदाय में वियोग पक्ष पर अधिक बल दिया गया है।

2. राम राय : आदि वाणी, गीत गोविंद भाष्य

3. सूरदास मदनमोहन :

यह अकबर के समय संडील परगने के दीवान थे। एक बार इन्होंने 13 लाख स्वर्ण मुद्राएं साधुओं में बांट दी थी।

“तेरह लाख संडीलें आए, सब साधुन मिली गटके
सूरदास मदनमोहन आधी रात में सटके।


4. गदाधर भट्ट :

मिश्र बंधुओं ने गदाधर भट्ट के ध्यानमाला ग्रंथ का उल्लेख किया है।

5. चंद्र गोपाल :

इनके संस्कृत में लिखे ग्रंथ इस प्रकार है :

  1. श्री राधा माधवाष्टक
  2. गायत्री भाषा
  3. श्री राधा माधव भाष्य

इनके ब्रज भाषा में लिखे ग्रंथ इस प्रकार है :

  1. अष्टयाम सेवा सुधा
  2. गौरांग अष्टयाम
  3. चंद्र चौरासी
  4. राधा विरह
  5. ऋतु विहार

6. भगवान दास :

ये आगरा के सूबेदार के दीवान थे।

7. भगवत मुदित :

ये आगरा के सूबेदार सूजा के दीवान थे।

इनकी रचनाये इस प्रकार है :

  1. वृन्दावन शतक
  2. अनन्य रसिकमाल

(वृन्दावन शतक श्री प्रबोधानन्द सरस्वती के वृन्दावन महिमामृत नामक सरस संस्कृत ग्रन्थ के एक शतक का अनुवाद है)



5. वल्लभ सम्प्रदाय | Vallabha Sampradaya :


Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य में वल्लभ सम्प्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य है। इनका जन्म 1479 ईस्वी में बनारस के चम्पानगर गांव में तेलंग ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके गुरु का नाम विष्णु स्वामी है। इस संप्रदाय को कृष्णभक्ति साहित्य की रीढ़ कहा जाता है।

वल्लभाचार्य की प्रमुख रचनाये :

  1. पूर्व मीमांसा भाष्य
  2. उत्तर मीमांसा भाष्य (ब्रह्मसूत्र,अणु भाष्य )
  3. श्रीमद्भागवत पुराण की सूक्ष्म टीका
  4. सुबोधिनी टीका
  5. तत्व दीप निबंध

इस संप्रदाय में भक्ति के तीन मार्ग बतलाए हैं :

  1. पुष्टि मार्ग
  2. मर्यादा मार्ग
  3. प्रवाह मार्ग

जीव के तीन भेद किए हैं :

  1. पुष्टी जीव
  2. मर्यादा जीव
  3. प्रवाही जीव

भक्तों के चार भेद किए गए हैं :

  1. पुष्टी जीव भक्त
  2. प्रवाही जीव भक्त
  3. शुद्ध पुष्टी भक्त
  4. पुष्टि पुष्ट भक्त

अणु भाष्य” वल्लभ संप्रदाय का आधारभूत दार्शनिक ग्रंथ है। अणु भाष्य वल्लभाचार्य की वह रचना है जिसे पूर्ण इनके पुत्र आचार्य विट्ठल ने किया था। 1519 ई.में वल्लभाचार्य के शिष्य पूरणमल खत्री ने श्रीनाथ जी का मंदिर बनवाया था।

वल्लभाचार्य के शिष्य :

  1. कुंभन दास
  2. सूरदास
  3. परमानंद दास
  4. कृष्ण दास

विट्ठल आचार्य के शिष्य :

  1. गोविंद स्वामी
  2. छीत स्वामी
  3. चतुर्भुज दास
  4. नंददास

इन सब को मिलाकर अष्टछाप कवि कहा जाता है।

गोकुलनाथ की रचना “चौरासी वैष्णवन की वार्ता “ वल्लभाचार्य के शिष्यो पर प्रकाश डालती है तथा इनकी रचना “दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता” विट्ठलनाथ की शिष्य परंपरा पर प्रकाश डालती है।

श्रीनाथ जी का मंदिर बन जाने के पश्चात भजन कीर्तन की जिम्मेदारी सूरदास, परमानंद दास, कुंभन दास को दी गई। मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी कृष्णदास को दी गई। कृष्णदास प्रशासक वर्ग या अधिकारी वर्ग के नाम से प्रसिद्ध है।


इसप्रकार दोस्तों ! आपको Krishna Bhakti Sahitya | कृष्णा भक्ति साहित्य और उसके पांचों प्रमुख सम्प्रदायों के बारे में अच्छे से समझ आ गया होगा । उम्मीद करते है कि आपको ये नोट्स जरूर पसंद आये होंगे। इन नोट्स को बार-बार दोहराये ताकि आपको परीक्षा में भरपूर मदद मिल सके। हमने इसमें सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का बखूबी समावेश किया है।


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एक गुजारिश :

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4 thoughts on “Krishna Bhakti Sahitya | कृष्ण भक्ति साहित्य में संप्रदाय”

  1. प्र.क). निंबार्क संप्रदाय की कृष्ण भक्त कवि कौन हैं?

    प्र.ख) राधा वल्लभ संप्रदाय की कृष्ण भक्त कवि कौन हैं?

    Reply

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