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Chinta Sarg – Kamayani | कामायनी का चिंता सर्ग भाग – 11


नमस्कार दोस्तों ! आज हम कामायनी के प्रथम भाग – चिंता सर्ग | Chinta Sarg – Kamayani को समाप्त करने जा रहे है। आज के नोट्स में हम इसके अगले और अंतिम 71-80 पदों की विस्तृत व्याख्या एवं अर्थ को समझेंगे।

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Chinta Sarg – Kamayani | कामायनी के चिंता सर्ग का अर्थ एवं व्याख्या


Jaishankar Prasad Krit Chinta Sarg – Kamayani in Hindi : कामायनी महाकाव्य के प्रथम चिंता सर्ग के अंतिम 71-80 पदों की विस्तृत व्याख्या को इसप्रकार समझे :

पद : 71.

Jai Shankar Prasad Ka Chinta Sarg – Kamayani in Hindi

ओ जीवन की मरु-मरीचिका, कायरता के अलस विषाद !
अरे पुरातन अमृत अगतिमय, मोहमुग्ध जर्जर अवसाद !

अर्थ :

मनु कहते हैं कि जीवन समस्त सुख-दुःख ही नहीं, बल्कि यह संपूर्ण जीवन ही मृगतृष्णा है। यह जीवन एक छल ही है और भुलावा मात्र लगता है। जिस प्रकार मरुस्थल की भूमि में सूर्य की तेज किरणों की चमक से मृग को जल का भ्रम होता है और जल की आशा में दौड़ता चला जाता है, उसी प्रकार से मनुष्य के जीवन में भी सुख कहीं नहीं है, जिसे हम सुख मानते हैं, वह तो केवल भ्रम मात्र है।

मनु को स्वयं पर ग्लानि का अनुभव हो रहा है और वे स्वयं को कायर, आलसी और अवसादग्रस्त समझते हैं। वे कहते हैं कि अत्यंत प्राचीन और अमर जाति का वंशज होते हुए भी, उन्हें मोहग्रस्त और दुखों से जर्जर होना पड़ रहा है। दोस्तों ! इन पंक्तियों में रूपक और विरोधाभास अलंकार प्रयुक्त हुआ है।


पद : 72.

Chinta Sarg – Kamayani Arth in Hindi

मौन नाश विध्वंस अँधेरा, शून्य बना जो प्रकट अभाव।
वही सत्य है, अरी अमरते, तुझको यहाँ कहाँ अब ठाँव।

अर्थ :

मनु प्रलयकारी स्थिति का वर्णन करते हैं और जो भी वे प्रत्यक्ष देखते हैं, उसे भी सत्य समझते हैं। उन्हें चारों ओर व्याप्त अंधकार, नीरवता, नाश, विध्वंस तथा सभी कुछ नष्ट हो जाने के कारण स्पष्ट दिखाई देने वाला यह वातावरण सत्य ही लगता है। अब मनु का यही कहना है कि आज तक सभी देवता स्वयं को अमर समझते थे, यह बात मिथ्या ही थी, क्योंकि यह बात यदि सत्य होती तो इस प्रलय में वे नष्ट नहीं होते।

अतः मनु इस प्रलयकारी महानाश को ही सत्य समझते है और इस व्याप्त अभाव को भी मनु सत्य ही मानते है, जो चारों ओर शून्य बनके सभी ओर दिखाई दे रहा है। साथ ही साथ वे यही कहते हैं कि हे अमरते ! तेरे लिए अब यहां कोई स्थान नहीं है। इन पंक्तियों में मनु की विषादपूर्ण स्थिति का वर्णन किया गया है।



पद : 73.

Kamayani Ke 71 to 80 Pado Ki Vyakhya in Hindi

मृत्यु, अरी चिर-निद्रे तेरा, अंक हिमानी-सा शीतल।
तू अनंत में लहर बनाती, काल-जलधि की-सी हलचल।

अर्थ :

मनु कहते हैं कि मृत्यु न जाने कितने ही प्राणियों को हमेशा के लिए जीवन से छुटकारा दिलाती है। मृत्यु की गोद बर्फ के समान शीतल है, इसलिए जो मनुष्य मृत्यु की गोद में आता है, वह चेतनाहीन हो जाता है। जैसे समुद्र में हलचल होती है तो लहरें उठती है, उसी प्रकार मृत्यु भी इस संसार रूपी सागर में भयंकर हलचल पैदा करती है और असंख्य प्राणियों के प्राण हर लेती है।

अर्थात् न जाने कितने प्राणी प्रतिदिन मृत्यु को प्राप्त होते रहते हैं। निन्द्रा भी मृत्यु का ही पर्याय है और उसकी अंकशैया हिमराशि की सेज के समान है, जहां चेतनाहीन प्राणी सदा के लिए सो जाता है। कवि कहते हैं कि जिस प्रकार समुन्द्र में हलचल होने पर लहरें उत्पन्न होती है, जो समुंद्र को क्षुब्ध कर देती है, उसी प्रकार मृत्यु भी इस संसार में अपने आगमन से एक प्रकार की हलचल ही पैदा करती है।


पद : 74.

Chinta Sarg Ke 71 to 80 Pado Ka Arth Bhaav in Hindi

महानृत्य का विषम सम अरी, अखिल स्पंदनों की तू माप।
तेरी ही विभूति बनती है, सृष्टि सदा होकर अभिशाप।

अर्थ :

दोस्तों ! संगीत और नृत्य में सम और विषम नामक दो अवस्थाएं होती है । जब नर्तक या नर्तकी के चरणों का पूरा दबाव पृथ्वी पर पड़ता है, तब सम दशा होती है। मनु ने मृत्यु को नर्तकी की संज्ञा दी है, जो महानृत्य में लीन है। जब जब वह समकाल पर धरती को चरणों से दबाती है तो जहां भी उसके चरणों से दबाव पड़ता है, वहां की वस्तु नष्ट हो जाती है अर्थात् वह प्राणियों से प्राणों को अलग कर देती है।

मृत्यु मनुष्य की समस्त चेतना का अंत करने वाली है। उसका आगमन ही अहितकारी है। परंतु इतना होते हुए भी उसका यह महत्व है कि उसी के कारण सृष्टि का नवीन रूप भी विकसित होता है। इस प्रकार मृत्यु के अहितकारी और उज्जवल दोनों ही रूप होते हैं।



पद : 75.

Chinta Sarg – Kamayani Ka Arth Vyakhya in Hindi

अंधकार के अट्टहास-सी, मुखरित सतत चिरंतन सत्य।
छिपी सृष्टि के कण-कण में तू, यह सुंदर रहस्य है नित्य।

अर्थ :

मनु कह रहे हैं कि जिस प्रकार कोई व्यक्ति घोर अंधकार में जोर से हंसता है तो उसका हंसना हमें सुनाई देता है, पर हंसने वाले इंसान को नहीं देख पाते हैं, उसी प्रकार मृत्यु का आकार हमें नहीं दिखता, पर उसके विनाशकारी कार्य हमें स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। इस प्रकार मृत्यु एक चिरंतर सत्य के रूप संसार में हमेशा विद्यमान रहती है।


पद : 76.

Chinta Sarg – Kamayani Bhavarth in Hindi

जीवन तेरा क्षुद्र अंश है, व्यक्त नील घन-माला में।
सौदामिनी-संधि-सा सुन्दर, क्षण भर रहा उजाला में।

अर्थ :

मनु मृत्यु के बारे में कह रहे हैं कि जीवन वास्तव में मृत्यु का छोटा सा अंश है। जिस प्रकार नीले आकाश में जब बिजली चमकती है, वह क्षणभर के लिए ही प्रकाशमान रहती है और फिर वह उसी आकाश में लुप्त हो जाती है।

वैसे ही मानव जीवन भी उस सुंदर प्रकाश के समान कुछ समय के लिए ही प्रकाशित हो पाता है और उसके बाद वह मृत्यु में ही लीन हो जाता है। इन पंक्तियों में मृत्यु की व्यापकता और जीवन की लघुता का परिचय कवि हमको कराते हैं।



पद : 77.

Chinta Sarg – Kamayani Mool Bhaav in Hindi

पवन पी रहा था शब्दों को, निर्जनता की उखड़ी साँस।
टकराती थी, दीन प्रतिध्वनि, बनी हिम-शिलाओं के पास।

अर्थ :

प्रसाद जी कह रहे हैं कि मनु के मुख से निकलने वाले प्रत्येक शब्द वायुमंडल में गुंजायमान हो रहे थे और उनकी ध्वनि से चारों ओर सुनापन दूर हो रहा था। उनके शब्द जब हिम-शिलाओं से टकराते तो एक करुण प्रतिध्वनि गूंज उठती थी, पर उनको सुनने वाला वहां कोई भी नहीं था।


पद : 78.

Chinta Sarg – Kamayani Vyakhya 71-80 Pad in Hindi

धू-धू करता नाच रहा था, अनस्तित्व का तांडव नृत्य।
आकर्षण-विहीन विद्युत्कण, बने भारवाही थे भृत्य।

अर्थ :

दोस्तों ! मनु कह रहे हैं कि अभी तक सब कुछ नष्ट हो चुका था, पर विनाश का तांडव नृत्य अभी भी चल रहा था। विद्युत के परमाणुओं में भी वह आकर्षण शक्ति नहीं रह गई थी और वे शून्य में इधर से उधर ऐसे चक्कर काट रहे थे, जैसे कोई बोझा ढोने वाला नौकर बोझा लिए इधर-उधर फिरता रहता है।



पद : 79.

Prasad Krit Chinta Sarg – Kamayani Arth Bhaav in Hindi

मृत्यु सदृश शीतल निराश ही, आलिंगन पाती थी दृष्टि।
परमव्योम से भौतिक कण-सी, घने कुहासों की थी वृष्टि।

अर्थ :

मनु कह रहे हैं कि चारों ओर घना कोहरा छाया हुआ था। ऐसा लगता था, जैसे विशाल आकाश से धरती पर, जल के स्थूल कणों की तरह कोहरे की वर्षा हो रही थी। प्रस्तुत पंक्तियों में उपमा अलंकार है।


पद : 80.

Chinta Sarg – Kamayani Mahakavya – Jaishankar Prasad in Hindi

वाष्प बना उड़ता जाता था, या वह भीषण जल-संघात।
सौरचक्र में आवर्तन था, प्रलय निशा का होता प्रात।

अर्थ :

मनु कहते हैं कि आकाश से कोहरे की परतों को देखकर कभी-कभी यह संदेह हो रहा था कि कहीं यह प्रलय की भीषण जलराशि ही तो हवा बनकर नहीं उड़ रही है, जिसके कारण चारों तरफ कोहरा ही कोहरा दिख रहा है। अब सभी ग्रह, मंगल, चंद्र, सूर्य और उपग्रह भी अपनी पूर्व गति के साथ आकाश में चक्कर लगा रहे हैं। प्रलयरुपी रात्रि का अंत और सुंदर प्रभात की आशा होने जा रही थी।


दोस्तों ! आज हमने Chinta Sarg – Kamayani| कामायनी के चिंता सर्ग भाग – 11 में अंतिम 71-80 पदों का अर्थ और व्याख्या अच्छे से समझ ली है। और इसी के साथ कामायनी का चिंता सर्ग समाप्त होता है।

अगर आप इसके श्रद्धा सर्ग की भी इसी तरह विस्तृत व्याख्या चाहते है तो आप हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बता सकते है। हम आपके लिए श्रद्धा सर्ग की भी विस्तृत सीरीज उपलब्ध कराने की पूरी कोशिश करेंगे।

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