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Bhramar Geet Saar Pad | भ्रमरगीत सार के पदों की व्याख्या
Bhramar Geet Saar Pad Vyakhya – Ramchandra Shukla In Hindi : दोस्तों ! आज हम रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित “भ्रमरगीत सार” के अगले #10-12 पदों की व्याख्या करने जा रहे है। हमें भरोसा है कि आपने पिछले पदों को अच्छे से तैयार कर ही लिया होगा। तो चलिए शुरू करते है आज के पद :
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Bhramar Geet Saar Pad | भ्रमरगीत सार व्याख्या [#10-12 पद]
Ramchandra Shukla‘ Bharmar Geet Saar Pad Arth or Vyakhya in Hindi : दोस्तों ! रामचंद्र शुक्ल द्वारा सम्पादित कृति “भ्रमरगीत सार” के अगले #10-12 पदों की विस्तृत व्याख्या को इसप्रकार से समझिये :
#पद : 10.
Bhramar Geet Saar Pad Arth with Hard Meanings in Hindi
नीके रहियो जसुमति मैया।
आवैंगे दिन चारि पांच में हम हलधर दोउ भैया।।जा दिन तें हम तुमतें बिछुरे काहु न कहयों ‘कन्हैया’।
कबहुँ प्रात न कियो कलेवा, साँझ न पीन्ही धैया।।बंसी बेनु संभारि राखियो और अबेर सबेरो।
मति लै जाय चुराय राधिका कछुक खिलौनों मेरो।कहियो जाय नंदबाबा सों निष्ट बिठुर जिय कीन्हों।
सूर स्याम पहुँचाय मधुपुरी बहुरि सँदेस न लीन्हों।।
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | नीके | अच्छी या भली प्रकार |
02. | पीन्ही | पान किया |
03. | धैया | गाय के थन से सीधी निकलती हुई दूध की धार |
04. | अबेर सबेरो | जल्दी |
05. | मति | नहीं |
06. | जिय | कलेजा |
07. | मधुपुरी | मथुरा |
08. | बहुरि | फिर लौटकर |
09. | सँदेस | खोज खबर |
व्याख्या :
श्री कृष्ण उद्धव के ब्रज प्रस्थान करते समय माता यशोदा के लिए संदेश कह रहे हैं कि हे उद्धव ! तुम माता यशोदा से जाकर कहना कि वह अच्छी तरह खुशी से रहे। हमारे लिए चिंतित या व्याकुल ना हो । हम दोनों भाई अर्थात् मैं और बलराम चार-पांच दिन में अर्थात् शीघ्र ही वहां ब्रज में आकर सब से मिलेंगे। माता से कहना कि जिस दिन से हम उनसे विलग हुए हैं, उस दिन से किसी ने प्यार से कन्हैया भी नहीं कहा है।
हमने ना ही कभी प्रातः काल नाश्ता किया है और ना ही गाय के थन से निकलता हुआ ताजा-ताजा दूध ही पिया है। माता जी से यह भी कहना है कि बंसी आदि मेरे खिलौनों को संभाल कर रखें, कहीं ऐसा ना हो कि राधा मौका पाकर मेरा कोई भी खिलौना चुरा ले जाए।
हे उद्धव ! तुम नंद बाबा से भी यह कहना कि आपने अपने ह्रदय को बिल्कुल ही निष्ठुर और कठोर कर लिया है। वे जब से हमें मथुरा छोड़कर गए हैं, तब से उन्होंने न तो हमारी खोज खबर ली, ना ही किसी के साथ संदेश ही भिजवाया।
#पद : 11.
Bhramar Geet Saar Pad Vyakhya Shabdarth Sahit in Hindi
उद्धव मन अभिलाष बढ़ायो।
जदुपति जोग जानि जिय साँचो नयन अकास चढ़ायो।।
नारिन पै मोको पठवत हौ कहत लिखावन जोग।
मनहीं मन अब करत प्रसंसा है मिथ्या सुख-भोग।।
आयसु मानि लियो सिर ऊपर प्रभु-आज्ञा परमान।
सूरदास प्रभु पठवत गोकुल मैं क्यों कहौं कि आन।।
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | अभिलाष | आनंद |
02. | नयन | नेत्र |
03. | अकास | आकाश |
04. | परमान | प्रमाण |
व्याख्या :
दोस्तों ! श्री कृष्ण ने उद्धव को संदेश सुना दिया है। उद्धव के मन में इन संदेशों को सुनकर जो प्रतिक्रिया हुई है, उसे व्यक्त किया गया है। श्री कृष्ण की प्रेमजन्य विफलता को देखकर उद्धव को मन ही मन अत्यंत आनंद की अनुभूति हुई। उनका यह आनंद दो कारणों से था – एक तो अपने ज्ञान की सर्वोच्चता के कारण प्रसन्नता थी, दूसरा ब्रज में जाकर उन्हें अपने ज्ञान की विजय की पूर्ण आशा थी।
उन्होंने सोचा कि श्रीकृष्ण ने हमारे योग मार्ग को ही सच्चा एवं वास्तविक मोक्ष का मार्ग स्वीकार कर लिया है। तभी वह हमें गोपियों को योग मार्ग की शिक्षा देने के लिए ब्रज भेज रहे हैं। यह विचार सोचकर उद्धव फूलकर कुप्पा हो गए। गर्व के मारे उनके नेत्र आकाश की ओर चढ़ गए।
उद्धव का अनुमान था कि श्रीकृष्ण अब सांसारिक सुख-भोग को मिथ्या समझने लगे हैं। इसलिए नारियों को योग की शिक्षा देने के लिए मुझे ब्रज भेज रहे है । यह विचार कर उद्धव ने कृष्ण की आज्ञा को स्वीकार कर लिया। श्रीकृष्ण उनके स्वामी और सखा थे, इसलिए उनकी आज्ञा ही उद्धव के लिए प्रमाण था।
इसलिए इस कथन को अंतिम रूप से स्वीकार कर उद्धव ब्रज के लिए प्रस्थान करने के लिए तत्परता दिखाने लगे। सूरदास जी कह रहे हैं कि उद्धव ने सोचा कि जब मेरे स्वामी श्रीकृष्ण स्वयं मुझे गोपियों को ज्ञान उपदेश देने के लिए ब्रज भेज रहे हैं तो वहां जाने में कोई बुराई नहीं है। इसलिए अब मेरा वहां जाना ही उचित है। आनाकानी करना या अन्य बात सोचना व्यर्थ है।
#पद : 12.
Bhramar Geet Saar Pad Bhavarth or Mool Bhaav in Hindi
सुनियो एक संदेसो ऊधो तुम गोकुल को जात।
ता पाछे तुम कहियो उनसो एक हमारी बात।।
माता-पिता को हेत जानि कै कान्ह मधुपुरी आए।
नाहिंन स्याम तिहरे प्रीतम ना जसुदा के जाए।।
समुझौ बूझौ अपने मन में तुम जो कहा भलो कीन्हो।
कह बालक, तुम मत्त ग्वालिनी सबै आप यस कीन्हो।।
और जसोदा माखन काजे बहुतक त्रास दिखाई।
तुम्हीं सबै मिलि दाँवरि दीन्हीं रंच दया नहीं आई।।
अरु वृषभानसुता जो किन्ही सो तुम सब जिय जानो।
याहि लाज तजि ब्रज मोहन अब काहे दुःख मानो ?
सूरदास यह सुनि सुनि बातें स्याम रहे सिर नाई।
इत कुब्जा उत प्रेम ग्वालिनी कहत न कछु बनी आई।।
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | संदेसो | सन्देश |
02. | पाछे | बाद में, अंत में |
03. | मधुपुरी | मथुरा |
04. | वृषभानसुता | राधा |
05. | लाज | लज्जा |
06. | तजि | त्याग दिया |
07. | सिर नाई | सिर झुकाये |
व्याख्या :
दोस्तों ! इस पद में उद्धव ब्रज जाने के लिए तैयार है। इस पद में श्री कृष्ण की पटरानी कुब्जा गोपियों के लिए उद्धव को संदेश दे रही है। हे उद्धव ! तुम गोकुल के लिए जा रहे हो तो मेरा भी एक संदेश लेते जाओ। जब श्री कृष्ण का संदेश सब लोगों को सुना दो तो ब्रज की गोपियों से मेरी भी एक बात कह देना। उनसे कहना कि श्री कृष्ण के माता-पिता अर्थात् वसुदेव और देवकी, जो कारागार में थे, उनका हित जानकर और उनका उद्धार करने के लिए कन्हैया गोकुल से मथुरा आए हैं।
वास्तव में न तो श्री कृष्ण तुम्हारी प्रियतम है और ना ही यशोदा ने उन्हें जन्म दिया है। अतः तुम खुद सोच-विचार करके यह बताओ कि तुमने श्री कृष्ण की कुछ भलाई भी की है, जो आज उन पर अधिकार जता रही हो। कहाँ तो श्री कृष्ण और कहाँ तुम मदमस्त युवतियाँ । तुम्हारा और उनका तो कोई मेल ही नहीं था। तुमने तो श्री कृष्ण को बरबस अपने वश में कर लिया था। और यशोदा जो आज श्री कृष्ण पर माता होने का अधिकार जता रही है, उसने वास्तव में श्री कृष्ण की कोई भलाई नहीं की। माता का दुलार देना तो दूर, उसने कृष्ण को तुच्छ से माखन के लिए कितने कष्ट दिए हैं।
Bhramar Geet Saar Pad
कहने का तात्पर्य है कि श्री कृष्ण और गोपियों का वह प्रेम अनुचित और अव्यवहारिक था। माता यशोदा का श्री कृष्ण के प्रति पुत्रवत ना तो स्नेह था और ना ही दुलार ; उद्धव से कुब्जा कहती है कि वे जाकर गोपिकाओं से कहे कि तुम सब ने मिलकर तुच्छ से माखन के लिए श्री कृष्ण को रस्सियों से बांधा था। तुम्हें ऐसा करते समय श्री कृष्ण के मासूम चेहरे पर लेश मात्र भी दया नहीं आई।
और राधा ने श्री कृष्ण के साथ जो दुर्व्यवहार किया, वह तो तुम लोग जानती ही हो। वह तुम्हारे द्वारा किए गए व्यवहार से दो कदम आगे थे। राधा के द्वारा श्री कृष्ण के प्रति किए गए दुर्व्यवहार के कारण वे क्षुब्ध हो गए थे और इस लज्जा के कारण राधा तो क्या, ब्रज का ही त्याग कर दिया था। अब तुम इस बात का दु:ख क्यों मान रही हो। जैसा तुमने किया, उसी के अनुसार फल भुगतो।
सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण, उद्धव और कुब्जा की बातचीत को सिर झुका कर सुन रहे थे। उनके मन में दुविधा थी। वे असमंजस में थे। इधर कुब्जा का आकर्षण था, तो उधर ब्रज वल्लभियों का प्रेम-प्रणय निवेदन परिपूरित हृदय था। दोस्तों ! इस पद में सूरदास ने कुब्जा के सौतिया डाह का चित्रण किया है।
इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने Bhramar Geet Saar Pad | भ्रमरगीत सार के 10 से 12 तक के पदों की विस्तृत व्याख्या समझी।उम्मीद करते है कि आपको समझने में कोई परेशानी नहीं हुई होगी। कुछ नए पदों की व्याख्या के साथ फिर से रूबरू होंगे। तब तक बने रहिये हमारे साथ !
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एक गुजारिश :
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