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Bhramar Geet Saar Pad in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या


Bhramar Geet Saar Pad Arth in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या : नमस्कार दोस्तों ! रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित “भ्रमरगीत सार” की पद व्याख्या की श्रृंखला में आज हम 54 से लेकर 56 तक के पदों की व्याख्या करने जा रहे है। तो आइए डालते है एक नज़र :

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भ्रमरगीत सार पद Bhramar Geet Saar Pad in Hindi [पद #54-56]


Bhramar Geet Saar Pad Vyakhya 54-56 in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या : दोस्तों ! “भ्रमरगीत सार” के 54-56 तक के पदों की विस्तृत व्याख्या को निम्न प्रकार से समझ सकते है :

#पद : 54.

भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Pad Raag Jaitshri in Hindi

राग जैतश्री
प्रेमरहित यह जोग कौन क़ाज गायो ?
दीनन सों निठुर बचन कहे कहा पायो ?
नयनन निज कमलनयन सुन्दर मुख हेरो
मूँदन ते नयन क़हत कौन ज्ञान तेरो ?
तामें कहु मधुकर! हम कहा लैन जाहीं।
जामें प्रिय प्राननाथ नँदनन्दन नाहीं ?
जिनके तुम सखा साधु बातें कहु तिनकी
जीवैं सुनि स्यामकथा दासी हम जिनकी।।
निरगुन अबिनासी गुन आनि आनि भाखौ
सूरदास जिय के जिय कहाँ कान्ह राखौ ?

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01.प्रेमरहितअनुराग रहित
02.काजकार्य
03.कौन क़ाजकिस कारण
04.दीननदुखियों, वीर्य ग्रस्त अबलाओं
05.निठुरनिष्ठुर, कठोर
06.निजअपने
07.हेरोनिहारो
08.लैनलेने के लिए
09.तिनकीउनकी
10.आनि आनिअन्य-अन्य
11.भाखौकहते हो
12.जिय के जियप्राणों के प्राण

व्याख्या :

दोस्तों ! गोपियाँ कहती है कि हे उद्धव ! तुमने इन नीरस गीतों को हमारे सामने क्यों गाया ? इनकी यहां क्या आवश्यकता है ? हे उद्धव ! इनमें प्रेम का अभाव है। इसलिए यह हमारे लिए व्यर्थ है। हे उद्धव ! यह बताओ कि हम अबलाओ, विरहिणी नारियों के सम्मुख इस प्रकार की कठोर बातें कहकर तुमको क्या मिला ?

हमारे नयनों ने कमल नेत्रों वाले सुंदर मनमोहक श्री कृष्ण के सुंदर मुख के दर्शन किये हैं। यह तुम्हारा किस प्रकार का ज्ञान है ? ऐसा विदित है कि तुम इन नेत्रों को बंद करके निर्गुण ब्रह्म की साधना करने को कहते हो। हम अपने नेत्र बंद करके तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म के पीछे क्यों भटकती रहे ?

हे ऊद्धव ! हमें बताइये कि इस योग साधना को हम किस लालसा से अपनाये, क्योंकि हम जानती हैं कि इससे कुछ हासिल नहीं होगा। इसमें नंदनंदन श्री कृष्ण की भी हानि है, क्योंकि उन्हें त्याग कर ही इसे अपनाना होगा। और इसलिए तुम्हारी यह साधना हमारे लिए निरर्थक है।

हे उद्धव ! हमें तो उनकी ही बातें सुनाओ, जिनके तुम सच्चे मित्र हो। हम उनकी दासी और सेविकायें हैं। उस श्याम की कथा और रसमय बातें सुनकर हम जी उठेंगे। हमें प्राण मिल जायेंगे। हमारा यह विरह भी जाता रहेगा।

लेकिन तुम उन श्री कृष्ण की बातें ना करके किसी निर्गुण, अविनाशी के विषय में कुछ कह कर इस प्रकार की बातें करते हो। अन्य प्रकार की बातें करते हो। ऐसी बातें करते हुये न जाने तुम हमारे प्राणों के प्राण श्री कृष्ण को कहाँ छुपा कर रख लेते हो। उनके बारे में हमें कुछ नहीं बताते।


#पद : 55.

भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Pad Raag Kedaro with Hard Meaning in Hindi

राग केदारो
जनि चालौ, अलि, बात पराई
ना कोउ कहै सुनै या ब्रज में नइ कीरति सब जाति हिराई।।
बूझैं समाचार मुख ऊधो कुल की सब आरति बिसराई
भले संग बसि भई भली मति, भले मेल पहिचान कराई।।
सुन्दर कथा कटुक सी लागति उपजत उर उपदेस खराई
उलटो न्याव सूर के प्रभु को बहे जात माँगत उतराई।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01.जनिमत, न
02.पराईदूसरे की
03.हिराईनष्ट की
04.आरतिदु:ख, कष्ट, विपदा
05.बिसराई भुला दी
06.कटुक कड़वी
07.उरह्रदय
08.खराई विरक्ति
09.उतराई पारिश्रमिक

व्याख्या :

दोस्तों ! गोपियाँ उद्धव से कहती है कि हे उद्धव ! तुम यहां श्री कृष्ण के अतिरिक्त किसी और की बात मत चलाओ, क्योंकि यहां ब्रज में श्री कृष्ण के अतिरिक्त किसी अन्य की बात ना तो कोई करता है और ना ही सुनता है। बार-बार इस प्रकार की बातें दोहराने से तुम्हारी वो समस्त कीर्ति नष्ट हुये जा रही है, जो तुमने श्री कृष्ण के सखा के रूप में अर्जित की थी।

कवि यह कहना चाहते हैं कि निर्गुण ब्रह्म की साधना की बातें सुनकर सब लोग तुम्हारे विरुद्ध हुये जा रहे हैं। हे उद्धव ! हम तुमसे यह समाचार पूछती हैं कि क्या उन्होंने अपने कुल की विपदाओं एवं कष्टों को विस्मृत कर दिया है ? क्या उन्हें कुल की कोई चिंता नहीं है ? मथुरा जाने पर श्री कृष्ण को बहुत अच्छे-अच्छे लोगों का साथ प्राप्त हुआ है और इसके कारण उनकी बुद्धि भी श्रेष्ठ हो गई है। इस नई बुद्धि के कारण ही उन्होंने तुम जैसे भले लोगों को हमारे पास भेज कर हमें तुम्हारा परिचय प्राप्त करने का अवसर दिया है।

Bhramar Geet Saar Pad in Hindi

गोपियाँ श्री कृष्ण पर व्यंग्य करती हुई कह रही हैं कि मथुरा में बुरे लोगों की संगति के कारण श्री कृष्ण की बुद्धि ऐसी हो गई है कि उन्होंने उद्धव को यहां निर्गुण ब्रह्म का संदेश देने के लिए भेजा है। हे उद्धव ! तुम्हारे विवेक के अनुसार तो तुम्हारे इस निर्गुण ब्रह्म की चर्चा सुंदर है, परंतु हमें यह कड़वी लगती है। हमें यह अरुचिकर लगती है। हमें तुम्हारी निर्गुण ब्रह्म संबंधी योग ज्ञान की बातें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती है।

तुम्हारे सखा का अद्भुत न्याय हमें समझ में नहीं आ रहा है। नाव तो नदी के मध्य में उलट गई है। यात्री जल में बहता जा रहा है। मल्लाह उन्हें डूबने से बचाने के बजाय उनसे उतराई का पारिश्रमिक मांग रहा है।

सूरदास जी कहना चाह रहे हैं कि श्री कृष्ण गोपियों से प्रेम की लौ लगाकर, उन्हें त्यागकर मथुरा चले गये हैं और अब गोपियाँ मझधार में है। श्री कृष्ण उन्हें योग साधना के माध्यम से निर्गुण ब्रह्म की आराधना करने का संदेश देकर और व्यथित कर रहे हैं। यह तो ठीक वैसा ही है, जैसे बहते हुये जा रहे यात्रियों से नाव का किराया मांगना।

दोस्तों ! इस पद में श्री कृष्ण के प्रति गोपियों का अनन्य प्रेम भाव व्यंजित हो रहा है। यहाँ गोपियों की वाकपटुता का चित्रण हुआ है।


#पद : 56.

भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Pad Raag Malaar Shabdarth Sahit in Hindi

राग मलार
याकी सीख सुनै ब्रज को, रे ?
जाकी रहनि कहनि अनमिल, अलि, कहत समुझि अति थोरे।।
आपुन पद-मकरंद-सुधारस हृदय रहत नित बोरे
हमसों कहत बिरस समझौ, है गगन कूप खनि खोरे
धान को गाँव पयार तें जानौ ज्ञान बिषयरस भोरे
सूर सो बहुत कहे न रहै रस गूलर को फल फोरे।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01.याकीइसकी
02.सीखयोग साधना का उपदेश, शिक्षा
03.अनमिल परस्पर विरोधी
04.आपुनस्वयं
05.नितप्रतिदिन
06.बोरेडूबे
07.बिरसरसहीन
08.खनिखोदकर
09.खोरेनहाए
10.पयार धान का भूसा
11.विषयरसप्रेम रस
12.भोरेभोले, बावले
13.फोरेफोड़ने पर

व्याख्या :

दोस्तों ! इस पद में उद्धव की कथनी और करनी में अंतर स्पष्ट करती हुई गोपियाँ कहती है कि उनके योग साधना संबंधी निर्गुण ब्रह्म का उपदेश यहां ब्रज में कौन सुनेगा ? जिनके रहन-सहन और व्यवहार में अर्थात् कथनी और करनी में इतना विरोध रहता हो, उनकी बातें यहां कोई भी सुनना पसंद नहीं करेगा।

हे उद्धव ! तुम स्वयं तो श्री कृष्ण के चरणकमल रूपी, मकरंद रुपी अमृत में सदैव अपने हृदय को डूबे रहते हो और हमसे कहते हो कि उस श्री कृष्ण को नीरस समझो, खुद तो रस में लीन रहते हो और हमें श्री कृष्ण को रसहीन समझने के लिए कहते हो। यह तो उसी प्रकार असंभव है, जिस प्रकार आकाश में कुआं खोदकर उसके जल में स्नान करने का प्रयत्न करना।

आगे गोपियाँ कहती है कि धान के गांव का परिचय उसके चारों ओर फैले पयार अर्थात् धान के भूसे से ही प्राप्त हो जाता है। उसी प्रकार तुम्हें देखकर यही लगता है कि तुम स्वयं तो श्री कृष्ण भक्त हो, क्योंकि तुम स्वयं उनके चरणों में अनुराग रखते हो, बावले बने हुये हो और फिर क्या यह तुम्हारे लिए उचित है कि हम जैसी जो विरहिणी बालाएं हैं, उन्हें तुम श्री कृष्ण से विमुख होने का उपदेश देते हो।

Bhramar Geet Saar Pad in Hindi

तुम्हारी कथनी और करनी में स्पष्ट अंतर है। इसलिए उचित यही है कि तुम हमसे इस विषय में अधिक चर्चा ना करो। गूलर का फल फोड़ने से जो स्थिति उत्पन्न होती है, वह स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।

दोस्तों ! गूलर का फल ऊपर से देखने से अत्यंत सुंदर और मीठा प्रतीत होता है, परंतु उसे फोड़ने पर उसमें मरे कीड़े को देखकर विरक्ति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए तुम अपनी बातों को गुप्त ही रहने दो। हम तुम्हारी वास्तविकता जान गई है। इसे तुम यदि नहीं खुलवाओगे तो यह तुम्हारे लिए अच्छा होगा।

दोस्तों ! अब तक हमने भ्रमर गीत सार के कुल 56 पदों की विस्तृत व्याख्या समझ ली है। उम्मीद है कि आपको समझने में कोई कठिनाई नहीं हुई होगी। अगले कुछ ही पदों के साथ हम जल्द ही इसका समापन करने जा रहे है। धैर्य बनाये रखिये और इसे ज्यादा से ज्यादा दोस्तों के साथ शेयर कीजिये।

ये भी अच्छे से समझे :


एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Bhramar Geet Saar Pad in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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