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Bhramar Geet Saar Ka Arth | भ्रमरगीत सार का अर्थ एवं व्याख्या
Bhramar Geet Saar Ka Arth – Ramchandra Shukla In Hindi : दोस्तों ! रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित “भ्रमरगीत सार” प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रचना है। इसलिए हम आपको इसकी विस्तृत व्याख्या उपलब्ध करा रहे है। इसी क्रम में आज हम अगले #7-9 पदों का शब्दार्थ सहित विस्तृत अर्थ एवं व्याख्या को समझने का प्रयास करते है। तो चलिए शुरू करते है :
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Bhramar Geet Saar | भ्रमरगीत सार का अर्थ एवं व्याख्या [#7-9 पद]
Ramchandra Shukla‘ Bharmar Geet Saar Ka Arth or Vyakhya in Hindi : दोस्तों ! रामचंद्र शुक्ल द्वारा सम्पादित कृति “भ्रमरगीत सार” के अगले #7-9 पदों की विस्तृत व्याख्या निम्नप्रकार से है :
#पद : 7.
Bhramar Geet Saar Ka Arth with Hard Meanings in Hindi
उद्धव ! यह मन निश्चय जानो।
मन क्रम बच मैं तुम्हें पठावत ब्रज को तुरत पलानों।।पूरन ब्रम्ह, सकल अबिनासी ताके तुम हौ ज्ञाता।
रेख न रूप, जाति, कुल नाहीं जाके नहिं पितु माता।।यह मत दै गोपिन कहँ आवहु बिनह-नदी में भासति।
सूर तुरत यह जसस्य कहौ तुम ब्रम्ह बिना नहिं आसति।।
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | क्रम | कर्म |
02. | बच | वचन |
03. | पठावत | भेजता हूं |
04. | तुरत | तुरंत |
05. | पलानों | प्रस्थान करो |
06. | अबिनासी | जिसका नाश ना हो |
07. | ज्ञाता | जानकार |
08. | जाके | जिसके |
09. | भासति | डूबती है |
10. | आसति | सामिप्य या मुक्ति |
व्याख्या :
दोस्तों ! जब उद्धव श्री कृष्ण के मर्म को नहीं समझते हैं और बार-बार ब्रह्म की रट लगाए रहते हैं तो श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि हे उद्धव ! तुम अपने मन में यह निश्चय मानो कि मैं संपूर्ण सद्भावना एवं मन, वचन, कर्म के साथ तुम्हें ब्रज भेज रहा हूं। इसलिए तुम तुरंत वहां के लिए प्रस्थान करो।
यहां कवि यह कहना चाहता है कि श्री कृष्ण, उद्धव को पूरे मन के साथ ब्रज भेजना चाहते हैं। इससे वे दो कार्यों की सिद्धि करेंगे। एक तो उन्हें ब्रजवासियों का कुशल समाचार मिल जाएगा और दूसरा गोपियों के अनन्य प्रेम को परखकर ज्ञान गर्वित उद्धव, प्रेम के सरल-सीधे मार्ग को पहचान सकेंगे एवं उसका महत्व जान सकेंगे।
Bhramar Geet Saar Ka Arth
श्री कृष्ण यह कह रहे हैं कि तुम्हारा ब्रह्म पूर्ण अनिश्वर और अखंड रूप है। तुम्हें ऐसे अविनाशी ब्रह्म का पूर्ण ज्ञान प्राप्त है। तुम्हारे ब्रह्म की ना तो कोई रूपरेखा ही है और ना कोई कुल वंश है और ना ही उसके कोई माता-पिता है। कहने का तात्पर्य यह है कि तुम्हारा ब्रह्म अनादि, अखंड, अजर एवं अमर है। इसलिए तुम अपना यह ज्ञान ब्रजवासियों को सुनाकर आओ। तुम वहां शीघ्र जाकर उन गोपियों को समझाकर आओ, जो मेरे विरह में निमग्न होकर विरह की नदी में डूब रही है।
तुम तुरंत उनसे जाकर कहो कि ब्रह्म के बिना जीवन में मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। ब्रह्म में ही जीवन का सार तत्व है। तुम उन्हें जाकर यह बात समझाकर आओ कि प्रेमभाव त्याग कर अविनाशी ब्रह्म का ध्यान करें और उसी में अपनी समस्त शक्ति लगा दे। तभी उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सकता है, अन्यथा नहीं। श्री कृष्ण एक अभीष्ट कार्य की सिद्धि के लिए उद्धव को प्रेरित कर रहे हैं । निर्गुण संप्रदाय के अनुसार ब्रह्म के बिना मुक्ति असंभव है।
#पद : 8.
Bhramar Geet Saar Ka Arth Shabdarth Sahit in Hindi
उद्धव ! बेगि ही ब्रज जाहु।
सुरति सँदेस सुनाय मेटो बल्लभिन को दाहु।।काम पावक तूलमय तन बिरह-स्वास समीर।
भसम नाहिं न होन पावत लोचनन के नीर।।अजौ लौ यहि भाँति ह्वै है कछुक सजग सरीर।
इते पर बिनु समाधाने क्यों धरैं तिय धीर।।कहौं कहा बनाय तुमसों सखा साधु प्रबीन?
सुर सुमति बिचारिए क्यों जियै जब बिनु मीन।।
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | बेगि | शीघ्र |
02. | जाहु | जाओ |
03. | सुरति | प्रेम |
04. | बल्लभिन | गोपियां |
05. | दाहु | विरहजन्य पीड़ा |
06. | काम पावक | काम की अग्नि / कामाग्नि |
07. | तूलमय | रुई के समान कोमल |
08. | तन | शरीर |
09. | समीर | वायु |
10. | लोचनन के नीर | आँसू |
11. | अजौ लौ | आज तक |
12. | ह्वै है | होगा |
13. | समाधाने | सांत्वना देना |
14. | तिय | नारियां |
15. | धीर | धीरज या हौसला |
16. | साधु | सज्जन |
17. | प्रबीन | निपुण |
18. | मीन | मछलियां |
व्याख्या :
दोस्तों ! श्री कृष्ण उद्धव को ब्रज भेज रहे हैं और उद्धव से कह रहे हैं कि वह शीघ्र ही जाएं और विरह से संतप्त गोपियों को मेरा संदेश सुनाएं, जिससे उनकी विरहजन्य पीड़ा समाप्त हो सके। उनके रुई के समान कोमल शरीर कामाग्नि से जल रहे हैं। विरह के अतिरेक के कारण उनकी तीव्र सांसें वायु के समान उनकी कामाग्नि को और भी भड़का रही हैं। परंतु उनके नेत्रों से आंसुओं की वर्षा होती है और उस वर्षा के कारण उनके शरीर कामाग्नि में जलने से बच गए हैं।
Bhramar Geet Saar Ka Arth
कवि के कहने का तात्पर्य है कि गोपियां रो-रोकर अपने हृदय के विरह की अग्नि को कम कर लेती है और इस प्रकार उनका जीवन नष्ट होने से बच जाता है। श्री कृष्ण आगे कहते हैं कि हे उद्धव ! इसी कारण उनके हृदय में अभी कुछ सजगता शेष है, किंतु उस सजगता का सदा बने रहना कठिन है। इसलिए उन्हें तीव्र ढाँढस न बंधाया गया तो उनके लिए धैर्य धारण करना कठिन हो जाएगा।
हे सखा ! मैं तुम्हें कैसे समझाऊं, तुम स्वयं ही साधु स्वभाव के हो और विवेकशील हो । इसलिए मेरे मन के भावों को समझना तुम्हारे लिए कठिन कार्य नहीं, तुम अपनी विवेकशक्ति के बल पर स्वयं ही विचार करो कि बिना जल के मछलियां किस प्रकार जीवित रह सकती हैं ? अर्थात् जिस प्रकार जल से अलग होने पर मछली का जीवन नहीं चल सकता, उसी प्रकार मेरे बिना गोपिकाओं का जीवन भी चलना कठिन है। मैं ही उनका सर्वस्व हूं। अतः तुम शीघ्र जाकर उन्हें मेरे प्रेम का संदेश सुनाकर सांत्वना दो।
#पद : 9.
Bhramar Geet Saar Ka Arth Bhavarth or Mool Bhaav in Hindi
पथिक ! संदेसों कहियो जाय।
आवैंगे हम दोनों भैया, मैया जनि अकुलाय।।याको बिलग बहुत हम मान्यो जो कहि पठयो धाय।
कहँ लौं कीर्ति मानिए तुम्हारी बड़ो कियो पय प्याय।।कहियो जाय नंदबाबा सों, अरु गहि जकरयो पाय।
दोऊ दुखी होन नहिं पावहि धूमरि धौरी गाय।।यद्धपि मथुरा बिभव बहुत है तुम बिनु कछु न सुहाय।
सूरदास ब्रजवासी लोगनि भेंटत हृदय जुड़ाय।।
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | पथिक | यात्री (उद्धव) |
02. | जनि | मत |
03. | अकुलाय | व्याकुल होना |
04. | बिलग | बुरा |
05. | धाय | दाई |
06. | पय | दूध |
07. | धूमरि | काली |
08. | धौरी | सफेद |
09. | बिभव | ऐश-आराम |
10. | सुहाय | अच्छा लगना |
11. | जुड़ाय | प्रसन्न होना |
व्याख्या :
दोस्तों ! उद्धव ब्रज के लिए प्रस्थान करने वाले हैं। श्री कृष्ण उनसे यशोदा माता और नंद बाबा के लिए संदेश कह रहे हैं। इस प्रकार हे उद्धव ! तुम ब्रज जाकर हमारा यह संदेश कहना कि हम दोनों भाई ब्रज में सब से मिलने शीघ्र ही आएंगे। माता यशोदा से कहना है कि वह व्याकुल ना हो।
उनसे जाकर तुम यह भी कहना कि उन्होंने माता देवकी को जो धाय कहकर संदेशा भेजा है, उसका हमने बहुत बुरा माना है। उनसे कहना कि हे माता ! तुम्हारी कीर्ति का मैं कहां तक वर्णन करूं ? एक तुम ही हो, जिसने हमें दूध पिलाकर इतना बड़ा किया। उद्धव तुम नंद बाबा के चरण पकड़ना और उनसे कहना है कि वह गायों का ध्यान रखें। मेरी काली और सफेद गाय मेरे बिना दुखी ना होने पाए।
Bhramar Geet Saar Ka Arth
दोस्तों ! श्रीकृष्ण के कहने का तात्पर्य यह है कि नंद बाबा हमारे लिए आदरणीय हैं, इसलिए उनके पैर पकड़कर आशीर्वाद लेना अनिवार्य है। यद्यपि मथुरा नगरी में अपार सुख और वैभव हमको प्राप्त है, किंतु आपके बिना हमें यहां कुछ भी नहीं सुहाता। एक तरफ आपका स्नेह और एक तरफ यह वैभव है।
सूरदास जी कहते हैं कि हृदय को तो तभी सांत्वना और संतोष प्राप्त होता है, जब वे ब्रजवासियों के मध्य में होते हैं। अर्थात् श्री कृष्ण कहते हैं कि ब्रजवासियों से मिलकर ही हमें वास्तविक ज्ञान की अनुभूति होती है। धाय शब्द कहकर, श्री कृष्ण ने अपने हृदय का संपूर्ण वेदना क्षोभ और आक्रोश व्यक्त किया है। धाय शब्द में अत्यधिक मार्मिकता और संवेदना है।
इसप्रकार दोस्तों ! अब तक हम Bhramar Geet Saar Ka Arth | भ्रमरगीत सार के कुल 09 पदों का अर्थ एवं व्याख्या को समझ चुके है। अगर आपको पढ़कर अच्छा लग रहा है तो आप अपने अनुभव को हमारे साथ जरूर शेयर कीजिये। हमें आपके प्यार और सहयोग की आशा है। अच्छा तो अगले पदों की व्याख्या के साथ फिर से मिलते है, धन्यवाद !
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एक गुजारिश :
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