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Bhramar Geet Saar Bhavarth in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या


Bhramar Geet Saar Bhavarth Vyakhya in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या : नमस्कार दोस्तों ! आज के नोट्स में हम रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित “भ्रमरगीत सार” के अगले 60-62 पदों का विस्तार से अध्ययन करने जा रहे है। आइए समझते है :

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भ्रमरगीत सार भावार्थ Bhramar Geet Saar Bhavarth in Hindi [पद #60-62]


Bhramar Geet Saar Pad Arth Bhavarth 60-62 in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या : दोस्तों ! पेश है “भ्रमरगीत सार” के 60-62 पदों की विस्तृत व्याख्या :

#पद : 60.

भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Bhavarth Meaning in Hindi

अपनी सी कठिन करत मन निसिदिन
कहि कहि कथा, मधुप, समुझावति तदपि न रहत नंदनंदन बिन।।
बरजत श्रवन सँदेस, नयन जल, मुख बतियाँ कछु और चलावत।
बहुत भाँति चित धरत निठुरता सब तजि और यहै जिय आवत।।
कोटि स्वर्ग सम सुख अनुमानत हरि-समीप-समता नहिं पावत।
थकित सिंधु-नौका के खग ज्यों फिरि-फिरि फेरि वहै गुन गावत।।
जे बासनाबिदरत अंतर तेइ तेइ अधिक अनूअर दाहत
सूरदास परिहरि न सकत तन बारक बहुरि मिल्यो है चाहत।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01.अपनी सी अपने जैसी, अपने समान
02.निसिदिनदिवा-रात्रि
03.तदपितो भी
04.बरजतरोकती है
05.जियहृदय
06.खगपक्षी
07.फिरि-फिरिलौटकर
08.फेरि पुनः
09.बासनाइच्छा
10.बिदरतफटना
11.अंतरह्रदय
12.अनूअरनिरंतर
13.दाहतदग्ध करना
14.परिहरित्यागना, छोड़ना
15.तनशरीर
16.बारकएक बार
17.बहुरिपुन:

व्याख्या :

गोपियाँ अपनी विवशता का वर्णन करती हुई उद्धव से कह रही है कि हे उद्धव ! हम रात-दिन अपने मन को कठोर बनाने का प्रयत्न करती है। हम इस मन को खूब समझाने का प्रयत्न करती रहती हैं। अनेक प्रकार की कथायें कहती है, ताकि ये मन श्री कृष्ण से दूर हो जाये। लेकिन ये चंचल मन हमारे सभी प्रयत्नों को निष्फल कर देता है।

हम अपने कानों को श्री कृष्ण का संदेश सुनने से रोकती है। उनकी याद ना आये और उनकी याद आकर आंखों में आंसू ना आये। इसके लिए हम श्री कृष्ण के अतिरिक्त दूसरी ही बातें करती हैं। हम इस निष्ठुर मन को अनेक प्रकार से कठोर और दृढ बनाने का प्रयास करती हैं। लेकिन अन्य सभी बातों को छोड़कर, हमारा हृदय श्री कृष्ण के सानिध्य से जो सुख की अनुभूति करता है, उसकी तुलना में करोड़ों स्वर्गो से प्राप्त सुख भी कुछ नहीं है अर्थात् श्री कृष्ण का सानिध्य और उससे प्राप्त सुख हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ है।

Bhramar Geet Saar Bhavarth in Hindi

हमारा मन समुद्र में चलने वाली नौका में बैठे हुये, उस थके हुये पक्षी के समान है, जो बार-बार उड़कर अन्य जगह जाने का प्रयास करता है। परंतु उसे अन्य कोई स्थान नहीं मिलता और वह थककर उसी जहाज या नाव पर लौट आता है। हमारा मन भी उसी प्रकार क्षण भर के लिए अन्य बातों में आकर्षण ढूंढने का प्रयास करता है, किंतु जब उसे वहां कोई सुख प्राप्त नहीं होता तो वह बार-बार लौटकर श्री कृष्ण का ही गुणगान करने लगता है।

हमारा हृदय श्री कृष्ण के विरह से अनवरत दग्ध रहता है। हम मरना नहीं चाहती। हम अपने शरीर को त्यागना नहीं चाहती, क्योंकि यह शरीर हृदय से श्री कृष्ण से मिलने के लिये आस लगाये हुये, संयोग-सुख की अनुभूति करता है। हमारा यह हृदय विदीर्ण नहीं हो पाता। वह प्राणों को धारण किये हुये रहता है।


#पद : 61.

भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Bhavarth Raag Dhanashri with Hard Meaning in Hindi

राग धनाश्री
रहु रे, मधुकर! मधुमतवारे।
कहा करौं निर्गुन लै कै हौं जीवहु कान्ह हमारे।।
लोटत नीच परागपंक में पचत, न आपु सम्हारे।
बारम्बार सरक मदिरा की अपरस कहा उघारे।।

तुम जानत हमहूँ वैसी हैं जैसे कुसुम तिहारे।
घरी पहर सबको बिलमावत जेते आवत कारे।।
सुन्दरस्याम कमलदल-लोचन जसुमति-नँद-दुलारे।
सूर स्याम को सर्बस अर्प्यो अब कापै हम लेहिं उधारे।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01.मधुकरभंवरा
02.परागपंकफूलों के रस की जड़ में
03.पचतकष्ट उठाना
04. आपुअर्पित किया
05.अपरसरस से
06.उघारेउद्घाटित करना
07.बिलमावतरोकते हो
08.उधारेउधार में

व्याख्या :

गोपियाँ मधुकर के बहाने उद्धव को फटकार रही हैं और कह रही है कि हे मधु के पीछे मतवारे बने रहने वाले भवरें ! तुम चुप रहो। हम तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म को लेकर क्या करें ? तुम्हारी निर्गुण ब्रह्म उपासना से हमारे काम कैसे सिद्ध होंगे ? व्यंजना यह है कि हम सब सती स्त्रियां हैं और पर पुरुष अर्थात् निर्गुण ब्रह्म से हम कैसे संबंध स्थापित कर सकती हैं ? हमारे श्री कृष्ण चिरंजीवी रहे। उनके रहते हमारा अन्य से प्रेम कैसे हो सकता है ?

हे नीच भ्रमर ! तुम तो इतने विवेकहीन हो गये हो कि पराग के कीचड़ में लौट रहे हो। शराबी जब शराब के नशे में धुत होता है तो उसका समस्त विवेक खो जाता है। पराग के कीचड़ का यहां प्रतीक रूप में प्रयोग हुआ है कि तुम ज्ञानरूपी योग में जाना चाहते हो और वह शराब पीने वाला शराबी गंदी नालियों के कीचड़ में भी लौटने लगता है। इस प्रकार तुम अपनी गिरती हुई मर्यादा को संभाल नहीं पा रहे हो। तुम तो शराब के नशे में पड़कर अपनी गुप्त बात भी खोल रहे हो। इससे क्या लाभ ?

Bhramar Geet Saar Bhavarth in Hindi

शराबी जैसे शराब के नशे में अपनी गुप्त बात भी प्रकट करने लगता है, उसी तरह तुम भी अपने निर्गुण ज्ञान के गर्व में उस स्पर्शहीन ब्रह्म के महत्व को क्यों उद्घाटित कर रहे हो ? उससे क्या लाभ होगा ? तुम समझते हो कि जैसे तुम्हारे पुष्प हैं, वैसे ही क्या हम सब भी हैं। व्यंजना यह है कि तुम जिन पुष्पों से प्रेम करते हो, उनका क्या चारित्रिक स्तर है ? यह सब कुलटा स्त्रियों के समान हैं, किंतु हम सबका प्रेम एकमात्र श्री कृष्ण से ही है। दूसरे के लिए कोई स्थान नहीं है।

गोपियों का प्रयोजन यह है कि तुम मथुरा की जिन नारियों से विशेषकर कुब्जा से प्रेम करते हो, वह व्यभिचार तुल्य है। उनके प्रेम में एकनिष्ठा का भाव नहीं है। वह एकाग्र प्रेम नहीं करती हैं। वे तो हर किसी से प्रेम करती हैं। वह सब तो जितने काले भ्रमर उनके पास आते हैं, सभी का थोड़े समय के लिये स्वागत करती हैं।

प्रयोजन यह है कि जिस प्रकार पुष्प सभी भ्रमरों को स्थान देते हैं और भ्रमरों को थोड़ी देर के लिए अपना आराम मिलता है। उसी प्रकार कुब्जा तथा मथुरा की चपल नारियां सब श्याम वर्ण वालों को (यहाँ श्री कृष्ण और उद्धव से अभिप्राय है) दोनों को अपने यहां ठहराती हैं।

परंतु हमारे लिए तो एकमात्र यशोदा और नंदनंदन के प्रिय पुत्र श्री कृष्ण ही है। उन्हीं की शरण में है और उनके लिए हमने अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया है। अब दूसरा मन उधार में किससे ले, जो तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म को भेंट करें। दोस्तों ! यहां गोपियों की अनन्यता का भाव देखने को मिलता है


#पद : 62.

भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Bhavarth Raag Bilaval Shabdarth Sahit in Hindi

राग बिलावल
काहे को रोंकत मारग सूधो?
सुनहु, मधुप! निर्गुन-कंटक तें राजपथ क्यों रूँधो?
कै तुम सिखै पठाए कुब्जा, कै कहीं स्यामघन जू धौं
बेद पुरान सुमृति सब ढ़ूँढ़ौ जुवतिन जोग कहूँ धौं?
ताको कहा परेखो कीजै जानत छाछ न दूधो।
सूर मूर अक्रूर गए लै ब्याज निबेरत ऊधो।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01.सूधोसरल, अकंटक
02.राजपथ राजपथ के समान अकंटक, बाधारहित
03. रूँधोरोकते हो
04.कैयातो
05.सिखैसिखाकर
06.पठाएभेजे गये हो
07.धौंसंभवतः
08.सुमृतिस्मृति
09.जुवतिनयुवतियां, नारियां
10.परेखोबुरा मानना
11.सूरमूलधन, मूलराशि
12.निबेरत उगाहने, वसूलने

व्याख्या :

दोस्तों ! गोपियाँ, उद्धव के द्वारा बार-बार योग-साधना का उपदेश देकर, प्रेम के सीधे सरल मार्ग को छोड़कर, कंटकपूर्ण, टेढ़े-मेढ़े, योग के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने पर खीस का प्रदर्शन करती हैं और उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव ! तुम हमारे सीधे-साधे, सरल प्रेम-मार्ग में बाधा क्यों बन रहे हो ? योग-मार्ग का उपदेश देकर हमें प्रेम मार्ग से विचलित क्यों कर रहे हो ?

हे उद्धव ! राजपथ के समान कंटक रहित प्रेम मार्ग को तुम कांटो से भरे हुये अनुचित और कष्ट देने वाले योग मार्ग से क्यों अवरुद्ध कर रहे हो ? तुम्हारा योग मार्ग कठिन है, असाध्य है। इसलिए हम अपने सीधे-साधे प्रेम-मार्ग को छोड़कर उसे अपना नहीं सकती। उद्धव हमें ऐसा लगता है कि कुब्जा की जो हमारे प्रति ईर्ष्या है, उसी के कारण तुम्हें सीखा-पढ़ाकर हमारे पास भेजा गया है, ताकि हम श्री कृष्ण को भूलकर योग में भटक जाये और वह श्री कृष्ण के प्रेम को अकेली भोगती रहे, उनके साथ विहार करें।

या फिर लगता है, कहीं श्याम ने ही तुम्हें समझा कर, तुम्हें सीखा कर योग का संदेश देकर हमारे पास भेजा है, ताकि वह कुब्जा के प्रेम का भोग कर सके। हे उद्धव ! वेद पुराण, स्मृतियां आदि संपूर्ण धार्मिक सार-ग्रंथों का अध्ययन करके देखे तो उनमें कहीं भी यह स्पष्ट नहीं है कि कोमल नारियों को योग की शिक्षा देनी चाहिए।

Bhramar Geet Saar Bhavarth in Hindi

अब तुम्हारे जैसे मूर्ख व्यक्ति की बात का क्या बुरा माने, जिसे दूध और छाछ में अंतर ही नहीं पता। हमारे श्री कृष्ण तो दूध के समान सर्वगुण संपन्न है और तुम्हारे निर्गुण छाछ के समान सारहीन है, व्यर्थ है। किंतु तुम स्वयं उन दोनों में अंतर नहीं समझ पा रहे हो तो तुम्हारी बातों का बुरा क्या माना जाये ?

हे उद्धव ! मूलधन को तो अक्रूरजी यहां से ले गये थे। अब तुम यहां ब्याज उगाहने अर्थात वसूलने आये हो। मूलधन अर्थात् श्री कृष्ण, जिनकी यहां थोड़ी बहुत स्मृतियां शेष है, वह भी तुम ले जाना चाहते हो। और ब्याज में तुम हमें निर्गुण ब्रह्म का उपदेश दे रहे हो। प्रस्तुत पद में सूरदास जी प्रेम मार्ग को राजपथ के समान सीधा-सरल मान रहे हैं, जबकि योग मार्ग को कंटकपूर्ण और अगम्य बताते हैं।

दोस्तों ! आज हमने भ्रमरगीत सार के 60-62 पदों का भावार्थ या व्याख्या को अच्छे से समझा। फिर मिलते है कुछ नए पदों के साथ। तब तक के लिये बने रहिये हमारे साथ।

ये भी अच्छे से समझे :


एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Bhramar Geet Saar Bhavarth in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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