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Bhramar Geet Saar Bhavarth | भ्रमरगीत सार के पदों की व्याख्या
Bhramar Geet Saar Bhavarth in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! प्रतियोगी परीक्षा में बहुत ही महत्वपूर्ण होने के कारण, हम रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित “भ्रमरगीत सार” के पदों का विस्तृत अध्ययन कर रहे है। आज हम इसके पद संख्या #24-26 की व्याख्या करेंगे :
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Bhramar Geet Saar Bhavarth | भ्रमरगीत सार व्याख्या [#24-26 पद]
Bhramar Geet Saar Bhavarth Vyakhya in Hindi : दोस्तों ! “भ्रमरगीत सार” के 24-26 तक के पदों की विस्तृत व्याख्या इस तरह से है :
#पद : 24.
Bhramar Geet Saar Bhavarth Arth Vyakhya in Hindi
जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहै।
यह ब्योपार तिहारो ऊधो ऐसोई फिरि जैहै।।
जापै लै आए हौ मधुकर ताके उर न समैहै।
दाख छांड़ि कै कटुक निंबौरी को अपने मुख खैहै ?
मूरी के पातन के केना को मुक्ताहल दैहै।
सूरदास प्रभु गुनहिं छांड़ि कै को निर्गुन निरबैहै?
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | ठगौरी | जादू, ठगाई से भरा सौदा |
02. | फिरि जैहै | लौटा दिया जायेगा |
03. | जापै | जिसके पास |
04. | कटुक | कड़वी |
05. | निंबौरी | नीम का फल |
06. | खैहे | खायेगा |
07. | केना | सौदा |
08. | मुक्ताहल | मोती |
व्याख्या :
गोपियाँ उद्धव के योगज्ञान को निस्सार बताकर उन पर गंभीर व्यंग्य करती है और कहती है कि हे उद्धव ! तुम्हारा ये ज्ञानयोग रूपी ठगी और धूर्तता का जो माल है, वह ब्रज में नहीं बिक पायेगा। सौदा यहाँ से इसीप्रकार लौटा दिया जायेगा। यहाँ इसे कोई नहीं खरीदेगा।
हे उद्धव ! तुम यह सामान इतनी दूर जिसके लिए ले आये हो, उसे यह पसंद नहीं आयेगा। यह उसके हृदय में नहीं समा पायेगा। ऐसा कौन मूर्ख होगा, जो अपने अंगूर के दानों को छोड़कर नीम के कड़े फल को खायेगा और मूली के पत्तों के बदले तुम्हें मोतियों के दाने देगा ?
गोपियाँ यह कहना चाहती है कि तुम्हारा जो यह निर्गुण ब्रह्म है, वह नीम के फल के समान कड़वा और मूली के पत्तों के समान तुच्छ है एवं त्याज्य है। और हमारे श्री कृष्ण अंगूर के समान मधुर और मोतियों के समान बहुमूल्य हैं, इसलिए हम ऐसे मूर्ख नहीं है, जो श्री कृष्ण को छोड़कर, तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की साधना करें अर्थात् ऐसा कौन मूर्ख है, जो सगुण श्री कृष्ण को छोड़कर, तुम्हारे गुणहीन निर्गुण ब्रह्म की साधना करेगा।
#पद : 25.
Bhramar Geet Saar Bhavarth Raag Nat Arth with Hard Meaning in Hindi
राग नट
आए जोग सिखावन पाँड़े।
परमारथी पुराननि लादे ज्यों बनजारे टाँड़े।।
हमरी गति पति कमलनयन की जोग सिखैं ते राँड़े।।
कहौ, मधुप, कैसे समायँगे एक म्यान दो खाँड़े।।
कहु षटपद, कैसे खैयतु है हाथिन के संग गाँड़े।
काकी भूख गई बयारि भखि बिना दूध घृत माँड़े।।
काहे को झालालै मिलवत, कौन चोर तुम डांड़े?
सूरदास तीनों नहिं उपजत धनिया धान कुम्हाँड़े।।
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | जोग | ज्ञान योग |
02. | परमारथी | परमार्थ की शिक्षा देने वाले |
03. | पुराननि | पुराणों की ,पुरानी |
04. | बनजारे | खानाबदोश |
05. | टाँड़े | सौदा, व्यापार की वस्तु |
06. | राँड़े | विधवा |
07. | खाँड़े | तलवार |
08. | षटपद | भौंरा |
09. | गाँड़े | गन्ना |
10. | भखि | खाकर |
11. | माँड़े | खाने |
12. | झाल | बकवास |
13. | कुम्हाँड़े | कुम्हाँड़ा या कद्दू |
व्याख्या :
हे उद्धव ! तुम पण्डे के समान हमें योग सिखाने के लिए आ गये। जिस प्रकार बंजारे लोग अपने सिर पर माल लादे-लादे घूमते-फिरते हैं, उसी प्रकार तुम भी पण्डे के समान परमार्थ की शिक्षा देने वाले पुराणों के ज्ञान के बोझ को अपने सिर पर लादे लादे-लादे फिर रहे हो। और इसे हमारे ऊपर मढंना चाहते हो। हमारी गति तो हमारे पति के साथ है और हमारे पति तो कमलनयन है अर्थात् श्री कृष्ण है, जो हमें शरण और प्रतिष्ठा देने वाले हैं। यह योग हमारे लिए नहीं है। यह योग तो उनके लिए है, जो विधवा और अनाथ है। हमारे पति अभी जीवित हैं। अतः योग हमारे लिए बेकार की वस्तु है।
हे उद्धव ! तुम ही बताओ, एक म्यान में दो तलवारें कैसे समा सकती है ? जिस प्रकार एक म्यान में दो तलवार नहीं समा सकती, उसी प्रकार हमारे लिए योग सीखना भी बेकार ही है, क्योंकि योग की साधना करना हमारे लिए असंभव है। हमारे हृदय में तो श्रीकृष्ण समाये हुये हैं। अब इसमें योग नहीं समा सकता। इसमें तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की समायी नहीं हो सकती है।
Bhramar Geet Saar Bhavarth
उद्धव हमें बताओ कि किस प्रकार हाथी के साथ गन्ने को खाया जा सकता है ?, क्योंकि हाथी तो एक ही बार में अनेक गन्ने खा जाता है। जिस प्रकार हाथी के साथ गन्ना खाने में मनुष्य कोई स्पर्धा नहीं कर सकता, उसी प्रकार हम अबला नारियों के लिए यह योग मार्ग की कठिन और दुर्गम साधना करना बहुत मुश्किल है। बिना दूध, घी और रोटी खाये, केवल हवा के भक्षण से अर्थात् तुम्हारे योग करने से किसकी भूख मिट सकती है ? अर्थात् कोई जीवित नहीं रह सकता।
जिस प्रकार यह असंभव है कि केवल प्राणायाम से ही भूख मिट जाये, उसी प्रकार हमारे लिए भी योग की साधना करना संभव है। गोपियाँ कह रही है कि बातें बना-बना कर व्यर्थ की बकवास कर रहे हो। आखिर हमने ऐसी कौन सी चोरी की है कि तुम हमें दंड देने आए हुए हो। वास्तव में तुम स्वयं चोर हो, क्योंकि तुम हमारे सर्वस्व श्री कृष्ण, जो हमारे हृदय में विराजमान हैं, उन्हें हमसे छीन कर ले जाने के लिए आए हो।
तुम यह बात अच्छी तरह जानते हो कि धनिया, धान और काशीफल, इन तीनों की खेती एक स्थान पर होना असंभव है, उसी प्रकार हमारे लिए श्री कृष्ण को छोड़कर, तुम्हारे ब्रह्म को स्वीकार करना असंभव है।
#पद : 26.
Bhramar Geet Saar Bhavarth Raag Bilawal Shabdarth Sahit in Hindi
राग बिलावल
ए अलि ! कहा जोग में नीको?
तजि रसरीति नंदनंदन की सिखवत निर्गुन फीको।।
देखत सुनत नाहिं कछु स्रवननि, ज्योति ज्योति करि ध्यावत।
सुंदरस्याम दयालु कृपानिधि कैसे हौ बिसरावत?
सुनि रसाल मुरली-सुर की धुनि सोई कौतुक-रस भूलैं।
अपनी भुजा ग्रीव पर मेलैं गोपिन के सुख फूलैं।।
लोककानि कुल को भ्रम प्रभु मिलि मिलि कै घर बन खेली।
अब तुम सूर खवावन आए जोग जहर की बेली।।
शब्दार्थ :
क्रम संख्या | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
01. | अलि | भंवरा |
02. | नीको | अच्छा, गुणवान |
03. | तजि | छोड़कर |
04. | फीको | बेकार |
05. | स्रवननि | कानों से |
06. | ध्यावत | ध्यान करते हैं |
07. | बिसरावत | भूलना |
08. | रसाल | मधुर, मीठे |
09. | ग्रीव | गर्दना |
10. | मेलैं | डालते थे |
11. | लोककानि | लोक की मर्यादा |
12. | खेली | खेल डाला |
13. | बेली | बेल, लता |
व्याख्या :
दोस्तों ! गोपियाँ उद्धव के योग के उपदेश से खिन्न होकर प्रतिक्रिया करती है और वे भौरे के माध्यम से खरी-खोटी सुना रही है। वे कहती है कि हे भँवरे ! तुम्हारे निर्गुण में कौन सी खासियत है, जो तुम नंदलाल की रसपद्धति को छुड़ाकर निर्गुण सिखा रहे हो। आगे गोपियाँ कहती हैं कि तुम ना उसको देख पाते हो और ना ही उसकी कोई बातचीत सुन पाते हो। बस ज्योति-ज्योति कहकर दौड़ पड़ते हो।
हमारे श्यामसुंदर तो अत्यंत दयालु है। हम उन्हें कैसे भुला सकते है ? हमारे कन्हैया की मधुर मुरली की धुन सुनकर तो देवता और मुनि लोग भी सुनने के लिए कौतूहलवश अपना तन-मन भुला बैठे थे। जब कन्हैया अपनी भुजा हमारे कंधों पर रख देते थे तो हमारा मन खिल उठता था। हम लोक-लाज एवं कुल की मर्यादा छोड़कर, प्रभु के साथ घर में, वन में खेलती रहती थी और श्री कृष्ण का प्रेम हमारे लिए मधुर और जीवनदायी होगा। गोपियों के माध्यम से सूरदास जी ने योग मार्ग का खंडन किया है। यहाँ व्यंग्य भाव की प्रधानता है।
दोस्तों ! आज के लेख में हमने Bhramar Geet Saar Bhavarth | भ्रमरगीत सार के 24 से 26 तक के पदों का भावार्थ या विस्तृत व्याख्या को जाना। उम्मीद है कि आपको आज का व्याख्यान अच्छे से समझ आ गया होगा।
ये भी अच्छे से समझे :
एक गुजारिश :
दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “ Bhramar Geet Saar Bhavarth | भ्रमरगीत सार के पदों की व्याख्या “ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I
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