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Bhramar Geet Saar Bhav in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या


Bhramar Geet Saar Bhav Vyakhya in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या : नमस्कार दोस्तों ! आज हम रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित “भ्रमरगीत सार” के 66-68 पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या एवं भाव को जानेंगे। तो चलिए ध्यान से समझते है :

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भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Bhav in Hindi [पद #66-68]


Bhramar Geet Saar Pad Bhav Vyakhya 66-68 in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या : दोस्तों ! “भ्रमरगीत सार” के 66-68 पदों की व्याख्या को इस तरह से समझिये :

#पद : 66.

भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Bhav Raag Malaar Meaning in Hindi

राग मलार
ब्रजजन सकल स्याम-ब्रतधारी।।
बिन गोपाल और नहिं जानत आन कहैं व्यभिचारी।।
जोग-मोट सिर बोझ आनि कै कत तुम घोष उतारी?
इतनी दूरि जाहु चलि कासी जहाँ बिकति है प्यारी।।
यह सँदेस नहिं सुन तिहारो, है मण्डली अनन्य हमारी।
जो रसरीति करी हरि हमसों सो कत जात बिसारी?
महामुक्ति कोऊ नहिं बूझै, जदपि पदारथ चारी
सूरदास स्वामी मनमोहन मूरति की बलिहारी।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01.ब्रजजन ब्रजवासी
02.सकलसारे
03.स्याम-ब्रतधारीश्री कृष्ण प्रेम का व्रत धारण करने वाले
04.मोटगठरी
05.घोषअहीरों की बस्ती, गोकुल
06.प्यारीमहँगी
07.तिहारोतुम्हारा
08.अनन्यअनोखी
09.रसरीतिप्रेम रस-विहार, प्रेम-क्रीड़ाये
10.कतकैसे
11.बिसारीभुलाई
12.पदारथ चारीधर्म, अर्थ, काम, मोक्ष नामक चार पदार्थ

व्याख्या :

दोस्तों ! गोपियां श्री कृष्ण प्रेम के समक्ष मोक्ष को भी तुच्छ समझती हैं। गोपियों की ही भांति अन्य ब्रजवासी भी श्री कृष्ण प्रेम के लिए मोक्ष को ठुकरा सकते हैं। गोपियां कहती है कि हे उद्धव ! हमारी ही तरह संपूर्ण ब्रज़वासी भी श्री कृष्ण प्रेम के व्रत को दृढ़ता से धारण किये हुये हैं। श्री कृष्ण के अलावा अन्य किसी को प्रेम करना तो दूर, उसके प्रति आकर्षित भी नहीं हो सकते।

हम यदि गोपाल के अतिरिक्त अन्य किसी की बात भी करें अर्थात् तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की बात भी करें तो हम व्यभिचारी कही जायेगी, क्योंकि पतिव्रताधारी किसी अन्य को अपने मन में नहीं ला सकती। यदि वह ऐसा करती है तो वह व्यभिचारिणी है और हम तो श्री कृष्ण की पतिव्रताएँ हैं। तुम्हारे ब्रह्म का विचार करके व्यभिचारिणी नहीं कहलवाना चाहती।

हे उद्धव ! तुम अपनी योग की गठरी का भारी बोझ यहां अहीरों की बस्ती में अर्थात् गोकुल में लाकर क्यों उतारे हो ? यहाँ इस निरर्थक वस्तु का कोई ग्राहक नहीं है। तुम ऐसा करो कि तुम इसे यहां से दूर काशी ले जाओ। वहां के लोग इसे जानते हैं। इसका मर्म समझते हैं और यह वहां पर महंगी बिक सकेगी।

Bhramar Geet Saar Bhav in Hindi

हे उद्धव ! यह जो हमारी मंडली है, यह बड़ी अनोखी मंडली है और यह श्री कृष्ण के प्रेम में निमग्न है, इसलिए यहां तुम्हारा निर्गुण ब्रह्म संबंधित उपदेश कोई नहीं सुनने वाला है। हे उद्धव ! तुम्ही बताओ, श्री कृष्ण ने यहां हमारे साथ जो प्रेमलीलाएं की थी, जो रास रचाया था, क्या उन्हें कभी भुलाया जा सकता है ?

हे उद्धव ! हमें तो श्री कृष्ण के प्रेम में तुम्हारे चारों पदार्थों से युक्त मुक्ति की प्राप्ति हो चुकी है, इसलिए निर्गुण ब्रह्म के मार्ग पर चलकर प्राप्त होने वाली मुक्ति का हमारे लिये कोई आकर्षण नहीं है, कोई मोल नहीं है। हम तो अपने स्वामी श्री कृष्ण की सुंदर मूर्ति पर अपने प्राण न्योछावर करती हैं।

दोस्तों ! गोपियों को श्री कृष्ण प्रेम से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक यह चारों पदार्थ प्राप्त थे। अतः निर्गुण ब्रह्म को, जिसको अपनाने से केवल मोक्ष प्राप्त होता, वे निरर्थक समझती थी।


#पद : 67.

भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Bhav Raag Dhanshri with Hard Meaning in Hindi

राग धनाश्री
कहति कहा ऊधो सों बौरी
जाको सुनत रहे हरि के ढिग स्यामसखा यह सो री!
कहा कहत री! मैं पत्यात री नहीँ सुनी कहनावत।
हमको जोग सिखावन आयो, यह तेरे मन आवत?
करनी भली भलेई जानै, कपट कुटिल की खानि
हरि को सखा नहीँ री माई! यह मन निसचय जानि।।
कहाँ रास-रस कहाँ जोग-जप? इतनो अँतर भाखत।।
सूर सबै तुम कत भइँ बौरी याकी पति जो राखत।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01.बौरी बावली, पगली
02.ढिग पास या समीप
03.सखा मित्र
04.पत्यातविश्वास करती हूं
05.कपट छल
06.खानिखजाना
07.निसचयनिश्चय
08.भाखतकहते हैं
09.कतक्यों
10.याकीकिसकी
11.पतिविश्वास
12.राखतकरती हो

व्याख्या :

दोस्तों ! गोपियों का मानना है कि योग का संदेश लाने वाला श्री कृष्ण का सखा कभी नहीं हो सकता। यह तो कोई धूर्त या कपटी है और ऐसा जानकर गोपियां उद्धव को जली-कटी सुनाती है। एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि अरे पगली ! तू उद्धव से क्या बात कर रही हो ? ये तो श्याम का सखा है। यह श्री कृष्ण का साथी है, जो सदा उनके पास निवास करता है। जिनके विषय में हम कब से सुनती आ रही हैं। क्या तेरे मन में यह आ रहा है कि यह हमें यहां योग की शिक्षा देने आया है।

अरे तू क्या कह रही है ? मुझे तो इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा कि यहां यह हमें योग का संदेश देने के लिए आया है। तूने वह कहावत तो सुनी होगी कि सज्जन और भले लोग अपनी प्रकृति के अनुसार अन्य लोगों की भलाई में लगे रहते हैं और नीच मनुष्य अत्यधिक कपटी होते हैं और दूसरों का कार्य बिगाड़ने में खुशी अनुभव करते हैं।

Bhramar Geet Saar Bhav in Hindi

हे सखी ! यह तू अपने मन में निश्चय जान ले कि यह श्री कृष्ण का सखा नहीं है। ये बात तू अपने मन में जान ले और थोड़ा इस बात पर विचार कर कि कहाँ श्री कृष्ण के साथ प्रेम विहार व क्रीडाओं का आनंद और कहाँ योग साधना व तपस्या का कठिन कार्य। यह कैसी दो परस्पर विरोधी बातें कर रहा है ? यदि यह श्री कृष्ण का सखा होता तो हमें उनके प्रेम से विमुख होकर योग की तपस्या का उपदेश नहीं देता।

अरे क्या तुम सब पागल हो गई हो, जो तुम इसकी बातों का विश्वास कर रही हो और इसे श्री कृष्ण के सखा के समान आदर दे रही हो। यह तो कोई छलिया या बहरूपिया है, जिसे यहां से अपमानित करके भगा देना ही उचित है। दोस्तों ! प्रस्तुत पद में अत्यंत मार्मिक और चुभने वाला व्यंग्य किया गया है।


#पद : 68.

भ्रमरगीत सार व्याख्या Bhramar Geet Saar Bhav Raag Ramkali Shabdarth Sahit in Hindi

राग रामकली
ऐसेई जन दूत कहावत।
मोको एक अचंभो आवत यामेँ ये कह पावत?
बचन कठोर कहत, कहि दाहत, अपनी महत गँवावत।
ऐसी परकृति परति छाँह की जुवतिन ज्ञान बुझावत।।
आपुन निलज रहत नखसिख लौं एते पर पुनि गावत
सूर करत परसँसा अपनी, हारेहु जीति कहावत।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01.ऐसेईऐसे ही
02.जनआदमी
03.मोकोमुझे
04.यामेँ इसमें
05.महतमहत्ता, सम्मान
06.परकृतिप्रकृति, संसर्ग अथवा छाया का प्रभाव
07.जुवतिनयुवतियों, अबलाओं, गोपियों को
08.बुझावतसमझाते हैं
09.आपुनस्वयं
10.निलजनिर्लज्ज
11.नखसिख लौंऊपर से नीचे तक पूरी तरह से
12.एते पर इतने पर भी
13.गावतचर्चा करते हैं
14.परसँसा प्रशंसा
15.हारेहु हार

व्याख्या :

दोस्तों ! गोपियां योग का संदेश लाने वाले उद्धव को छली, कपटी सिद्ध करते हुये उनके संदेश पर कटाक्ष कर रही हैं। उनके मत में सफल दूत वही है, जो वास्तविक संदेश ना कह कर इधर-उधर की झूठी बातें गढ़कर सुनाया करता है। गोपियां उद्धव के संदेश की सत्यता पर संदेह करती हुई और उसके योग पर व्यंग्य करती हुई आपस में बातचीत करती है और कहती है कि ऐसे ही लोग सफल दूत कहे जाते हैं, जो वास्तविक संदेश न कहकर इधर-उधर की बातें गढ़कर सुनाया करते है।

मुझे इस बात का आश्चर्य है कि ऐसा करने पर अर्थात् हमें योग का संदेश सुनाकर संतप्त करने से इन्हें क्या लाभ होता है ? ऐसे लोग दूसरों से कठोर वचन कहते हैं। जैसे यह उद्धव हमसे श्री कृष्ण को भुलाकर निर्गुण ब्रह्म की उपासना करने को कह रहे हैं। इस प्रकार के वचनों से दूसरों को दुखी करते हैं और अपनी महत्ता अर्थात् सम्मान भी गंवा बैठते हैं। प्रत्येक व्यक्ति पर संगति का प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण वह ऊटपटांग बातें करने लगता है।

Bhramar Geet Saar Bhav in Hindi

देख लो, उद्धव इस बात के साक्षात प्रमाण है। कुब्जा की संगति में रहने के कारण इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है, जिसके कारण ये महिलाओं को योग और निर्गुण ब्रह्म की शिक्षा देने यहां आ गये हैं। इन्हें यह समझ ही नहीं आ रहा है कि इनका यह कार्य कितना अनुचित है। ऐसे लोग पुर्णत:निर्लज्ज होते हैं और निर्लज्ज कार्यों के लिये लज्जा का अनुभव ना करके अपनी ही हांके चले जाते हैं। ये लोग स्वयं अपनी ही प्रशंसा करते रहते हैं और प्रशंसा करते-करते अपनी हार को भी जीत कहते हैं।

हे उद्धव ! तुम ज्ञान में, विवेक में हमसे हार चुके हो, क्योंकि तुम एक भी बात का तो उत्तर नहीं दे पाते। फिर भी स्वयं को विजयी घोषित कर रहे हो और निरंतर निर्गुण ब्रह्म से संबंधित अपनी रट लगाये हुये हो। दोस्तों ! प्रस्तुत पद में उद्धव के साथ-साथ कुब्जा पर भी व्यंग्य किया गया है।

इसप्रकार हमने अब तक 68 पदों की व्याख्या को शब्दार्थ सहित समझ लिया है। हम अगले कुछ पदों के साथ ही इसे समाप्त करने जा रहे है। तो चलिए जुड़े रहिये हमारे साथ।

ये भी अच्छे से समझे :


एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Bhramar Geet Saar Bhav in Hindi भ्रमरगीत सार व्याख्या के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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